📖 - निर्गमन ग्रन्थ

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अध्याय - 32

1) इधर जब लोगों ने देखा कि मूसा पर्वत पर से उतरने में विलम्ब कर रहा है, तब वे हारून का विरोध करने के लिए इकट्ठे हो कर उस से कहने लगे, ''अब हमारे लिए ऐसे देवता बनाओ, जो हमारे पथप्रदर्शक हों; क्योंकि पता नहीं, उस मूसा का क्या हुआ, जिसने हमें मिस्र से निकाला था।''

2) इस पर हारून ने उन से कहा, ''अपनी पत्नियों, अपने पुत्रों और अपनी पुत्रियों के कानों की सोने की बालियाँ उतार कर मेरे पास ले आओ।''

3) इसलिए सब लोगों ने अपने कानों की सोने की बालियाँ उतार कर हारून को सौंप दीं।

4) उसने उनके हाथों से सोना ले कर और साँचे में ढाल कर एक बछड़े की प्रतिमा बनायी। तब लोग कहने लगे, ''इस्राएल यही तुम्हारा वह देवता है, जो तुम को मिस्र देश से निकाल लाया।''

5) यह देख कर हारून ने उसके सामने एक वेदी बनायी फिर हारून ने ऊँचे स्वर से यह घोषणा की :

6) ''कल प्रभु के लिए एक उत्सव मनाया जायेगा।'' लोग बड़े सबेरे उठ कर होम बलियाँ और शान्ति के बलिदान चढ़ाने लगे। फिर लोग खान-पीने के लिए बैठ गये। इसके बाद वे उठ कर नाचने-गाने लगे।

7) प्रभु ने मूसा से कहा, ''पर्वत से उतरो, क्योंकि तुम्हारी प्रजा, जिसे तुम मिस्र से निकाल लाये हो, भटक गयी है।

8) उन लोगों ने शीघ्र ही मेरा बताया हुआ मार्ग छोड़ दिया। उन्होंने अपने लिए ढली हुई धातु का बछड़ा बना कर उसे दण्डवत किया और बलि चढ़ा कर कहा, ''इस्राएल; यही तुम्हारा देवता है। यही तुम्हें मिस्र से निकाल लाया।''

9) प्रभु ने मूसा से कहा, ''मैं देख रहा हूँ कि ये लोग कितने हठधर्मी हैं।

10) मुझे इनका नाश करने दो। मेरा क्रोध भड़क उठेगा और इनका सर्वनाश करेगा। तब मैं तुम्हारे द्वारा एक महान् राष्ट्र उत्पन्न करूँगा।''

11) मूसा ने अपने प्रभु-ईश्वर का क्रोध शान्त करने के उद्देश्य से कहा, ''प्रभु; यह तेरी प्रजा है, जिसे तू सामर्थ्य तथा भुजबल से मिस्र से निकाल लाया। इस पर तू कैसे क्रोध कर सकता है?

12) मिस्रियों को यह कहने का अवसर क्यों मिले कि बुरे उद्देश्य से वह उन्हें निकाल लाया जिससे वह उन्हें पर्वतों के बीच मार डाले और पृथ्वी पर से मिटा दे? अपनी क्रोधाग्नि को शान्त कर और अपनी प्रजा पर विपत्ति न आने दे।

13) अपने सेवकों को, इब्राहीम, इसहाक और याकूब को याद कर। तूने शपथ खा कर उन से यह प्रतिज्ञा की है - मैं तुम्हारी संतति को स्वर्ग के तारों की तरह असंख्य बनाऊँगा और अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तुम्हारे वंशजों को यह समस्त देश प्रदान करूँगा और वे सदा के लिए इसके उत्तराधिकारी हो जायेगे।''

14) तब प्रभु ने अपनी प्रजा को दण्ड देने की जो धमकी दी थी, उसका विचार छोड़ दिया।

15) मूसा विधान की दोनों पाटियाँ हाथ में लिये पर्वत से उतर कर लौटा। पाटियों पर सामने और पीछे, दोनों ओर लेख अंकित थे।

16) वे पाटियाँ ईश्वर की बनायी हुई थीं और उन पर जो लिपि अंकित थी, वह ईश्वर की अपनी लिपि थी।

