📖 - निर्गमन ग्रन्थ

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अध्याय - 34

1) प्रभु ने मूसा से कहा, तुम पहले की पाटियों के समान ही अपने लिए दो पत्थर की पाटियाँ बनाओ। मैं उन पाटियों पर वे बातें लिखूँगा, जो उन पहली पाटियों पर थीं, जिनके तूने टुकड़े कर डाले थे।

2) कल प्रातःकाल तैयार रहो। कल प्रातःकाल सीनई पर्वत पर चढ़ो और पहाड़ की चोटी पर मेरे सामने उपस्थित हो जाओ।

3) तुम्हारे साथ और कोई दिखाई नहीं दे। पर्वत के पास भेड़े या गायें नहीं चरें।''

4) मूसा, प्रभु की आज्ञानुसार, पत्थर की वह दो पाटियाँ हाथ में लिये बहुत सबेरे सीनई पर्वत पर चढ़ा।

5) प्रभु बादल के रूप में उतर कर उसके पास आया और अपना "प्रभु" नाम प्रकट किया।

6) प्रभु ने उसके सामने से निकल कर कहा, ''प्रभुः प्रभु एक करूणामय तथ कृपालु ईश्वर है। वह देर से क्रोध करता और अनुकम्पा तथा सत्यप्रतिज्ञता का धनी है।

7) वह हजार पीढ़ियों तक अपनी कृपा बनाये रखता और बुराई, अपराध और पाप क्षमा करता है।''

8) मूसा ने तुरन्त दण्डवत् कर उसकी आराधना की

9) और कहा, ''प्रभु; यदि मुझ पर तेरी कृपादृष्टि है, तो मेरा प्रभु हमारे साथ चले। ये लोग हठधर्मी तो हैं, किन्तु तू हमारे अपराध तथा पाप क्षमा कर दे और हमें अपनी निजी प्रजा बना ले।''

10) प्रभु ने उत्तर दिया, मैं तुम्हारे लिए एक विधान निर्धारित करता हूँ। मैं तुम्हारे सभी लोगों के सामने ऐसे चमत्कार दिखाऊँगा जैसे मैंने अब तक न कभी सारी पृथ्वी पर और न कभी किसी राष्ट्र के सामने दिखाये। जिन लोगों के बीच तुम रहते हो, वे समझ जायेंगे कि जो कार्य मैं, प्रभु, तुम्हारे लिऐ करूँगा, वे कितने विस्मयकारी हैं।

11) जो आदेश मैं आज दे रहा हूँ, उनका पालन करो। मैं अमोरियों, कनानियों, हित्तियों, परिज्जियों, हिव्वियों और यबूसियों को तुम्हारे सामने से भगा दूँगा।

12) तुम जिस देश में प्रवेश करने वाले हो, उस देश के निवासियों के साथ सन्धि मत करो। कहीं ऐसा न हो कि वे तुम्हारे लिए फन्दा बन जायें।

13) उनकी वेदियों को तोड़ दो, उनके पवित्र स्मारकों को गिराओ और उनकी पूजा के खूँटों को काट दो।

14) किसी दूसरे देवता की आराधना नहीं करो, क्योंकि प्रभु यह सहन नहीं करता। इस दृष्टि से वह असहिष्णु है।

15) उस देश के निवासियों के साथ, जो अपने देवताओं की पूजा करते हैं और उन्हें बलि चढ़ाते हैं, सन्धि मत करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम को अपने देवताओं का प्रसाद खाने का निमन्त्रण दें।

16) तुम उनकी कन्याओं के साथ अपने पुत्रों का विवाह नहीं करोगे। कहीं ऐसा न हो कि वे अपने देवताओं की मूर्तिपूजा करें और तुम्हारे पुत्र भी ऐसा करें।

17) ''तुम अपने लिए कोई देवमूर्ति नहीं बनाओगे।

18) जब तुम आबीब मास के निर्धारित समय पर बेख़मीर रोटियाँ का पर्व मनाओगे, तब मेरे आज्ञानुसार सात दिन तक बेखमीर रोटियाँ खानी होंगी, क्योंकि आबीब महीने में तुम मिस्र से निकल आये थे।

