📖 - समूएल का दुसरा ग्रन्थ

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अध्याय 14

1) जब सरूया के पुत्र योआब ने देख कि राजा का हृदय अबसालोम के दर्शनों के लिए तरसता है, तो

2) योआब ने तकोआह से एक बुद्धिमती महिला को बुलवाया और उससे कहा, "विलाप करने का स्वाँग भरो। शोक-वस्त्र पहन कर और तेल आदि न लगा कर ऐसा शोक प्रदर्शित करो, जैसे कोई महिला बहुत दिनों से किसी मृतक के लिए शोक मना रही हो।

3) इसके बाद राजा के पास जाकर यह कहो" और योआब ने उसे सब बातें समझा दीं।

4) तकोआह की उस महिला ने राजा के पास जा कर भूमि तक माथा नवा कर प्रणाम किया और कहा, "राजा! मेरी सहायता कीजिए।"

5) जब राजा ने उससे पूछा, "क्या बात है?" तब उसने उत्तर दिया, "मैं एक विधवा हूँ। मेरे पति मर गये हैं।

6) आपकी इस दासी के दो पुत्र थे। वे दोनों आपस में खेत में लड़ने लगे और चूँकि उनको अलग करने वाला कोई नहीं था, इसलिए एक ने दूसरे को इस तरह मारा कि वह मर गया

7) और अब सभी कुटुम्बी आपकी इस दासी के विरुद्ध लड़ रहे हैं। वे कह रहे हैं कि जिसने अपने भाई को मारा है, उसे हमारे सुपुर्द करो, जिससे अपने भाई के प्राणों के प्रतिशोध में हम उसे मार डालें। इस प्रकार वे वारिस को भी मिटा देना चाहते हैं। वे मेरी एक मात्र जलती चिनगारी को भी बुझा देना चाहते हैं और पृथ्वी पर मेरे पति का न नाम रहने देना चाहते हैं, न वंशज।"

8) तब राजा ने उस स्त्री से कहा, "तुम घर जाओ, मैं स्वयं तुम्हारा मामला निपटाऊँगा।"

9) तकोआह-निवासिनी स्त्री ने राजा से कहा,"श्रीमान! राजा, मेरे प्रभु! यह दोष तो मुझे ही लगेगा और मेरे पिता के घराने को भी। राजा और उनके राजसिंहासन का कोई दोष नहीं होगा।"

10) राजा ने उत्तर दिया, "अगर तुम्हारे विरुद्ध कोई कुछ कहे, तो उसे मेरे पास ले आना। वह फिर तुमको तंग करने नहीं आयेगा।"

11) वह बोली, "राजा प्रभु अपने ईश्वर के नाम पर मुझे आश्वासन दिलायें कि रक्त-प्रतिशोधी और रक्त न बहाये, जिससे मेरा पुत्र पृथ्वी पर से नहीं मिटा दिया जाये।" उसने उत्तर दिया, "प्रभु की शपथ! तुम्हारे पुत्र का बाल भी बाँका नहीं होगा।"

12) उस स्त्री ने कहा, "क्या आपकी दासी श्रीमान् और राजा से एक और बात कह सकती है?" उसने कहा, "हाँ बोलो।"

13) तब उस स्त्री ने कहा, "आप ईश्वर की प्रजा के विरुद्ध ऐसा क्यों कर रहे हैं? ऐसा निर्णय देने से राजा अपने ही को दोषी प्रमाणित करते हैं, क्योंकि वह अपने निर्वासित पुत्र को वापस नहीं बुला रहे हैं।

14) हम सब को मरना है। हम ज़मीन पर फेंक दिये गये पानी की तरह हैं, जो फिर एकत्र नहीं किया जा सकता। किन्तु ईश्वर में दुर्भाव नहीं होता। वह इसका ध्यान रखता है कि निर्वासित व्यक्ति उस से अलग नहीं रहे।

15) मैं श्रीमान् के सामने यह मामला रखने आयी, क्योंकि लोगों ने मुझे भयभीत किया है। आपकी इस दासी ने यह सोचा कि इस विषय में मैं राजा से बात करूँगी।

16) हो सकता है कि राजा मेरी प्रार्थना पर ध्यान दें और अपनी दासी को उन लोगों के हाथ से बचा लें, जो मुझे और मेरे पुत्र को भी ईश्वर की दी हुई विरासत से वंचित करना चाहते हैं।

