📖 - राजाओं का पहला ग्रन्थ

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अध्याय 10

1) शेबा की रानी ने सुलेमान की कीर्ति के विषय में सुना था और वह पहेलियों द्वारा उसकी परीक्षा लेने आयी।

2) वह ऊँटों की लम्बी कतार के साथ येरूसालेम पहुँची, जिन पर सुगन्धित द्रव्य, बहुत-सा सोना और बहुमूल्य रत्न लदे हुए थे। वह सुलेमान के यहाँ अन्दर आयी और उसके मन में जो कुछ था, उसने वह सब सुलेमान को बताया।

3) सुलेमान ने उसके सभी प्रश्नों का उत्तर दिया- उन में एक भी ऐसा नहीं निकला, जिसका सुलेमान सन्तोषजनक उत्तर नहीं दे सका।

4) जब शेबा की रानी ने सुलेमान की समस्त प्रज्ञा, उसके द्वारा निर्मित भवन,

5) उसकी मेज़ के भोजन, उसके साथ खाने वाले दरबारियों, उसके सेवकों की परिचर्या और परिधान, उसके मदिरा पिलाने वालों और प्रभु के मन्दिर में उसके द्वारा चढ़ायी हुई होम-बलियों को देखा, तो उसके होश उड़ गये

6) और उसने राजा से यह कहा, "मैने अपने देश में आपके और आपकी प्रज्ञा के विषय में जो चरचा सुनी थी, वह सच है।

7) जब तक मैंने आ कर अपनी आँखों से नहीं देखा, तब तक मुझे उस पर विश्वास नहीं था। सच पूछिए, तो मुझे आधा भी नहीं बताया गया था। मैंने जो चरचा सुनी थी, उसकी अपेक्षा आपकी प्रज्ञा और आपका वैभव कहीं अधिक श्रेष्ठ है।

8) धन्य है आपकी प्रजा और धन्य हैं आपके सेवक, जो आपके सामने उपस्थित रह कर आपकी विवेकपूर्ण बातें सुनते रहते हैं!

9) धन्य है प्रभु, आपका ईश्वर, जिसने आप पर प्रसन्न होकर आप को इस्राएल के सिंहासन पर बैठाया! इस्राएल के प्रति उसका प्रेम चिरस्थायी है, इसलिए उसने न्याय और धार्मिकता बनाये रखने के लिए आप को राजा के रूप में नियुक्त किया है।"

10) उसने राजा को एक सौ बीस मन सोना, बहुत अधिक सुगन्धित द्रव्य और बहुमूल्य रत्न प्रदान किये। शेबा की रानी ने जितना सुगन्धित द्रव्य सुलेमान को दिया, उतना फिर कभी नहीं लाया गया।

11) ओफ़िर से सोना लाने वाले हीराम के जहाज़ ओफ़िर से बहुत-सा चन्दन और मणियाँ भी लाते थे।

12) राजा ने चन्दन से प्रभु के मन्दिर और राजमहन के लिए छोटे-छोटे खम्भे और गायकों के लिए सितार और सारंगियाँ बनवायीं। उस समय जितना चन्दन लाया गया था, उतना न कभी पहले लाया गया और न कभी बाद में।

13) राजा सुलेमान ने शेबा की रानी को वह सब कुछ दिया, जो वह चाहती थी और जिसके लिए उसने इच्छा प्रकट की। उसने इसके अतिरिक्त अपनी ओर से उसे ेउदारता-पूर्वक और बहुत कुछ दे दिया। इसके बाद वह चली गयी और अपने दलबल के साथ अपने देश लौट गयी।

14) उस सोने का वजन, जो प्रति वर्ष सुलेमान के यहाँ लाया जाता था, छः सौ छियासठ मन था।

15) उस में वह सोना सम्मिलित नहीं है, जो यात्रियों, व्यापारियों के यातायात, पश्चिम के सब राजाओं और देश के राज्यपालों से मिलता था।

16) राजा सुलेमान ने सोने की दो सौ ढालें बनवायीं। प्रैत्येक ढाल में छः सौ शेकेल सोना लगा।

17) इसके अतिरिक्त उसने सोने की तीन सौ छोटी ढालें भी बनवायीं; प्रत्येक में डेढ़ सेर सोना लगा। उसने उन्हें लेबानोन के वन भवन में रखवाया।

18) राजा ने हाथीदाँत का एक बड़ा सिंहासन बनवाया और उसे शुद्ध सोने से मढ़वाया।

19) उस सिंहासन में छः सोपान थे और उसकी पीठ का सिरा अर्धचन्द्राकार था। सिंहासन के दोनों और हाथ रखने की पटरियाँ थीं और उनके दोनों ओर एक-एक सिंह।

20) छः सोपानों पर बारह सिंह थे- एक-एक सोपान के दोनों ओर एक-एक सिंह। ऐसा सिंहासन कभी किसी राज्य में नहीं बना था।

21) राजा सुलेमान के पीने के सभी प्याले सोने के थे। लेबानोन के वन-भवन के सब पात्र शुद्ध सोने के थे, चाँदी का एक भी पात्र नहीं था; क्योंकि सुलेमान के समय चाँदी का कोई विशेष मूल्य नहीं था।

22) राजा के तरशीश जाने वाले जहाज़ हीराम के जहाज़ों के साथ समुद्र पर चलते थे। वे प्रति तीन वर्ष लौटते और सोना, चाँदी, हाथीदाँत, बन्दर और मोर लाते थे।

23) इस प्रकार राजा सुलेमान धन-सम्पत्ति और विवेक में पृथ्वी के सभी राजाओं में श्रेष्ठ था।

24) ईश्वर द्वारा प्रदत्त सुलेमान की प्रज्ञा सुनने के लिए सारे संसार के लोग उसके पास आया करते थे।

25) उन में प्रत्येक व्यक्ति प्रति वर्ष भेंट लाता था- चाँदी और सोने के पात्र, वस्त्र, अस्त्र-शस्त्र, गन्धरस, घोड़े और खच्चर।

26) सुलेमान के बहुत से रथ और घुड़सवार थे- एक हज़ार चार सौ रथ और बारह हज़ार घुड़सवार। वह उन्हें रक्षक-नगरों और अपने पास येरूसालेम में रखता था।

27) राजा ने येरूसालेम में चाँदी को पत्थर-जैसा सस्ता बना दिया और देवदार को निचले प्रदेश में पाये जाने वाले गूलर-जैसा प्रचुर।

28) सुलेमान के लिए मिस्र और कुए के घोड़े लाये जाते थे। राजा के व्यापारी दाम दे कर उन्हें कुए से ख़रीद लाते थे।

29) मिस्र से लाये जोने वाले रथ का मूल्य छः सौ शेकेल था और धोड़े का चाँदी के डेढ़ सौ शेकेल। सभी हित्ती और अरामी राजा भी सुलेमान के व्यापारियों द्वारा वहाँ से रथ और घोड़े ख़रीदते थे।



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