17) योशुआ ने लोगों का कोलाहल सुन कर मूसा से कहा, शिविर में से लड़ाई जैसी आवाज़ आ रही है।

18) उसने उत्तर दिया, ''यह न तो विजेताओं का उल्लास है और न पराजितों का विलाप। मैं तो गाने की आवाज़ सुन रहा हूँ।''

19) शिविर के पास पहुँच कर मूसा ने बछड़े की प्रतिमा और लोगों का नृत्य देखा। उसका क्रोध भड़क उठा और उसने अपने हाथ की पाटियों को पहाड़ के निचले भाग पर पटक कर टुकड़े-टुकड़े कर दिये।

20) उसने लोगों का बनाया हुआ बछड़ा ले कर जला दिया। उसने उसकी राख पीस कर चूर-चूर कर डाली और उसे पानी में छिड़क कर इस्राएलियों को पिला दिया।

21) तब मूसा ने हारून से पूछा, ''इन लोगों ने तुम्हारे साथ कौन-सा अन्याय किया, जो तुमने इन्हें इतने घोर पाप में डाल दिया हैं?''

22) हारून ने उत्तर दिया, ''महोदय आप क्रोध न करें। आप जानते ही हैं कि इन लोगों का झुकाव पाप की ओर है।

23) इन्होंने मुझ से कहा, "हमारे लिए एक ऐसा देवता बनाइए, जो हमारे आगे-आगे चले, क्योंकि हम नहीं जानते कि जो मनुष्य हम को मिस्र से निकाल लाया, उस मूसा का क्या हुआ।÷

24) तब मैंने इन से कहा, ''जिसके पास सोने के आभूषण हों, वे उन्हें उतार कर ला दें उन्होंने मुझे सोना ला दिया। मैंने उसे आग में डाला और इस प्रकार यह बछड़ा बन गया।''

25) जब मूसा ने देखा कि लोग उच्छृंखल हो गये हैं और हारून ने उन्हें नियन्त्रण में नहीं रखा है, जिससे वे अपने शत्रुओं के लिए हँसी के पात्र बन गये हैं,

26) तो उसने शिविर के प्रवेश पर खड़ा हो कर कहा, ''जो प्रभु का साथ देता है, वह मेरे पास आये।'' सब लेवी उसके पास आये।

27) उसने उन से कहा, ''प्रभु इस्राएल के ईश्वर का यह कहना हैः तुम में से प्रत्येक अपनी तलवार अपनी कमर में बांध ले और शिविर में एक सिरे से दूसरे सिरे तक जा कर सब को मार डाले, चाहे वे अपने भाई, मित्र या पड़ोसी ही क्यों न हो।''

28) लेवियों ने मूसा के आदेश का पालन किया उस दिन लगभग तीस हजार व्यक्ति मारे गये।

29) इसके बाद मूसा ने कहा, ''आज तुम प्रभु को अर्पित हो गये हो, क्योंकि तुमने अपने पुत्रों और भाइयों का विरोध किया और प्रभु ने इस दिन तुम को आशीर्वाद दिया।''

30) दूसरे दिन मूसा ने इस्राएलियों से कहा, ''तुम लोगों ने घोर पाप किया है। मैं अब पर्वत पर प्रभु के पास जा रहा हूँ। यदि हो सका, तो मैं तुम्हारे पाप का प्रायश्चित करूँगा।''

31) मूसा ने प्रभु के पास आ कर कहा, हाय; इन लोगों ने घोर पाप किया है। इन्होंने अपने लिए सोने का देवता बनाया है।

32) ओह; यदि तू इन्हें क्षमा कर दे; नहीं तो, मेरा नाम अपनी लिखी हुई पुस्तक से निकाल दे।

33) प्रभु ने उत्तर दिया, ''जिसने मेरे विरुद्ध पाप किया है, उसी को मैं अपनी पुस्तक से निकाल दूँगा।

34) अब तुम जा कर लोगों को उस स्थान ले चलो, जिसे मैंने तुम्हें बताया हैं। मेरा दूत तुम्हारे आग-आगे चलेगा। जब दण्ड देने का दिन आयेगा, तब मैं लोगों को उनके पाप का दण्ड दूँगा।''

35) प्रभु ने हारून के द्वारा बनाये बछड़े की प्रतिमा के कारण उन लोगों पर आपत्तियाँ ढाहीं।



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