📖 - निर्गमन ग्रन्थ

अध्याय ==> 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- 08- 09- 10- 11- 12- 13- 14- 15- 16- 17- 18- 19- 20- 21- 22- 23- 24- 25- 26- 27- 28- 29- 30- 31- 32- 33- 34- 35- 36- 37- 38- 39- 40- मुख्य पृष्ठ

अध्याय - 35

1) मूसा ने इस्राएलियों के सारे समुदाय को एकत्रित कर उन से कहा, ''प्रभु के आदेश इस प्रकार हैं। उनका पालन करो।

2) छः दिन तक काम किया जाये और सातवें दिन विश्राम-दिवस मनाओ। वह प्रभु का पवित्र दिन होगा। जो उस दिन काम करेगा, उसे प्राणदण्ड दिया जायेगा।

3) विश्राम-दिवस पर अपने घरों में आग नहीं सुलगाओ।

4) मूसा ने इस्राएलियों के सारे समुदाय से कहा, प्रभु ने यह आदेश दिया है :

5) अपनी सम्पति से प्रभु को चन्दा दो। जो चाहता है, वह प्रभु को चन्दा अर्पित करे - सोना, चाँदी और काँसा;

6) नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े और छालटी बकरी के बाल;

7) मेढ़ों की सीझी हुई लाल खालें और सूस की खालें; बबूल की लकड़ी;

8) दीपक के लिए तेल; अभ्यंजन के तेल और सुगन्धित लोबान के लिए मसाले;

9) एफोद और वक्षपेटिका में लगाने के लिए सुलेमानी और अन्य मणियाँ।

10) तुम में जो शिल्पकार हों वे आ कर प्रभु के आदेश के अनुसार सब कुछ तैयार करें -

11) निवास, उसका तम्बू और उसका आवरण; अँकुड़े, चौखटें और छड़; उसके खूँटे और उसकी कुर्सियाँ;

12) मंजूषा और उसके डण्डे; छादन-फलक और उसका परदा;

13) मेज, उसके डण्डे और उसका सब सामान; भेंट की रोटियाँ;

14) पात्रों और दीपकों के साथ दीपवृक्ष और दीपकों के लिए तेल,

15) डण्डों के साथ धूप-वेदी, अभ्यंजन का तेल और सुगन्धित लोबान; निवास के द्वार पर का परदा,

16) काँसे की झंझरी के साथ बलि-वेदी, उसके डण्डे और उसका सब सामान, चिलमची और उसकी चौकी;

17) आँगन के परदे, उसके खूँटे, उसकी कुर्सियाँ और आँगन के द्वार के लिए परदा,

18) तम्बू की खूँटियाँ और उसके साथ की आवश्यक रस्सियाँ,

19) पवित्र-स्थान की सेवा के उपयोगी बुने हुए वस्त्र, याजक हारून के पवित्र वस्त्र और उसके पुत्रों के वस्त्र, जिन्हें धारण कर वे याजकीय सेवा करें।

20) इस पर इस्राएलियों का सारा समुदाय मूसा के पास से चला गया।

21) बाद में, जो लोग उदार थे, वे स्वेच्छा से दर्शन-कक्ष बनाने, उसकी सेवा के लिए और पवित्र वस्त्रों के लिए प्रभु को अपना चन्दा देने आये।

22) पुरुष और स्त्रियाँ समान रूप से स्वच्छा से जुगनूँ, बालियाँ, अँगुठियाँ, भुजबन्ध सब प्रकार के स्वर्ण आभूषण ले आये। वे प्रभु को अपना सोना अर्पित करते थे।

23) जिसके पास नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े या छालटी के कपड़े या बकरी के बाल या मेढ़ों की सीझी हुई खालें या सूस की खालें थीं, वह उन्हें ले आया।

24) जो चाँदी या काँसे की भेंट दे सकता था, वह भी उसे प्रभु के लिऐ भेंटस्वरूप लाया। जिसके पास उपयोग के योग्य बबूल की लकड़ी थी, वह उसे ले आया।

25) सब निपुण स्त्रियाँ अपने हाथों से सूत कातती थीं और कात कर नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े और छालटी के कपड़े लाती थीं

26) और जिन स्त्रियों को बकरी के बाल कातना आता था, उन्होंने उन्हें काता।

27) नेता एफ़ोद और वक्षपेटिका में लगाने के लिए सुलेमानी और अन्य मणियाँ ले आये।

28) वे दीपक, अभ्यंजन का तेल और सुगन्धित लोबान के लिए मसाले और तेल ले आये।

29) प्रभु ने जो कार्य सम्पन्न करने का आदेश उन्हें मूसा द्वारा दिया था, उसके लिए सभी इस्राएली स्त्री-पुरुष स्वेच्छा से चन्दा देने आये।

30) इस पर मूसा ने इस्राएलियों से कहा, ''देखो, प्रभु ने यूदावंशी ऊरी के पुत्र और हूर के पौत्र बसलएल को चुना है

31) और उसे असाधारण प्रतिभा, प्रवीणता ज्ञान और बहुविध कौशल प्रदान किया है।

32) वह कलात्मक नमूने तैयार कर उन्हें सोने, चाँदी और काँसे पर बना सकता है।

33) वह मणियाँ काट कर उन्हें जड़ सकता है और लकड़ी पर खुदाई कर सकता है। वह हर प्रकार के शिल्प में प्रवीण है।

34) उसने उसे और दानवंशी अहीसामाक के पुत्र ओहोलीआब को दूसरों को सिखाने की योग्यता भी दी है।

35) उसने उन सब को हर प्रकार का कौशल प्रदान किया। उन्हें मणियाँ काटना, काढ़ना, नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े बनाना और छालटी बनाना और छालटी बुनना आता है। वे स्वयं नमूने बना कर हर प्रकार की शिल्पकारी करते हैं।



Copyright © www.jayesu.com