📖 - योशुआ का ग्रन्थ

अध्याय ➤ 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- 08- 09- 10- 11- 12- 13- 14- 15- 16- 17- 18- 19- 20- 21- 22- 23- 24-. मुख्य पृष्ठ

अध्याय 07

1) इस्राएलियों ने प्रभु को अर्पित वस्तुओं के विषय में पाप किया। यूदावंशी आकान ने, जिसके पुरखे करमी जब्दी और जेरह थे, उन वस्तुओं में से अपने लिए कुछ ले लिया। इसलिए प्रभु की क्रोधाग्नि इस्राएलियों के विरुद्ध भड़क उठी।

2) योशुआ ने येरीखो से कई पुरुषों को बेत आवेन के निकट अय जो बेतेल के पूर्व में स्थित है, यह कहते हुए भेजा कि वहाँ जा कर उस प्रान्त का भेद लो। तब उन पुरुषों जाकर अय का भेद लिया।

3) योशुआ के पास लौट कर उन्होंने उस से कहा, "वहाँ सारी सेना भेजने की जरूरत नहीं है। दो या तीन हजार आदमी जायें और अय पर आक्रमण करें। उन लोगो की संख्या अधिक नहीं है इसलिए वहाँ सब लोगों को जाने का कष्ट न दें।"

4) अतः लोगों में लगभग तीन हजार पुरुष वहाँ गये, परन्तु अय के लोगों के सामने उन्हें पीठ दिखानी पड़ी।

5) अय के लोगों ने उन में लगभग छत्तीस को मार डाला और नगर के फाटक के सामने से शबारीम तक उनका पीछा किया और ढलान पर उन्हें मार डाला। लोगों का हृदय दहल उठा और उनका साहस टूट गया।

6) योशुआ ने अपने वस्त्र फाड़े और वह तथा इस्राएल के नेता शाम तक प्रभु की मंजूषा के सामने मुँह के बल पड़े रहे। उन्होंने अपने-अपने सिर पर राख डाली।

7) योशुआ ने प्रार्थना की, "हाय! प्रभु! मेरे स्वामी! तूने क्यों इस प्रजा को यर्दन पार करने दिया? क्या तू हमें अमोरियों के हवाले कर हमारा सर्वनाश करना चाहता है? इस से तो यही अच्छा होता कि हम यर्दन के उस पार ही रह गये होते।

8) स्वामी! मैं अब क्या कहूँ? इस्राएल ने अपने शत्रुओं को पीठ दिखायी।

9) कनानी और इस देश के सब निवासी यह सुन कर हम पर टूट पड़ेगे और पृथ्वी पर से हमारा नाम मिटा देंगे। तब तू अपने महान नाम के लिए क्या करेगा?"

10) प्रभु ने योशुआ से कहा, "उठो तुम मुँह के बल क्यों पड़े हुए हो?

11) इस्राएल ने पाप किया है। उसने मुझे अर्पित वस्तुएँ ले कर अपने को दी हुई मेरी आज्ञा भंग की। उसने चोरी की और चोरी का माल अपने सामान में छिपा लिया।

12) इस्राएली अपने शत्रुओं का सामना नहीं कर कर पायेंगे। उन्हें अपने शत्रुओं के सामने से इसीलिए भागना पड़ेगा कि वे स्वयं नष्ट हो जायेंगे। मैं तुम लोगों के साथ तब तक नहीं रहूँगा जब तक तुम अपने बीच से मुझे अर्पित वस्तुएँ नष्ट नहीं करोगे।

13) उठो लोगो को पवित्र हो जाने का आदेश दो और उन से कहो, ’कल के लिए अपने को पवित्र करो; क्योंकि प्रभु इस्राएल का ईश्वर यह कहता है -इसाएल! मुझे अर्पित वस्तुएँ तुम्हारे पास है। जब तक तुम उन्हें नहीं हटा दोगे तब तक अपने शत्रुओं का सामना नहीं कर पाओगे।

14) इसलिए कल सबेरे अपने-अपने वंश के क्रम के अनुसार उपस्थित हो जाओ। प्रभु द्वारा निर्दिष्ट वंश अपने कुलों के क्रम से सामने आयेगा; प्रभु द्वारा निर्दिष्ट घराने के पुरुष एक-एक कर सामने आयेंगे।

15) जिसके पास प्रभु को अर्पित वस्तुएँ मिलेंगी, उसे और उसका सब कुछ आग में जलाया जायेगा; क्योंकि उसने प्रभु की आज्ञा भंग कर इस्राएल में अशोभनीय कार्य किया है’।"

16) दूसरे दिन बड़े सबेरे योशुआ ने इस्राएलियों को वंशो के क्रम से अपने पास बुलाया। यूदा वंश का निर्देश किया गया।

17) इसके बाद उसने यूदा के कुलों को पास बुलाया, तो जेरह कुल का निर्देश किया गया। फिर उसने जेरह कुल के घरानों को एक-एक कर अपने पास बुलाया और जब्दी का निर्देश किया गया।

18) फिर उसने उस घराने के पुरुषों को एक-एक कर अपने पास बुलाया और आकान का निर्देश किया गया। उसके पुरूखे यूदा वंश के करमी जब्दी और जेरह थे।

19) तब योशुआ ने आकान से कहा, "बेटा! प्रभु इस्राएल के ईश्वर की महिमा और स्तुतिगान करो। मुझ से सच-सच कहो कि तुमने क्या किया है। मुझ से कुछ नहीं छिपाओ।"

20) आकान ने योशुआ को उत्तर दिया, "मैंने सचमुच प्रभु, इस्राएल के ईश्वर के विरुद्ध अपराध किया है। मैंने यह किया था:

21) मैंने लूट के माल में षिनआर देश का एक सुन्दर वस्त्र, दो सौ चाँदी शेकेल और पचास शेकेल की सोने की ईंट देखी। मेरे मन में लालच उत्पन्न हुआ और मैंने उन्हें रख लिया। वे मेरे तम्बू के भीतर जमीन में गड़े है। चाँदी सब से नीचे है।"

22) इस पर योशुआ ने दूतों को भेजा। वे दौड़ते हुए तम्बू पहुँचे और वे वस्तुएँ सचमुच तम्बू के नीचे गड़ी पायी गयी।

23) चाँदी सब के नीचे थी। उन्होंने उन वस्तुओं को तम्बू से निकाल कर योशुआ और सभी इस्राएलियों के पास ला कर प्रभु के सामने रख दिया।

24) इसके बाद योशुआ सभी इस्राएलियों के साथ जे़रह के पुत्र आकान को लेकर और चाँदी, वस्त्र और सोने र्की इंट, उसके पुत्र, पुत्रियाँ, उसकी गायें, गधे, भेड़ें, उसका तम्बू और उसका अन्य सब कुछ लेकर आकोर की घाटी में पहुँचा।

25) योशुआ ने कहा, "तुमने हमें विपत्ति का शिकार क्यों बनाया? प्रभु आज तुम पर विपत्ति डाले।" तब सब इस्राएलियों ने पत्थर फेंक-फेंक कर उन्हें मार डाला। पत्थरों से मार डालने के बाद उन्होंने उन को आग में जला दिया।

26) फिर उसके ऊपर उन्होंने पत्थरों का एक बड़ा ढेर लगा दिया, जो आज तक वहाँ पड़ा है। तब प्रभु का महाकोप शान्त हुआ। इसलिए आज तक वह स्थान आकोर की घाटी कहलाता है।



Copyright © www.jayesu.com