📖 - न्यायकर्ताओं का ग्रन्थ

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अध्याय 03

1) यही वे राष्ट्र हैं, जिन्हें प्रभु ने इस्राएलियों की परीक्षा लेने के लिए वहाँ रहने दिया। इस से उसका आषय यह था कि इनके द्वारा उन इस्राएलियों की परीक्षा ली जाये, जो कनान देश के युद्ध में सम्मिलित नहीं हुए थे और

2) इस प्रकार उन इस्राएली पीढ़ियों को प्रषिक्षित किया जाये, जिन्हें युद्ध का अनुभव नहीं था:

3) फिलिस्तियों के पाँच शासक, सभी कनानी, सीदोनी और बाल-हेरमोन पर्वत से ले कर हमात के प्रवेश-मार्ग तक लेबानोन की पर्वत-श्रेणी में रहने वाले हिव्वी।

4) ये इसलिए रह पाये थे कि इनके द्वारा इस्राएलियों की इस बात की परीक्षा हो कि प्रभु ने जो आज्ञाएँ मूसा द्वारा उनके पूर्वजों को दिलायी थीं, वे उन्हें मानेंगे या नहीं।

5) इस प्रकार इस्राएली लोग कनानी, हित्ती, अमोरी, परिज़्ज़ी, हिव्वी और यबूसी लोगों के साथ ही रहते थे।

6) उन्होंने उनकी कन्याओं से विवाह किया और अपनी कन्याएँ उनके पुत्रों को दीं। उन्होंने उनके देवताओं की भी पूजा की।

7) इस्राएलियों ने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है। अपने प्रभु-ईश्वर को भूल कर उन्होंने बाल-देवताओं और अशेरा-देवियों की पूजा की।

8) इसलिए प्रभु का कोप इस्राएलियों के विरुद्ध प्रज्वलित हो उठा और उसने उन्हें मेसोपोतामिया के राजा कूषनरिषआतईम के हाथ बेच दिया और इस्राएलियों को आठ वर्ष तक कूषन-रिषआतईम की सेवा करनी पड़ी।

9) फिर इस्राएलियों ने प्रभु से सहायता के लिए प्रार्थना की और प्रभु ने उनके लिए एक उद्धारक, अर्थात् कालेब के छोटे भाई केनज़ के पुत्र ओतनीएल को नियुक्त किया, जिसने उन्हें मुक्त किया।

10) वह प्रभु से प्रेरणा प्राप्त कर इस्राएलियों का न्यायकर्ता बन गया। वह युद्ध करने निकला और प्रभु ने मेसोपोतामिया के राजा कूषन-रिषआतईम को उसके हवाले कर दिया। कूषन-रिषआतईम पर उसे विजय प्राप्त हुई।

11) इसके बाद देश में चालीस वर्ष तक शान्ति रही।

12) केनज़ के पुत्र ओतनीएल की मृत्यु के पश्चात् जब इस्राएलियों ने फिर वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है, तो इसके कारण प्रभु ने इस्राएलियों को मोआब के राजा एगलोन के हाथ दे दिया।

13) उसने अम्मोनियों और अमालेकियों के साथ इस्राएलियों को पराजित किया और खजूर नगर पर अधिकार कर लिया।

14) इसके बाद इस्राएली अठारह वर्ष तक मोआब के राजा एगलोन के अधीन रहे।

15) फिर इस्राएलियों ने सहायता के लिए प्रभु से प्रार्थना की और प्रभु ने गेरा के पुत्र बेनयामीन के वंशज एहूद को उनका उद्धारक नियुक्त किया। वह खब्बा था। इस्राएलियों ने उसके द्वारा मोआब के राजा एगलोन के पास कर भेजा।

16) एहूद ने अपने लिए एक हाथ लम्बी दुधारी कटार बनवायी थी और उसे अपने वस्त्रों के नीचे अपनी दाहिनी जाँघ पर बाँध लिया।

17) इसके बाद उसने मोआब के राजा एगलोन को कर भेंट किया।

18) एगलोन बहुत मोटा था। एहूद ने कर भेंट करने के बाद उन लोगों को विदा किया, जो कर ले आये थे।

19) गिलगाल की मूर्तियों के पास आ कर एहूद अकेला ही वापस चला गया और उसने कहा, "राजा! मैं आपके लिए एक गुप्त सन्देश लाया हूँ"। राजा ने अपने सब दरबारियों को जाने का आदेश दिया और वे चले गये।

20) तब एहूद उसके पास गया। उस समय राजा अपने छत वाले हवादार कमरे में अकेला बैठा था। एहूद ने उस से कहा, "मै आपके लिए ईश्वर का सन्देश लाया हूँ"। वह ज्यों ही अपने आसन से उठा,

21) एदूद ने अपने बायें हाथ से अपनी दाहिनी जाँघ की कटार निकाल कर उसकी तोंद में भोंक दी।

22) कटार के साथ उसकी मूठ भी अन्दर चली गयी और चरबी ने उसे ढक लिया, क्योंकि एहूद ने उसके पेट से कटार नहीं निकाली।

23) एहूद ने कमरे के दरवाज़े बन्द कर सिटकिनी लगा दी और वह खिड़की से चला गया।

24) उसके चले जाने के बाद नौकरों ने आ कर देखा कि उस छतवाले कमरे के दरवाज़े बंद हैं। उन्होंने सोचा कि राजा हवादार कमरे के षौचालय में गया होगा।

25) जब वे प्रतीक्षा करते-करते थक गये और उन्होंने यह देखा कि अभी तक उसने छत वाले कमरे के किवाड़ नहीं खोले हैं, तो उन्होंने किवाड़ खोले और देखा कि उनका स्वामी फर्ष पर मरा पड़ा है।

26) इस बीच एहूद भाग निकला और उन मूर्तियों के पास से होता हुआ वह सईरा पहुँच गया।

27) वहाँ पहुँचते ही उसने एफ्ऱईम के पहाड़ी प्रदेश में नरसिंगा बजाया और इस्राएली उसके साथ पहाड़ी प्रदेश से नीचे उतर पड़े। एहूद उनके आगे-आगे चलता रहा।

28) उसने उन्हें आज्ञा दी, "मेरे पीछे आओ। प्रभु ने तुम्हारे षत्रुओं, मोआबियों को तुम्हारे हाथ दे दिया है।" तब वे उसके पीछे-पीछे उतरे और यर्दन के घाटों पर अपना अधिकार कर किसी भी मोआबी को पार नहीं होने दिया।

29) उसी समय उन्होंने मोआबियों के लगभग दस हज़ार बलिष्ठ और वीर पुरुषों को मार डाला। उन में एक भी जीवित नहीं रहा।

30) मोआबी उस दिन इस्राएलियों के अधीन हो गये। इसके बाद अस्सी वर्ष तक देश में शान्ति रही।

31) इसके बाद अनात का पुत्र षमगर आया। उसने फ़िलिस्तियों के छः सौ पुरुषों को पैने से मार डाला। उसने भी इस्राएलियों का उद्धार किया।



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