📖 - समूएल का पहला ग्रन्थ

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अध्याय 07

1) किर्यत-यआरीम के निवासी आ कर प्रभु की मंजूषा ले गये और उसे अबीनादाब के घर में रख दिया, जो टीले पर स्थित था। उन्होंने प्रभु की मंजूषा की देखरेख करने के लिए उसके पुत्र एलआज़ार का अभिषेक किया।

2) किर्यत-यआरीम में मंजूषा की प्रतिष्ठा के बहुत समय बाद तक, बीस वर्षों तक, सब इस्राएली प्रभु के दर्शनों के लिए तरसते रहे।

3) तब समूएल ने सब इस्राएलियों को सम्बोधित करते हुए कहा, "यदि तुम सारे हृदय से प्रभु के पास लौट आये हो, तो अपने यहाँ से पराये देवताओं और अष्तारता-देवियों को दूर करो। अपना हृदय प्रभु की ओर अभिमुख कर उसी की सेवा करो और वह तुम को फ़िलिस्तियों के हाथों से मुक्त करेगा।

4) इस्राएली बाल-देवताओं और अष्ताराता-देवियों को हटा कर प्रभु की ही सेवा करने लगे।

5) इसके बाद समूएल ने कहा, "मिस्पा में सब इस्राएलियों को एकत्रित करो। मैं तुम्हारे लिए प्रभु से प्रार्थना करूँगा।"

6) वे मिस्पा में एकत्रित हुए। उन्होंने पानी भर कर प्रभु को अर्घ अर्पित किया, उस दिन उपवास रखा तथा वहाँ स्वीकार किया कि हमने प्रभु के विरुध्द अपराध किया है। मिस्पा में समूएल ने इस्राएलियों के न्यायकर्ता का कार्य किया।

7) जब फ़िलिस्तियों को मालूम हुआ कि इस्राएली मिस्पा में एकत्रित हैं, तो फ़िलिस्तियों के शासक इस्राएलियों पर आक्रमण करने निकले। यह सुन कर इस्राएली फ़िलिस्तियों से भयभीत हो गये।

8) इस्राएलियों ने समूएल से कहा, "प्रभु, हमारे ईश्वर से हमारे लिए प्रार्थना करते रहिए, जिससे वह फ़िलिस्तियों के हाथों से हमारी रक्षा करे।"

9) इस पर समूएल ने एक दुधमुँहा मेमना ले कर उसे होम- बलि के रूप में प्रभु को चढ़ाया। समूएल ने इस्राएल के लिए प्रभु की दुहाई दी और प्रभु ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली।

10) समूएल होम-बली अर्पित कर ही रहा था कि फ़िलिस्ती इस्राएलियों पर चढ आयें। उस दिन प्रभु ने फ़िलिस्तियों के विरुद्ध घोर गर्जन किया और उन्हें इतना आतंकित कर दिया कि वे इस्राएलियों से पराजित हो गये।

11) इस्राएलियों ने मिस्पा से निकल कर फ़िलिस्तियों का पीछा किया और उन्हें मारते-मारते बेतकार तक के पास तक भगा दिया।

12) समूएल ने एक पत्थर ले कर उसे मिस्पा और यषाना के बीच गाड़ दिया और यह कहते हुए उसका नाम एबेन-एजे़र रखा, "यहाँ तक प्रभु ने हमारी सहायता की।"

13) फ़िलिस्ती लोग इस तरह पराजित हो गये कि वे फिर वे इस्राएलियों के देश में नहीं घुसे। समूएल के जीवन भर प्रभु का हाथ फ़िलिस्तियों को दण्डित करता रहा।

14) एक्रोन से गत तक के वे सारे नगर फिर से इस्राएलियों के हाथ आ गये, जिन्हें फ़िलिस्तियों ने इस्राएलियों से छीन लिया था। इस्राएलियों ने उनके आसपास की भूमि भी फ़िलिस्तियों के हाथों से छुड़ा ली। इस्राएल और अमोरियों के बीच शान्ति बनी रही।

15) समूएल ने इस्राएल में आजीवन न्यायकर्ता का कार्य किया।

16) वह प्रति वर्ष बेतेल, गिलगाल और मिस्पा का दौरा किया करता तथा उन सब स्थानों पर इस्राएलियों का न्याय करता।

17) इसके बाद वह रामा लौट आया करता, क्योंकि वहाँं उसका घर था। वह वहाँं भी इस्राएलियों का न्याय करता था। वहीं उसने प्रभु के लिए एक वेदी भी बनायी।



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