📖 - योशुआ का ग्रन्थ

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अध्याय 05

1) यर्दन के उस पार पश्चिम में रहने वाले अमोरियों के सब राजाओं और समुद्र के तट पर रहने वाले कनानियों ने सुना कि प्रभु ने इस्राएलियों के लिए तब तक यर्दन का जल सुखा दिया था जब तक उन्होंने यर्दन पार नहीं किया था। यह सुन कर उनका हृदय बैठ गया और उनमें इस्राएल का सामना करने का साहस नहीं रह गया।

2) उस समय प्रभु ने योशुआ से कहा, "चकमक पत्थरों के चाकू बनाओ और एक बार फिर इस्राएलियों का खतना करो"।

3) तब योशुआ ने चकमक पत्थरों के चाकू बनाकर गिबआत हाअरालोत में इस्राएलियों का खतना किया।

4) योशुआ द्वारा लोगों का खतना किये जाना का कारण यह था कि सैनिक सेवा के योग्य सब पुरुष, जो मिस्र से बाहर आये थे, निर्गमन के बाद उजाडखंड के मार्ग में मर गये थे।

5) उन सब पुरुष का, जो मिस्र से बाहर आये थे; खतना हो चुका था किन्तु उन सबका खतना नहीं हुआ था, जो मिस्र से बाहर आने के बाद उजाडखंड के मार्ग में पैदा हुए थे।

6) इस्राएली चालीस वर्ष तक उजाड़खंड में भटकते रहे और इस बीच उन सब पुरूषों की मृत्यु हो गई थी जो मिस्र से बाहर आते समय सैनिक सेवा के योग्य थे क्योंकि उन्होंने प्रभु के आदेश का पालन नहीं किया था। प्रभु ने शपथ खायी थी कि वह उन्हें वह देश देखने नहीं देगा, जिसके विषय में प्रभु ने उनके पूर्वजों को शपथपूर्वक वचन दिया था कि वह उसे हमें दे देगा - एक ऐसा देश, जिसमें दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं।

7) प्रभु ने उनके स्थान पर उनके पुत्रों को तैयार किया और योशुआ ने उनका खतना किया। वे बेख़तना थे क्योंकि उजाड़खंड के मार्ग में उनका खतना नहीं हुआ था

8) जब लोगों का खतना हो गया तो वे अच्छे होने तक शिविर में ही पडे़ रहे।

9) प्रभु ने योशुआ से कहा आज मैंने तुम लोगों पर से मिस्र का कलंक दूर किया इसलिए उस स्थान का नाम आज तक गिलगाल है।

10) इस्राएलियों ने गिलगाल में पडाव डाला और वहाँ येरीखो के मैदान में, महीने के चैदहवें दिन शाम को पास्का पर्व मनाया।

11) पास्का के दूसरे दिन ही उन्होंने उस देश की उपज की बेख़मीर और अनाज की भुनी हुई बालें खायीं।

12) जिस दिन उन्होंने देश की उपज का अन्न पहले पहल खाया उसी दिन से मन्ना का गिरना बंद हो गया। मन्ना नहीं मिलने कारण इस्राएली उस समय से कनान देश की उपज का अन्न खाने लगे।

13) जब योशुआ येरीखो के पास आया, उसने आँखे उठायीं और देखा की एक व्यक्ति हाथ में नगीं तलवार लिये सामने खड़ा है योशुआ ने उसके पास जाकर उससे पूछा तुम हमारे पक्ष के हो या शत्रु पक्ष के?"

14) उसने उत्तर दिया, "नहीं, मैं प्रभु की सेना का सैनापति हूँ। मैं अभी-अभी आया हूँ।" यह सुनकर योशुआ ने मुँह के बल उसे दण्डवत किया और उससे पूछा, "मेरे प्रभु की अपने सेवक के लिए क्या आज्ञा है?"

15) प्रभु की सेना के सेनापति ने योशुआ को उत्तर दिया, "अपने पैरों से अपने जूते उतार लो क्योंकि तुम जिस स्थान पर खडे़ वह पवित्र है"। योशुआ ने ऐसा ही किया।



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