📖 - निर्गमन ग्रन्थ

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अध्याय - 25

1) प्रभु ने मूसा से कहा :

2) ''इस्राएलियों से कहो कि वे मेरे लिऐ चन्दा ले आयें। तुम प्रत्येक व्यक्ति से, जो स्वेच्छा से देना चाहे, मेरे लिए चन्दा स्वीकार करो।

3) तुम उन से यह स्वीकार करोगे : सोना, चाँदी और काँसा;

4) नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े तथा छालटी, बकरी के बाल;

5) मेढों की सीझी हुई खालें ओर सूस की खालें; बबूल की लकड़ी;

6) दीपक के लिए तेल, अभ्यंजन के तेल और सुगन्धित लोबान के लिए मसाले;

7) एफ़ोद और वक्षपेटिका में लगाने के लिए सुलेमानी और अन्य मणियाँ।

8) लोग मेरे लिए एक पवित्र-स्थान बनायें और मैं उनके बीच निवास करूँगा।

9) जो नमूना मैं तुम को दिखाऊँगा, ठीक उसी के अनुसार निवास और उसके लिए अन्य सब सामग्री बनवाओ।

10) ''बबूल की लकड़ी से एक मंजूषा बनवाओ। उसकी लम्बाई ढाई हाथ और चौड़ाई तथा ऊँचाई डेढ़-डेढ़ हाथ हो।

11) उसे भीतर-बाहर शुद्ध सोने से मढ़वाओ और उसके चारों ओर सोने की किनारी भरवाओं।

12) उसके चार पायों में सोने के चार कड़े ढलवा कर बनवाओं; दो कड़े एक ओर और दो कडे दूसरी ओर।

13) फिर बबूल की लकड़ी के डण्डे बनवाओ और उन्हें भी सोने से मढ़वाओ।

14) मंजूषा के किनारों के कड़ो में उन डण्डों को डलवाओ, जिससे मंजूषा उठायी जा सके।

15) डण्डे हमेशा मंजूषा के कड़ो में लगे रहेंगे, वे उन से कभी अलग नहीं किया जायेगा।

16) मंजूषा में उस विघान-पत्र को रख दो, जिसे मैं तुम को दूँगा।

17) शुद्ध सोने का एक छादन-फलक बनवाओ। उसकी लम्बाई ढाई हाथ हो और उसकी चौड़ाई डेढ़ हाथ।

18) छादन-फलक के दोनों ओर सोने से गढ़े दो केरूब बनवाओ;

19) एक सिरे पर एक केरूब और दूसरे सिरे पर दूसरा केरूब। ये केरूब और छादल-फलक एक ही धातु खण्ड के बने हों।

20) उन केरूबों के पंख ऊपर से ऐसे फैले हुए हों कि वे अपने पंखों से छादन-फलक को ढके रहें। वे एक दूसरे के आमने-सामने हों और उनका मुख छादन-फलक की ओर हो।

21) मंजूषा के ऊपर उस छादन-फलक को और मंजूषा में उस विधान-पत्र को रखो, जिसे मैं तुम को दूँगा।

22) मैं वहाँ तुम से मिलूँगा और छादन-फलक के ऊपर से, अर्थात् विधान की मंजूषा पर स्थित उन दो केरूबों के बीच के स्थान से तुम को इस्राएलियों के लिए अपनी सब आज्ञाएँ सुना दूँगा।

23) ''बबूल की लकड़ी की एक मेज बनवाओ, जो दो हाथ लम्बी, एक हाथ चौड़ी और डेढ़ हाथ ऊँची हो।

24) उसे शुद्ध सोने से मढ़वाओं और उसके चारों ओर सोने की किनारी लगवाओ।

25) उसके चारों ओर चार अंगुल चौड़ी एक पटरी बनवाओ और उस पटरी के चारों ओर सोने की किनारी लगवाओ।

26) सोने के चार कड़े बनवा कर उन कड़ों को चारों कोनों में, चारों पायों में लगवाओ।

27) वे कड़े पटरी के पास ही हों और डण्डों के घरों का काम दे, जिससे मेज उनके द्वारा उठायी जा सके।

28) बबूल की लकड़ी के डण्डे बनवा कर उन्हें सोने से मढ़वाओं। वे मेज उठाने के काम आयेंगे।

29) तुम शुद्ध सोने की थालियाँ कलछे, घड़े और प्याले बनवाओं। ये अर्घ देने के काम आयेंगे।

30) उस मेज़ पर मेरे सामने सदा भेंट की रोटियाँ रखा करोगे।

31) शुद्ध सोने का एक दीपवृक्ष भी बनवाओ। दीपवृक्ष का पाया, उसकी डण्डी, उसके प्याले, उसकी कलियाँ और फूल-सब एक ही धातु खण्ड के होंगे।

32) उसी में छह शाखाएँ हों। दीपवृक्ष की एक ओर तीन शाखाएँ हों और दीपवृक्ष की दूसरी ओर तीन शाखाएँ।

33) एक शाखा में बादाम की बौंड़ी के आकार के तीन प्याले हों, जिन में एक कली और एक फूल हो। दूसरी शाखा में बादाम की बौंड़ी के आकार के तीन प्याले हों, जिन में एक कली और एक फूल हो। वृक्ष की छहों शाखाओं पर ऐसा ही हो।

34) दीपवृक्ष में ही बादाम की बौंड़ी के आकार के चार प्याले हों, जिन में एक कली और एक फूल हो।

35) दीपवृक्ष से निकली हुई प्रथम शाखा-द्वय के नीचे एक कली हो, दूसरी कली दूसरी शाखा-द्वय के नीचे और तीसरी कली तीसरी शाखा-द्वय के नीचे।

36) शाखाएँ, कलियाँ और दीपवृक्ष ये सब शुद्ध सोने के एक ही धातु-खण्ड के बने हो।

37) तब तुम उसके लिए सात दीपक बनवाओ। उन दीपकों को इस प्रकार जलते रखोगे कि उनका प्रकाश सामने के स्थान पर पड़े।

38) उसकी कैंचियाँ और अग्निपात्र शुद्ध सोने के बने हों।

39) उसे और उसके सब पात्रों को एक मन शुद्ध सोने से बनवाओ।

40) इसका ध्यान रखो कि ये सब ठीक उसी नमूने अनुसार बनें, जो तुम को पर्वत पर दिखाया गया है।



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