📖 - विधि-विवरण ग्रन्थ

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अध्याय 31

1) इसके बाद मूसा ने समस्त इस्राएलियों से कहा,

2) "अब मैं एक सौ बीस वर्षों का हो गया हूँ और चलने-फिरने मे असमर्थ हूँ। प्रभु ने मुझ से कहा, ‘तुम इस यर्दन नदी को पार नहीं करोगे।‘

3) तुम लोगों का प्रभु-ईश्वर तुम से पहले यर्दन पार करेगा। वह तुम्हारे लिए उन लोगों का विनाश करेगा और तुम उनका देश अपने अधिकार में करोगे। योशुआ यर्दन पार करने में तुम्हारा नेतृत्व करेगा, जैसा कि प्रभु ने कहा है।

4) प्रभु उन लोगों का विनाश करेगा, जैसा कि उसने अमोरियों के राजा सीहोन और ओग तथा उनके देश का विनाश किया है।

5) जब प्रभु उन लोगों को तुम्हारे हवाले कर देगा, तो तुम मेरे आदेश के अनुसार ही उनके साथ व्यवहार करोगे।

6) दृढ बने रहो और ढारस रखो! भयभीत न हो और उन से मत डरो क्योंकि तुम्हारा प्रभु-ईश्वर तुम्हारे साथ चलता है। वह तुम्हारा विनाश नहीं करेगा और तुमको नहीं छोडेगा।"

7) तब मूसा ने योशुआ को बुलाया और सभी इस्राएलियों के सामने उससे कहा, “दृढ बने रहो और ढारस रखो! तुम इन लोगों को उस देश ले चलोगे, जिसे प्रभु ने शपथ खाकर उनके पूर्वजों को देने की प्रतिज्ञा की है। तुम उस देश को उनके अधिकार में दे दोगे।

8) प्रभु तुम्हारे आगे-आगे चलेगा और तुम्हारे साथ रहेगा। वह तुम्हें निराश नहीं करेगा और तुम को नहीं छोडेगा। भयभीत न हो और मत डरो।

9) मूसा ने यह संहिता लिखकर इसे विधान की मंजूषा ढोने वाली लेवी वंश के याजकों और इस्राएल के नेताओं को दिया।

10) मूसा ने उन्हें यह आदेश भी दिया, प्रत्येक सातवें वर्ष, ऋण-मुक्ति के वर्ष, शिविर-पर्व के अवसर पर,

11) सब इस्राएली प्रभु, तुम्हारे ईश्वर के सामने उस स्थान पर, जिसे वह चुनेगा, एकत्रित होंगे। तब तुम उन्हें इस संहिता का पाठ पढ़ कर सुनाओगे।

12) तुम सब लोगों को, क्या पुरुषांे, क्या स्त्रियों, क्या बच्चों तथा अपने नगर में रहने वाले प्रवासियों को, सबको इकट्ठा करोगे, जिससे वह सुन सकें, प्रभु, तुम्हारे ईश्वर पर श्रद्धा रखना सीखें और इस संहिता के सब शब्दों का सावधानी से पालन करें।

13) उनके बच्चे, जो यह संहिता नहीं जानते, इसे सुनें और प्रभु तुम्हारे ईश्वर पर तब तक श्रद्धा रखना सीख लें, जब तक तुम उस देश में रहोगे, जिसे अधिकार में करने तुम यर्दन पार करने वाले हो।

14) प्रभु ने मूसा से कहा, “देखो तुम्हारी मृत्यु का समय निकट है। तुम योशुआ को बुला कर उसके साथ दर्शन-कक्ष में प्रवेश करो, जिससे मैं उसे नियुक्त करूँ।“ मूसा और योशुआ जाकर दर्शन-कक्ष में उपस्थित हुए।

15) प्रभु ने शिविर में मेघखण्ड़ के रूप में दर्शन दिये। मेघखण्ड़ दर्शन-कक्ष के द्वार के ऊपर ठहर गया।

