📖 - समूएल का दुसरा ग्रन्थ

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अध्याय 17

1) फिर अहीतोफ़ेल ने अबसालोम को यह परामर्श दिया, "मुझे बारह हज़ार आदमियों को लेकर इसी रात दाऊद का पीछा करने प्रस्थान करने दीजिए।

2) जब वह थका-माँदा और निराश हो गया होगा, तब मैं उस पर टूट पडूँगा। उसे आतंकित कर दूँगा। उसके साथ के सारे लोग भाग जायेंगे और मैं राजा को अकेला पाकर उसका वध करूँगा

3) और सब लोगों को आपके पास वापस ले आऊँगा। जिसको आप ढूँढ़ते हैं, उसके वध के कारण सब लोग वापस आयेंगे। सब लोगों को शान्ति मिल जायेगी।"

4) यह विचार अबसालोम और इस्राएल के सब नेताओं को अच्छा लगा।

5) तब अबसालोम ने कहा, "अरकी हूशय को भी बुलाओ। हम उसका भी परामर्श सुन लें।"

6) जब हूशय अबसालोम के पास आया, तब अबसालोम ने उससे कहा, "अहीतोफे़ल ने यह परामर्श दिया है। क्या हम उसके परामर्श के अनुसार काम करें? नहीं तो तुम्हीं कुछ बताओ।"

7) हूशय ने अबसालोम को उत्तर दिया, "अहीतोफ़ेल ने इस बार जो परामर्श दिया है, वह अच्छा नहीं है।"

8) हूशय ने कहा, "आप अपने पिता और उनके योद्धओं को जानते हैं। वे वीर हैं, वे उस जंगली रीछनी के समान कुपित हैं, जिसके बच्चे छीन लिये गये हैं और आपके पिता युद्धकला में निपुण हैं। वह सैनिकों के साथ रात नहीं बितायेंगे।

9) अभी वह अवश्य किसी गुफा या किसी अन्य स्थान में छिपे होंगे। अब यदि शुरू में ही हमारे कुछ लोग मारे गये, तो सुनने वाले यही कहेंगे कि अबसालोम के पक्ष वाले पराजित हो गये।

10) तब शेरदिल योद्धा भी हिम्मत हार जायेंगे; क्योंकि सब इस्राएली जानते हैं कि आपके पिता अच्छे योद्धा हैं और उनके सैनिक भी शूरवीर हैं।

11) इसलिए मैं तो यह सलाह दूँगा: सभी इस्राएली दान से बएर-शेबा तक आपके लिए एकत्रित किये जायें - वे समुद्रतट के रेतकणों के समान असंख्य हों - और आप स्वंय उनके साथ-साथ युद्ध करने जायें।

12) वह जहाँ भी मिलें, हम उन पर ऐसे टूट पड़ेंगे, जैसे ओस पृथ्वी पर गिरती है और न वह बचेंगे और न उनके साथ के सभी लोगों में कोई।

13) परन्तु यदि वह किसी नगर में शरण ले लें, तो सब इस्राएली उस नगर पर रस्से लगा देंगे और हम उसे घाटी में खींच लेंगे, यहाँ तक कि उसका एक भी पत्थर शेष नहीं रहेगा।"

14) इस पर अबसालोम और सब इस्राएलियों ने कहा, "अरकी हूशय का परामर्श अहीतोफे़ल के परामर्श से अच्छा है"; क्योंकि प्रभु के विधान से अहीतोफ़ेल का अच्छा परामर्श व्यर्थ रहा, जिससे अबसालोम पर विपत्ति पड़े।

15) इसके बाद हूशय ने याजक सादोक और एबयातर से कहा, "अहीतोफ़ेल ने अबसालोम और इस्राएली नेताओं को अमुक सलाह दी और मैंने अमुक सलाह दी हैं।

16) अब जल्दी संदेश भेजकर दाऊद को बताइए कि वह इस रात को उजाड़खण्ड जाने वाले मार्ग के घाटों में नहीं ठहरें, बल्कि नदी पार करें। नहीं तो राजा और उनके साथ रहने वाले लोगों का वध किया जायेगा।"

17) योनातान और अहीमअस एन-रोगेल में थे। एक दासी को उन्हें वह सन्देश देना था, जिससे वे उसे दाऊद को बता दे; क्योंकि वे किसी के देखते नगर में नहीं जा सकते थे।

18) किन्तु किसी लड़के ने उन्हें देख लिया और अबसालोम को सूचित कर दिया था। अब दोनों ने जल्दी से भाग कर बहूरीम के किसी आदमी के घर में शरण ली। उसके आँगन में एक कुआँ था। वे उसके अन्दर छिप गये।

19) स्त्री ने एक चादर लेकर कुएँ पर फैला दी और उस पर दाने डाल दिया, जिससे किसी को उनका पता न चले।

20) अबसालोम के आदमियों ने उस स्त्री के घर में घुसकर पूछा कि अहीमअस और योनातान कहाँ हैं। तब स्त्री ने उन्हें उत्तर दिया, "वे जलाशय की ओर गये हैं।" ढूँढ़ने पर भी उन्हें कोई नहीं मिला और वे येरूसालेम लौट गये।

21) उनके चले जाने पर वे कुएँ से बाहर निकले और उन्होंने दौड़कर राजा दाऊद को सन्देश दिया। उन्होंने दाऊद से कहा, "जल्दी उठिए, नदी पार कीजिए, क्योंकि अहीतोफे़ल ने आपके विषय में अमुक सलाह दी है।"

22) दाऊद और उसके साथ के लोगों ने तुरन्त उठ कर यर्दन पार किया। पौ फटने तक ऐसा कोई नहीं रहा, जिसने यर्दन पार न किया हो।

23) जब अहीतोफ़ेल ने देखा कि उन्होंने मेरी सलाह के अनुसार काम नहीं किया है, तब वह अपना गधा कस कर अपने नगर लौट गया। उसने अपने घर की व्यवस्था की और फांँसी लगा ली। उसकी मृत्यु के बाद उसे अपने पिता के समाधिस्थान में दफ़ना दि़या गया।

24) अबसालोम और उसके साथ के इस्राएलियों के यर्दन पार करते-करते दाऊद महनयीम तक पहुँच गया।

25) अबसालोम ने योआब के स्थान पर अमासा को सेनाध्यक्ष नियुक्त किया था। अमासा इसमाएली यित्रा का पुत्र था। उसने अबीगैल से विवाह किया था, जो नाहाश की पुत्री, सरूया की बहन और योआब की माँ थी।

26) इस्राएलियों ने अबसालोम के साथ गिलआद देश में पड़ाव डाला।

27) जैसे ही दाऊद महनयीम आया, अम्मोनियों की राजधानी रब्बा के नाहाश का पुत्र शोबी, लो-दबार के अम्मीएल का पुत्र माकीर और रोगलीम का गिलआदी बरज़िल्लय

28 )(28-29) बछौने, पात्र और मिट्टी के बरतन ले आये। वे दाऊद और उसके आदमियों को खिलाने के लिए गेहूँ, जौ, आटा, भुना हुआ अनाज, सेम, मसूर, मधु, मक्खन, भेड़ें, पनीर और बछड़े के टुकड़े ले आये। उनका विचार था कि उजाड़खण्ड में भूखे-प्यासे थके-माँदे रहे होंगे।



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