📖 - योशुआ का ग्रन्थ

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अध्याय 24

1) योशुआ ने सिखेम में सब इस्राएली वंशों को इकट्टा कर लिया। इसके बाद उसने इस्राएल के वयोवृद्ध नेताओ, न्यायकर्ताओं और शास्त्रियों को बुला भेजा और वे सब ईश्वर के सामने उपस्थित हो गये।

2) तब योशुआ ने समस्त लोगों से कहा, इस्राएल का प्रभु ईश्वर यह कहता है प्राचीन काल में तुम लोगों के पूर्वज, इब्राहीम और नाहोर का पिता तेरह, फरात नदी के उस पार निवास करते थे। वे अन्य देवताओं की उपासना करते थे।

3) मैंने तुम्हारे पिता इब्राहीम को नदी के उस पार से बुलाया और सारा कनान देश घुमाया। मैंने उसके वंशजों की संख्या बढ़ायी मैंने उसे इसहाक को दिया

4) और इसहाक को मैंने याकूब और एसाव को प्रदान किया। मैंने एसाव को सेईर का पहाड़ी देश दे दिया, किन्तु याकूब और उसके पुत्र मिस्र चले गये।

5) मैंने मूसा और हारून को भेजा और चमत्कार दिखा कर मिस्रियों को पीड़ित किया। इसके बाद मैं तुम लोगों को निकाल लाया।

6) मैं तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से निकाल लाया और तुम लाल समुद्र तक पहुँचे। तब मिस्रियों ने रथों और घोड़ों पर सवार हो कर समुद्र तक तुम्हारे पूर्वजों का पीछा किया।

7) जब तुम्हारे पूर्वजों ने प्रभु की दुहाई दी, तो उसने तुम्हारे और मिस्रियों के बीच एक घना कुहरा फैला दिया और मिस्रियों पर समुद्र बहा दिया, जिससे वे डूब गये। तुमने अपनी ही आँखों से देखा कि मैंने मिस्र में तुम्हारे लिए क्या-क्या किया। इसके बाद तुम लोग बहुत समय तक मरुभूमि में निवास करते रहे।

8) तब मैं तुम को यर्दन के उस पार रहने वाले अमोरियों के देश ले गया। उन्होंने तुम पर आक्रमण किया और मैंने उन्हें तुम लोगों के हवाले कर दिया। तुमने उनका देश अपने अधिकार में कर लिया और मैंने तुम्हारे लिए उनका विनाश किया।

9) तब मोआब का राजा, सिप्पोर का पुत्र बालाक, इस्राएल के विरुद्ध युद्ध की तैयारी करने लगा। उसने तुम्हें अभिशाप देने के लिए बओर के पुत्र बिलआम को बुला भेजा।

10) किन्तु मैंने बिलआम की बात नहीं मानी और उसे तुम लोगों को आशीर्वाद देना पड़ा। इस प्रकार मैंने तुम को बालाक के हाथ से बचाया।

11) इसके बाद तुम लोग यर्दन पार कर येरीखो आये। येरीखो के नागरिकों अमोरियों, परिज्ज़ियों, कनानियों, हित्तियों, गिरगाषियों, हिव्वियों और यबूसियों ने तुम्हारा सामना किया, किन्तु मैंने उन्हें तुम लोगों के हवाले कर दिया।

12) मैंने तुम लोगों के आगे आतंक फैला दिया और इस कारण - तुम्हारी तलवार और तुम्हारे धनुष के कारण नहीं - अमोरियों के दोनों राजा तुम्हारे सामने से भाग गये।

13) मैंने तुम्हें एक ऐसा देश दे दिया, जिसके लिए तुमने परिश्रम नहीं किया, निवास के लिए ऐसे नगर दे दिये, जिन्हें तुमने नहीं बनाया और जीवन निर्वाह के लिए ऐसी दाखबारियों और जैतून के पेड़, जिन्हें तुमने नहीं लगाया।

14) प्रभु पर श्रद्धा रखो और ईमारदारी तथा सच्चाई से उसकी उपासना करो। उन देवताओं का बहिष्कार करो, जिनकी उपासना तुम्हारे पूर्वज फरात नदी के उस पार और मिस्र में किया करते थे। तुम प्रभु की उपासना करो।