17) आपकी यह दासी यह सोचती रही कि श्रीमान् राजा की बात से मुझे शान्ति मिलेगी; क्योंकि श्रीमान् राजा स्वर्गदूत की तरह हैं, जो भले-बुरे का भेद जानता है। प्रभु, आपका ईश्वर आपके साथ हो।"

18) इस पर राजा ने स्त्री से कहा, "मैं तुम से जो कुछ पूछ रहा हूँ, मुझ से तुम कुछ मत छिपाना।" स्त्री ने कहा, "श्रीमान् राजा बोलें।

19) राजा ने पूछा, "क्या इन सब बातों में योआब का भी हाथ हैं? उस स्त्री ने उत्तर दिया, "श्रीमान् राजा! मैं आपकी शपथ खाकर कहती हूँ। श्रीमान् राजा ने जो कुछ कहा है, वह ठीक है। राजा जो कुछ कहते हैं, उसे किसी भी तरह टाला नहीं जा सकता। आपके दास योआब ने मुझे ऐसा करने का आदेश दिया है और आपकी दासी को ये सारी बातें समझायी हैं।

20) आपके दास योआब ने यह इसलिए किया, जिससे वर्तमान परिस्थिति बदल जाये; किन्तु मेरे स्वामी तो स्वर्गदूत-जैसे बुद्धिमान हैं। देश भर में जो हो रहा है, वह सब जानते ही हैं।"

21) इस पर राजा ने योआब से कहा, "मैं तुम्हारी माँग पूरी करने जा रहा हूँ। जाओ और युवक अबसालोम को वापस ले आओ।"

22) योआब ने मुँह के बल गिर कर राजा को प्रणाम किया और धन्यवाद देते हुए कहा, "आज आपके दास को यह मालूम हुआ कि मैं अपने स्वामी और राजा का कृपापात्र हूँ, क्योंकि राजा ने अपने दास की बात मान ली हैं।

23) इसके बाद योआब गशूर जाकर अबसालोम को येरूसालेम वापस ले आया।

24) राजा ने आज्ञा दी, "वह अपने घर जाये और मुझे अपना मुँह न दिखाये।" इसलिए अबसालोम अपने घर रहा, परन्तु वह राजा के सामने नहीं आया।

25) इस्राएल भर में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था, जो अबसालोम की तरह अपने सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध हो। एड़ी से चोटी तक अबसालोम में कोई दोष नहीं था।

26) वह अपने बाल हर साल के अन्त में कटवाया करता था, जब वे उसके सिर पर बोझ बन जाते थे। उनका वज़न दौ सौ राजकीय शेकेल हुआ करता था।

27) अबसालोम के तीन पुत्र और तामार नामक पुत्री पैदा हुई। वह सुन्दर थी।

28) राजा के सामने आये बिना अबसालोम पूरे दो साल येरूसालेम में रहा।

29) इसके बाद अबसालोम ने योआब को बुलवाया, जिससे वह उसे राजा के पास भेजे। लेकिन उसने उसके यहाँ आना स्वीकार नहीं किया। दूसरी बार बुलाने पर भी उसने आने से इनकार कर दिया।

30) तब उसने अपने नौकरों से कहा, "तुम जानते हो कि मेरे खेत के पास ही योआब का एक खेत है, जिसमें उसने जौ बोया है। जाकर उसे जला दो।" इस पर अबसालोम के नौकरों ने उसे जला डाला।

31) तब योआब ने अबसालोम के घर जा कर उस से पूछा, "तुम्हारे नौकरों ने मेरा खेत क्यों जलाया?"

32) अबसालोम योआब से कहने लगा, "देखो, मैंने तुम्हें यहाँ बुलवाया था, जिससे मैं तुम्हें भेज कर राजा से पूछवाऊँ कि मैं गशूर से यहाँ क्यों लाया गया। यदि मैं अब भी वहाँ होता, तो मेरे लिए अच्छा रहता। मैं राजा के दर्शन करना चाहता हूँ। यदि मेरा कोई अपराध हो, तो वह मेरा वध करें।

33) इस पर योआब ने राजा के पास जाकर यह सब बता दिया। तब उसने अबसालोम को बुलवाया। जब वह राजा के पास आया, तो उसने राजा को साष्टांग प्रणाम किया और राजा ने अबसालोम को चुम्बन दिया।



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