19) मुझे सब पहलौठे बच्चों को अर्पित करोगे और अपने सब पशुओं के पहलौठे बच्चे को भी - चाहे गाय का हो, चाहे भेड़ का।

20) गधे के प्रत्येक पहलौठे बच्चे को मेमने से छुड़ाओगे। यदि तुम उसे छुड़ाना नहीं चाहते, तो उसकी गर्दन तोड़ दोगे। अपने पुत्रों के प्रत्येक पहलौठे पुत्र के बदले कुछ दे कर उसे छुड़ा लोगे। कोई भी खाली हाथ मेरे दर्शन को नहीं आयेगा।

21) छः दिन तक काम करोगे और सातवें दिन विश्राम करोगे। हल जोतते और फ़सल काटते समय भी विश्राम-दिवस मनाओगे।

22) नये गेहूँ की फ़सल के समय "सप्ताहों का पर्व" मनाओगे और वर्ष के अन्त में संचय-पर्व।

23) प्रत्येक वर्ष तीन बार सब पुरुष सर्वोच्च प्रभु, इस्राएल के ईश्वर, के सामने उपस्थित हुआ करें।

24) मैं तुम्हारे सामने से राष्ट्रों को भगा दूँगा, तुम्हारी सीमाओं का विस्तार करूँगा, और जब तुम प्रति वर्ष तीन बार अपने प्रभु-ईश्वर के सामने उपस्थित हुआ करोगे, तो कोई भी तुम्हारी भूमि पर आँख नहीं लगायेगा।

25) बलि का रक्त किसी ख़मीरी पदार्थ के साथ नहीं चढ़ाओगे। पास्का-पर्व की बलि का कोई अंश दूसरे दिन के लिए नहीं रहने दोगे।

26) अपने खेत के प्रथम फसल का उत्तम अंश तुम अपने प्रभु ईश्वर के निवास ला कर चढ़ाओगे। किसी मेमने को उसकी माँ के दूध में नहीं उबालोगे।

27) इसके बाद प्रभु ने मूसा से कहा, ''ये शब्द लिख लो, क्योंकि मैंने इनके द्वारा तुम्हारे और इस्राएलियों के लिए अपना विधान निर्धारित किया है।''

28) मूसा वहाँ चालीस दिन और चालीस रात प्रभु के साथ रहा। उसने न तो रोटी खायी और न पानी पिया। उसने विधान के शब्द, अर्थात दस नियम पाटियों पर अंकित किये।

29) जब मूसा नियम की दोनों पाटियाँ हाथ में लिये सीनई पर्वत से उतरा, तो उसे यह पता नहीं था कि ईश्वर से बातें करने के फलस्वरूप उसका मुखमण्डल देदीप्यमान है।

30) हारून और दूसरे इस्राएली मूसा का देदीप्यमान मुखमण्डल देख कर उसके निकट जाने से डरने लगे।

31) मूसा ने उन्हें बुलाया। इस पर हारून और समुदाय के नेता उसके पास आये और मूसा ने उन्हें सम्बोधित किया।

32) इसके बाद सभी इस्राएली उसके पास आये और मूसा ने उन्हें वे सब आदेश सुनाये, जिन्हें प्रभु ने सीनई पर्वत पर उसे दिया था।

33) लोगों को सम्बोधित करने के बाद मूसा ने अपना मुख परदे से ढक लिया।

34) जब-जब मूसा प्रभु से बातें करने तम्बू में प्रवेश करता था, तो वह बाहर निकलने तक वह परदा हटा दिया करता था। बाहर निकलने के बाद जब वह ईश्वर से मिले आदेश इस्राएलियों को सुनाता था,

35) तो इस्राएली मूसा का देदीप्यमान मुखमण्डल देखा करते थे। इसके बाद प्रभु से बात करने के लिए तम्बू में प्रवेश करने के समय तक, मूसा फिर अपना मुख परदे से ढक लिया करता था।



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