16) प्रभु ने मूसा से कहा, “देखो अब तुम अपने पूर्वजों के पास चिरनिद्रा में विश्राम करोगे। इसके बाद ये लोग उस देश के पराये देवताओं के अनुयायी बन कर मेरे साथ विश्वासघात करेंगे, जिसमें वे प्रवेश करेंगे। वे मुझे त्यागदेंगे और वह विधान भंग करेंगे जिसे मैंने उनके लिए निर्धारित किया।

17) उस दिन मेरा क्रोध उनके विरुद्ध प्रज्वलित हो उठेगा। मैं उन्हें त्याग दूँगा और उन पर से अपनी कृपादृष्टि हटाऊँगा; इस से उनका सर्वनाश हो जायेगा। बहुत-सी विपत्तियाँ और कष्ट उन पर टूट पड़ेंगे और उस दिन वे पूछेंगे, ’क्या वे विपत्तियाँ हम पर इसलिए पड़ी हैं कि हमारा ईश्वर हमारे साथ नहीं हैं?'

18) उनके सब कुकर्मों और पराये देवताओं की उनकी भक्ति के कारण मैं अवश्य उन पर से अपनी कृपादृष्टि हटाऊँगा।

19) "अब यह भजन लिख कर इस्राएलियों को सिखाओ और इसे कण्ठस्थ करा दो जिससे यह भजन इस्राएलियों के विरुद्ध मेरे पक्ष में साक्ष्य दे।

20) जब मैं उन्हें उस देश पहुँचा दूँगा, जिसे देने का मैंने उनके पूर्वजों को शपथपूर्वक वचन दिया है, वह देश, जिस में दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं और जब वे वहाँ खाते-पीते हुए फलेंगे-फूलेंगे, तब वे पराये देवताओं के अनुगामी बन कर उनकी पूजा करने लगेंगे

21) तब यदि उन पर बहुत-सी विपत्तियाँ और कष्ट टूट पड़ेंगे तो यह भजन, जो उनके वंशजों को कण्ठस्थ होगा उनके विरुद्ध इस बात का साक्ष्य देगा। मैंने उन्हें अब तक उस देश नहीं पहुँचाया, जिसे उन्हें देने की मैंने शपथपूर्वक प्रतिज्ञा की है, किन्तु मैं जानता हूँ कि वे क्या करना चाहते हैं।''

22) इसलिए उस दिन मूसा ने यह भजन लिख कर उसे इस्राएल के लोगों को सिखाया।

23) नून के पुत्र योशुआ को आदेश दे कर प्रभु ने कहा, “दृढ बने रहो और ढारस रखो तुम लोगों को उस देश ले जाओगे जिसे देने का मैंने उन्हें शपथपूर्वक वचन दिया था। मैं तुम्हारे साथ रहूँगा।“

24) इस संहिता के ये शब्द ग्रन्थ में लिख चुकने के बाद

25) मूसा ने प्रभु के विधान की मंजूषा ढोने वाले लेवियों को यह आदेश दिया,

26) "संहिता का यह ग्रन्थ प्रभु, अपने ईश्वर के विधान की मंजूषा में रखो। यह वहाँ तुम लोगों के विरुद्ध साक्ष्य देगा।

27) मैं तुम लोगों के विद्रोह और हठधार्मिता से परिचित हूँ। देखो, आज जब मेरे जीवत रहते ही तुम लोग प्रभु के विरुद्ध विद्रोह करते रहते हो, तो मेरे मरने के बाद तुम और अधिक विद्रोह करोगे।

28) अब मेरे सामने अपने सब वंशों के नेताओं और अपने सचिवों को एकत्रित करो। मैं उन्हें सुस्पष्ट रूप से ये शब्द सुनाऊँगा और उनके विरुद्ध आकाश और पृथ्वी को साक्षी बनाऊँगा।

29) मैं जानता हूँ कि मेरे मरने के बाद तुम निष्चय ही कुकर्म करोगे और मेरे बताये हुये मार्ग से भटक जाओगे; भविष्य में विपत्तियाँ तुम पर आ पड़ेगी, क्योंकि तुम वही करोगे जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है और अपने हाथ की कृतियों से उसका क्रोध प्रज्वलित करोगे।“

30) इसके बाद मूसा ने सारे इस्राएली समुदाय को यह भजन सुनायाः



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