📖 - समूएल का पहला ग्रन्थ

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अध्याय 12

1) समूएल ने सभी इस्राएलियों से कहा, "देखो, मैंने तुम्हारी वे सारी बातें स्वीकार कर ली हैं, जो तुमने मुझ से माँगी थीं। मैंने तुम्हारे लिए एक राजा नियुक्त कर दिया है।

2) देखों, राजा ही अब तुम्हारा नेता है। मैं अब बूढ़ा हो चला हूँ, मेरे बाल पक गये हैं, मेरे पुत्र तुम्हारे साथ हैं। मैंने अपनी युवावस्था से आज तक तुम्हारा नेतृत्व किया है।

3) मैं प्र्रस्तुत हॅूँ; तुम प्रभु के सामने और उसके अभिषिक्त के सामने साक्ष्य दो। मैंने किसका बैल ले लिया? किसका गधा ले लिया? मैंने किसका शोषण किया? किस पर अत्याचार किया? मैंने किसका मामला अनदेखा करने के लिए घूस ली? यदि मैंने यह किया, तो मैं क्षतिपूर्ति करूँगा।"

4) लोगों ने उत्तर दिया, "आपने न तो हमारा शोषण किया, न हम पर अत्याचार किया और न किसी से घूस ली।"

5) तब उसने उन से कहा, "तो प्रभु ही तुम्हारे लिये मेरा साक्षी है और आज उसका यह अभिषिक्त भी साक्षी है कि तुमने मेरे हाथ में अपना कुछ नहीं देखा है।" उन लोगों ने कहा, "हाँ, वह साक्षी है।"

6) इसके बाद समूएल ने लोगों से कहा, "प्रभु ने मूसा और हारून को नियुक्त किया था और तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र देश से निकाल लाया था।

7) अब प्रभु के सामने खडे़ रहो। मैं तुम्हें वे सब उपकार सुनाऊँगा, जिन्हें प्रभु ने तुम्हारे पूर्वजों के लिए किया था।

8) जब याकूब मिस्र आया और तुम्हारे पुरखों ने प्रभु की सहायता के लिए दुहाई दी, तब प्रभु ने मूसा और हारून को भेजा, जिन्होंने तुम्हारे पुरखों को मिस्र से निकाल कर इस देश में बसाया है।

9) जब लोग प्रभु, अपने ईश्वर को भूल गये, तब उसने उन्हें हासोर के राजा के सेनापति सीसरा के, फ़िलिस्तियों के तथा मोआब के राजा के हाथों दे दिया था। तब उन्होंने उन से युद्ध किया।

10) उन्होंने प्रभु की दुहाई दी और स्वीकार किया कि हमने पाप किया है, क्योंकि हमने प्रभु को त्याग कर बाल -देवताओं और अश्तारता-देवियों की सेवा की है। लेकिन अब तू हमें अपने शत्रुओं के हाथों से मुक्त कर और हम तेरी सेवा करेंगे।

11) इस पर प्रभु ने यरुबबाल, बाराक, यिफ़तह और समूएल को भेज कर तुम्हें अपने पास के शुत्रओं के हाथों से बचाया। तभी तुम सुरक्षित रह पाये हो।

12) "जब तुमने देखा कि अम्मोनियों का राजा नाहाश तुम पर चढ़ा आ रहा है, तब तुमने मुझ से कहा था, ‘हमारे ऊपर एक राजा शासन करें’, यद्यपि प्रभु, तुम्हारा ईश्वर तुम्हारा राजा था।

13) अब उस राजा को देखो, जिसे तुमने चुना और मांँगा है। देखो, प्रभु ने तुम्हारे ऊपर एक राजा नियुक्त कर दिया है।

14) यदि तुम ईश्वर पर श्रद्धा रखते रहोगे, उसकी सेवा करते रहोगे, उसके अधीन रहोगे और प्रभु की आज्ञाओं का विरोध नहीं करोगे; यदि तुम और तुम पर शासन करने वाला तुम्हारा राजा, दोनों प्रभु, अपने ईश्वर के अनुगामी बने रहोगे, तो तुम्हारा भला होगा।

15) परन्तु यदि तुम प्रभु की अवज्ञा और उसकी आज्ञाओं का विरोध करोगे, तो प्रभु का हाथ तुम को और तुम्हारे राजा को दण्ड देगा, जैसे उसने तुम्हारे पूर्वजों के साथ किया था।

16) "अब ध्यान दो और उस महान् चमत्कार को देखो, जिसे प्रभु तुम्हारी आंँखों के सामने करने जा रहा है।

17) क्या यह गेहूँ की फ़सल का समय नहीं हैं? मैं प्रभु से प्रार्थना करूँगा और वह मेघगर्जन और वर्षा भेजेगा। इस से तुम समझ जाओगे कि तुमने प्रभु की दृष्टि में कितनी बड़ी बुराई की है’ जो तुमने अपने लिए राजा माँगा है।"

18) अब समूएल ने प्रभु से प्रार्थना की और उसी दिन प्रभु से मेघगर्जन और वर्षा भेजी।

19) सब लोग प्रभु और समूएल से बडे़ भयभीत हुए और सब लोगों ने समूएल से निवेदन किया, "अपने दासों के लिए प्रभु, अपने ईश्वर से प्रार्थना कीजिए, जिससे हमारी मृत्यु न हो जाये; क्योंकि अपने-अपने पूर्व पापों के सिवा यह बुराई भी की है कि हमने अपने लिए एक राजा माँगा है।"

20) समूएल ने लोगों को उत्तर दिया, "डरो मत। तुमने यह सब बुराई की है, किन्तु प्रभु से विमुख नहीं हो और सारे हृदय से प्रभु की सेवा करते रहो।

21) निस्सार देवी-देवताओं के अनुगामी मत बनो। वे न तो सहायता कर सकते और न तुम्हारा उद्धार ही कर सकते हैं, क्योंकि वे निस्सार है।

22) प्रभु का नाम महान् है। वह अपनी प्रजा को त्याग नहीं सकता; क्योंकि प्रभु ने कृपा कर तुम्हें अपनी प्रजा बनाया है।

23) रहा मैं-यदि मैं तुम लोगों के लिए प्रार्थना करना छोड़ देता, तो मैं घोर पाप करता। मैं तुम्हें सन्मार्ग की शिक्षा देता रहूँगा।

24) तुम प्रभु पर श्रद्धा रखो और सारे हृदय से उसकी सच्ची सेवा करते रहो। भला सोचो तो कि उसने तुम्हारे लिए कितने महान् कार्य किये हैं।

25) परन्तु यदि तुम बुराई करते रहोगे, तो तुम राजा-सहित नष्ट कर दिये जाओगे।"



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