15) यदि तुम ईश्वर की उपासना नहीं करना चाहते, तो आज ही तय कर लो कि तुम किसकी उपासना करना चाहते हो- उन देवताओं की, जिनकी उपासना तुम्हारे पूर्वज नदी के उस पार करते थे अथवा अमोरियों के देवताओं की, जिनके देश में तुम रहते हो। मैं और मेरा परिवार, हम सब प्रभु की उपासना करना चाहते हैं।

16) लोगों ने उत्तर दिया, "प्रभु के छोड़ कर अन्य देवताओं की उपासना करने का विचार हम से कोसों दूर है।

17) हमारे प्रभु-ईश्वर ने हमें और हमारे पूर्वजों को दासता के घर से, मिस्र देश से निकाल लिया है। उसी ने हमारे सामने महान् चमत्कार दिखाये हैं। हम बहुत लम्बा रास्ता तय कर चुके हैं, बहुत से राष्ट्रों से हो कर यहाँ तक आये हैं और सर्वत्र उसी ने हमारी रक्षा की है।

18) हम भी प्रभु की उपासना करना चाहते हैं, क्योंकि वही हमारा ईश्वर है।

19) तब योशुआ ने लोगों से कहा, "तुम प्रभु की उपासना नहीं कर सकोगे, क्योंकि वह पवित्र ईश्वर है, असहनशील ईश्वर है। वह तुम्हारे अपराध और पाप नहीं क्षमा करेगा।

20) यदि प्रभु को त्याग कर अन्य देवताओं की उपासना करोगे, तो यद्यपि वह तुम्हारी भलाई करता रहा, फिर भी वह तुम्हारी बुराई करेगा और तुम्हें नष्ट कर देगा।"

21) लोगों ने योशुआ से कहा, "नहीं! हम प्रभु की उपासना करेंगे।"

22) तब योशुआ ने लोगों से कहा, "तुम लोग अपने विरुद्ध साक्षी हो कि तुमने प्रभु को चुन लिया ओर उसी की उपासना करोगे"। उन्होंने उत्तर दिया, "हम साक्षी हैं।"

23) इस पर योशुआ ने कहा, "तब तो अपने पास के पराये देवताओं का बहिष्कार करो और अपना मन ईश्वर में, इस्राएल के प्रभु में लगाओ"।

24) लोगों ने योशुआ को यह उत्तर दिया, "हम प्रभु अपने ईश्वर की उपासना करेंगे और उसी की बात मानेंगे"।

25) योशुआ ने उसी दिन लोगों के साथ समझौता कर लिया। उसने सिखेम में उनके लिए संविधान और अध्यादेश बनाया।

26) इसके बाद उसने उन बातों को प्रभु की संहिता के ग्रन्थ में लिख दिया। उसने बलूत के नीचे, प्रभु के मंदिर में एक बड़ा पत्थर खड़ा कर दिया

27) और सब लोगों से कहा, यह पत्थर हमारे विरुद्ध साक्ष्य देगा, क्योंकि इसने उन सब बातों को सुना, जिन्हें प्रभु ने हमें बताया। इसलिए यह तुम्हारे विरुध्द साक्ष्य देगा, जिससे तुम अपने ईश्वर को अस्वीकार नहीं करो।"

28) इसके बाद योशुआ ने लोगों को अपनी अपनी भूमि में भेज दिया।

29) इन घटनाओं के बाद प्रभु के सेवक, नून के पुत्र योशुआ का, एक सौ दस वर्ष की उम्र में देहान्त हुआ।

30) वह गाष पर्वत के उत्तर में, एफ्रईम के पहाड़ी प्रदेश के तिमनत सेरह में, अपने निजी दायभाग की मिट्टी में दफनाया गया।

31) योशुआ और उसके बाद जीवित रहने वाले उन नेताओं के जीवनकाल तक, जो इस्राएल के लिए प्रभु द्वारा किये हुए समस्त कार्य जानते थे, इस्राएली प्रभु की सेवा करते रहे।

32) यूसुफ़ की अस्थियाँ, जिन्हें इस्राएली मिस्र से ले आये थे, सिखेम के उस भूभाग में गाड़ दी गयी जिसे याकूब ने सिखेम के पिता हमोर के पुत्रों से चाँदी के सौ सिक्कों में खरीदा था और जो यूसुफ़ के वंशजों को दायभाग के रूप में प्राप्त हुआ था।

33) हारून के पुत्र एलआजार की मृत्यु हो गयी। वह अपने पुत्र पीनहास के नगर गिबआ में, जो उसे एफ्रईम के पहाड़ी प्रान्त में मिला था, दफना दिया गया।



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