📖 - विधि-विवरण ग्रन्थ

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अध्याय 06

1) "तुम्हारे प्रभु-ईश्वर ने तुम लोगों को ये नियम, आदेश और विधि-निषेध सिखाने का आदेश दिया है, जिससे तुम नदी पार कर जिस देश पर अधिकार करने जा रहे हो वहाँ उनका पालन करते रहो।

2) यदि तुम अपने पुत्रों और पौत्रों के साथ जीवन भर अपने प्रभु-ईश्वर पर श्रद्धा रखोगे और जो नियम तथा आदेश मैं तुम्हें दे रहा हूँ, यदि तुम उनका पालन करोगे, तो तुम्हारी आयु लम्बी होगी।

3) इस्राएल यदि तुम सुनोगे और सावधानी से उनका पालन करोगे, तो तुम्हारा कल्याण होगा, तुम फलोगे-फूलोगे और जैसा कि प्रभु, तुम्हारे पूर्वजों के ईश्वर ने कहा, वह तुम्हें वह देश प्रदान करेगा, जहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं।

4) इस्राएल सुनो। हमारा प्रभु-ईश्वर एकमात्र प्रभु है।

5) तुम अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी शक्ति से प्यार करो।

6) जो शब्द मैं तुम्हें आज सुना रहा हूँ वे तुम्हारे हृदय पर अंकित रहें।

7) तुम उन्हें अपने पुत्रों को अच्छी तरह सिखाओ। घर में बैठते या राह चलते, शाम को लेटते या सुबह उठते समय, उनकी चरचा किया करो।

8) तुम उन्हें निशानी की तरह अपने हाथ पर और तावीज़ की तरह अपने मस्तक पर बाँधे रखो

9) और अपने घरों की चौखट तथा अपने फाटकों पर लिख दो।

10) जब तुम्हारा प्रभु-ईश्वर तुम लोगो को उस देश ले जायेगा, जिसे उसने शपथ खा कर तुम्हारे पूर्वजों - इब्राहीम, इसहाक और याकूब - को देने की प्रतिज्ञा की है; जहाँ बड़े और भव्य नगर है, जिन्हें तुमने नहीं बनाया;

11) जहाँ के घर कीमती चीजों से भरें हैं; जिन्हें तुमने एकत्र नहीं किया; जहाँ पानी के कुण्ड़ है; जिन्हें तुमने नहीं खोदा; जहाँ दाखबारियाँ और जैतून के पेड़ है, जिन्हें तुमने नहीं लगाया; जब तुम वहाँ खा कर तृप्त हो जाओगे,

12) तो सावधान रहो और अपने प्रभु-ईश्वर को मत भूलो, जो तुम लोगों को मिस्र से - गुलामी के घर से - निकाल लाया।

13) "तुम अपने प्रभु-ईश्वर पर श्रद्धा रखोगे, उसी की सेवा करोगे और उसी के नाम पर शपथ खाओगे।

14) तुम पराये देवताओं के अनुयायी मत बनो - उन राष्ट्रों के देवताओं के जो तुम्हारे आसपास रहते हैं;

15) क्योंकि तुम्हारे बीच रहने वाला तुम्हारा प्रभु ईश्वर एक असहनशील ईश्वर है। ऐसा न हो कि उसका क्रोध तुम पर भड़क उठे और वह देश की भूमि पर से तुम को मिटा दे।

16) "प्रभु, अपने ईश्वर की परीक्षा मत करो, जैसा कि तुम लोगों ने मस्सा में किया था।

17) प्रभु, तुम्हारे ईश्वर ने तुम्हें जो आदेश, नियम और विधि-निषेध दिये हैं; उनका विधिवत् पालन करो।

18) तुम्हें वही करना चाहिए, जो प्रभु की दृष्टि में उचित और भला है। ऐसा करने से तुम्हारा कल्याण होगा और तुम वह रमणीय देश अपने अधिकार में करोगे, जिसे प्रभु ने शपथ खा कर तुम्हारे पूर्वजों को देने की प्रतिज्ञा की है।

19) वह तुम्हारे सामने से तुम्हारे सब शत्रुओं को भगा देगा, जैसे कि उसने प्रतिज्ञा की है।

20) जब भविष्य में तुम्हारा पुत्र तुम से पूछे कि प्रभु, हमारे ईश्वर ने आप को जो आदेश और विधि-निषेध दिये हैं, उनका अर्थ क्या है,

21) तो उसे यह उत्तर दो: ’हम मिस्र में फिराउन के यहाँ दास थे। प्रभु हमें अपने बाहुबल से मिस्र से निकाल लाया।

22) उस समय प्रभु ने हमारी आँखों के सामने ही मिस्र, फिराउन और उसके दरबारियों के विरुद्ध महान् और भयावह चिह्न और चमत्कार दिखाये।

23) वह हमें वहाँ से निकाल कर यहाँ लाया और उसने हमें वह देश दिया, जिसकी उसने शपथ खा कर हमारे पूर्वजों से प्रतिज्ञा की थी।

24) उस समय प्रभु ने हमें आज्ञा दी कि हम इन सब नियमों का पालन करें और प्रभु अपने ईश्वर पर श्रद्धा रखें, जिससे हमारा आजीवन कल्याण हो और हम जीवित रहें जैसे हम आज हैं।

25) यह हमारा धर्म है कि हम प्रभु, अपने ईश्वर के सामने इन सारे नियमों का विधिवत् पालन करते रहें, जैसा कि उसने हमें आदेश दिया है।’



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