📖 - निर्गमन ग्रन्थ

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अध्याय - 38

1) फिर उन्होंने बबूल की लकड़ी से पाँच हाथ लम्बी और पाँच हाथ चौड़ी-होम बलि की वेदी बनायी। वह वर्गाकार और तीन हाथ ऊँची थी।

2) उसके चारों कोनों पर उन्होनें सींग बनाये। वेदी और सींग एक ही काष्ठ-खण्ड के बने थे। उन्होंने उसे काँसे से मढ़ा।

3) उन्होने वेदी का सब आवश्यक सामान भी बनाया : पात्र, फावडियाँ, कटोरे, काँटे और कलछे। यह सब सामान काँसे का था।

4) उन्होंने वेदी के लिए काँसे की जाली की एक झंझरी बनायी, जो वेदी की आधी ऊँचाई तक पहुँचती थी।

5) उन्होंने जाली के चारों कोनों पर डण्डों के लिए काँसे के चार कड़े बनाये।

6) डण्डे बबूल की लकड़ी के बने थे और काँसे से मढ़े थे।

7) तब उन्होंने डण्डों को वेदी के दोनों ओर के कड़ों में लगाया, जिससे वेदी उठायी जा सके। उन्होंने वेदी तख्तों से बनायी। वह अन्दर खोखली थी।

8) उन्होंने दर्शन-कक्ष के द्वार पर सेवा करने वाली स्त्रियों के दर्पणों से काँसे की चिलमची बनायी और उसके लिए काँसे की चौकी भी बनायी।

9) फिर उन्होंने आँगन तैयार किया। आँगन के दक्षिणी किनारे के लिए उन्होंने बटी हुई छालटी के एक सौ हाथ लम्बे परदे बनाये,

10) साथ-साथ काँसे के बीस खूँटे और कुर्सियाँ, चाँदी के अँकुड़े और पट्टियाँ।

11) उत्तरी किनारे के लिए उन्होंने एक सौ हाथ लम्बें परदे, बीस काँसे के खूँटे और कुर्सियाँ तथा चाँदी के अँकुड़े और पट्टियाँ बनायीं।

12) पश्चिमी किनारे के लिए उन्होंने पचास हाथ लम्बे परदे, दस खूँटे और कुर्सियाँ तथा चाँदी के अँकुड़े और पट्टियाँ बनायीं।

13) पूर्व का किनारा पचास हाथ लम्बा था।

14) प्रवेश-द्वार की एक ओर पन्द्रह हाथ लम्बे परदे, तीन खूँटे और कुर्सियाँ थी।

15) दूसरी ओर भी पन्द्रह हाथ लम्बे परदे, तीन खूँटे और कुर्सियाँ थीं। इस प्रकार द्वार के दोनों ओर परदे थे।

16) आँगन के चारों ओर के परदे छालटी के थे।

17) खूँटों की कुर्सियाँ काँसे की थी और अँकुड़े एवं पट्टियाँ चाँदी की थी। खूँटों के अँकुड़े और उनकी पट्टियाँ चाँदी की थीं। खूँटों का ऊपरी भाग चाँदी से मढ़ा था और उनकी पट्टियाँ चाँदी की थीं।

18) आँगन के द्वार के लिऐ नीले, बैगनी और लाल कपड़ों तथा बटी हुई छालटी के कपड़ों का परदा बनाया गया। उस में बेलबूटे कढ़े थे। आँगन के अन्य परदों की तरह उसकी लम्बाई बीस हाथ और उसकी ऊँचाई पाँच हाथ थी।

19) उसके चार खूँटे थे। उनके लिए काँसे की चार कुर्सियाँ और चाँदी के अँकुड़े थे। उनका ऊपरी भाग चाँदी से मढ़ा था और उनकी पट्टियाँ चाँदी की थी।

20) निवास और आँगन की सब खूँटियाँ काँसे की थी।

21) निवास अर्थात् विधान-पत्र के तम्बू के निर्माण में प्रयुक्त सामान का विवरण इस प्रकार है। मूसा की आज्ञा के अनुसार यह विवरण याजक हारून के पुत्र ईतामार की देखरेख में लेवियों द्वारा तैयार किया गया था।

22) प्रभु ने मूसा को जो आदेश दिया था, उसके अनुसार यूदावंशी ऊरी के पुत्र और हूर के पौत्र बसलएल ने सब कुछ बनाया।

23) उसके साथ दानवंशी अहीसामाक के पुत्र शिल्पकार ओहोलीआब ने काम किया। वह नमूने बनाता था और नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़ों तथा छालटी में कढ़ाई करता था।

24) चन्दे में अर्पित सोना, जो पवित्र-स्थान के निर्माण में प्रयुक्त हुआ, उसका वजन कुल मिला कर उनतीस मन और पवित्र-स्थान की तौल के अनुसार सात सौ तीस शेकेल था।

25) समुदाय के नामांकन से प्राप्त चाँदी का वजन एक सौ मन और पवित्र-स्थान की तौल के अनुसार सत्रह सौ पचहत्तर शेकेल था।

26) बीस साल और उस से ऊपर के हर नामांकित व्यक्ति से एक बेका, अर्थात् आधा शेकेल लिया गया था। कुल मिला कर छह लाख साढ़े तीन हजार व्यक्ति थे।

27) उन्होंने चाँदी के सौ मन से पवित्र-स्थान की कुर्सियाँ और अन्तरपट की कुर्सियाँ ढालीं, अर्थात् सौ कुर्सियों के लिए सौ मन, एक-एक कुर्सी के लिए एक-एक मन।

28) शेष सत्रह सौ पचहत्तर शेकेलों से खूटों के अँकुड़े बनाये गये, उनका ऊपरी भाग मढ़ा गया और पट्टियाँ बनायी गयी थीं।

29) चन्दे के रूप में दिया गया काँसा सत्तर मन और दो हजार सौ शेकेल था।

30) इस से दर्शन-कक्ष के द्वार की कुर्सियाँ, काँसे की वेदी, काँसे की झंझरी और वेदी का अन्य सामान

31) तथा आँगन के चारों ओर की कुर्सियाँ, आँगन के द्वार की कुर्सियाँ, निवास की सब खूँटियाँ और आँगन के चारों ओर की सब खूँटियाँ बनायी गयी थी।



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