📖 - राजाओं का पहला ग्रन्थ

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अध्याय 20

1) अराम के राजा बेन-हदद ने अपनी सारी सेना एकत्रित की। उसके साथ बत्तीस राजा, घोड़े और रथ थे। उसने आ कर समारिया को घेर लिया और उस पर आक्रमण कर बैठा।

2) उसने नगर में इस्राएल के राजा अहाब के पास दूत भेज कर उस से कहलवाया,

3) "बेन-हदद का कहना है कि तुम्हारी चाँदी और तुम्हारा सोना मेरा है। तुम्हारी सब से सुन्दर पत्नियाँ और पुत्र मेरे हैं।"

4) इस्राएल के राजा ने उसे उत्तर दिया, "मेरे स्वामी और राजा! जैसा आपका कहना है, मैं और मेरा सर्वस्व आपका ही है"।

5) वे दूत फिर आ कर कहने लगे, "बेनहदद का कहना है कि मैंने तुम से यह कहलवाया था कि तुम को अपनी चाँदी, अपना सोना, अपनी पत्नियाँ और अपने पुत्र मुझे देने होंगे।

6) कल इसी समय मैं अपने सेवकों को भेजूँगा, जिससे वे तुम्हारे महल और तुम्हारे सेवकों के मकानों की तलाशी लें और तुम्हारी दृष्टि में जो कुछ बहुमूल्य है, वे वह सब छीन कर ले जायेंगे।"

7) इस पर इस्राएल के राजा ने देश के सब नेताओं को एकत्रित कर उन से कहा, "तुम देखते हो कि यह मनुष्य मेरा अहित चाहता है। जब उसने मेरी पत्नियाँ, मेरे पुत्र, मेरी चाँदी और मेरा सोना माँगा, तो मैंने उसकी कोई माँग अस्वीकार नहीं की।"

8) इस पर नेताओं और अन्य सब लोगों ने उसे उत्तर दिया, "उसकी माँग पर कुछ ध्यान नहीं दीजिए और न उसे स्वीकार कीजिए"।

9) तब उसने बेनहदद के दूतों से कहा, "तुम मेरे स्वामी, राजा से इस प्रकार कहना, ‘आपने पहले अपने दास से जो कुछ माँगा वह मैं दे दूँगा, परन्तु मैं आपकी दूसरी माँग पूरी नहीं कर सकूँगा।" दूतों ने जा कर उसे यही सन्देश दिया।

10) बन-हदद ने उसे यह सन्देश भेजा, "यदि समारिया में इतनी धूल बचे कि उस से मेरे सब सैनिकों की मृट्ठी भर जाये, तो देवता मुझे कठोर-से-कठोर दण्ड दिलाये"।

11) इस्राएल के राजा ने उत्तर दिया, "उस से यह कहो: तलवार उठाने के पहले इस प्रकार का गर्व ठीक नहीं। तलवार के उपयोग के बाद ही कोई ऐसा कर सकता है।"

12) बेन-हदद को यह उत्तर उस समय मिला, जब वह खेमों में राजाओं के साथ मदिरा पी रहा था। उसने अपने सैनिकों से कहा, "आक्रमण की तैयारी करो" और उन्होंने नगर पर आक्रमण के लिए व्यूहरचना की।

13) तब इस्राएल के राजा अहाब के पास आ कर एक नबी ने कहा, "प्रभु का कहना है: तुम जो विशाल सेना देख रहे हो, मैं उसे आज तुम्हारे हाथ दे दूँगा और तुम जान जाओगे कि मैं ही प्रभु हूँ"।

14) अहाब ने पूछा, "किसके द्वारा?" उसने उत्तर दिया, "प्रभु का यह कहना है: प्रादेशिक शासकों के चुने हुए वीरों द्वारा"। फिर उसने पूछा, "कौन युद्ध आरम्भ करेगा?" उसने उत्तर दिया, "स्वयं तुम"।

15) इस पर अहाब ने प्रादेशिक शासकों के चुने हुए वीरों को बुलाया- वे दो सौ बत्तीस थे। इसके बाद उसने इस्राएलियों के शेष सैनिकों की गणना की। वे सात हज़ार थे।

16) दोपहर के समय उन्होंने धावा बोल दिया। उस समय बेद-हदद खेमों में अपने बत्तीस सहयोगी राजाओं के साथ मदिरा पी रहा था।

17) प्रादेशिक शासकों के चुने हुए वीर पहले निकले। बेनहदद द्वारा भेजे गये गुप्तचर ख़बर लाये कि समारिया से सैनिक चले आ रहे हैं।

18) इस पर उसने यह आदेश दिया, "यदि वे शान्ति के लिए आ रहे हों, तो उन्हें जीवित पकड़ लो और यदि वे युद्ध के लिये आ रहे हों, तो भी उन्हें जीवित ही पकड़ लो"।

19) प्रादेशिक शासकों के चुने हुए वीर नगर से बाहर निकले और उनके पीछे सेना भी।

20) उन में से प्रत्येक ने अपने विरोधियों को मार डाला। अरामी भाग निकले और इस्राएलियों ने उनका पीछा किया। अराम का राजा बेन-हदद घोड़े पर सवार हो कर अपने कई धुड़सवारों के साथ भाग निकला।

21) इसके बाद इस्राएल का राजा बाहर आया और घोड़ों और रथों पर आक्रमण कर अरामियों को बुरी तरह परास्त किया।

22) एक दिन एक नबी ने इस्राएल के राजा के पास आकर कहा, "अपने को तैयार रखिए और आप को क्या करना चाहिए, इस पर ठीक-ठीक विचार कीलिए,क्योंकि अगले वर्ष अराम का राजा फिर आप पर आक्रमण करने वाला है "

23) उधर अराम के राजा से उसके सेवकों ने कहा, "इस्राएलियों के ईश्वर पहाड़ों के ईश्वर हैं; तभी तो वे हम से अधिक शक्तिशाली निकले। यदि हम उन से मैदान में लड़ें, तो हम अवश्य उन से अधिक शक्तिशाली सिद्ध होंगे।

24) इसलिए ऐसा ही कीजिएः राजाओं के स्थान पर सेनाध्यक्ष नियुक्त कर दीजिए।

25) जो सेना पराजित हुई है, उसकी तरह एक नयी सेना एकत्र कीजिए। पहले की तरह घोड़े और रथ तैयार कराइए। इसके बाद हम उन से मैदान में लड़ेंगे और उन को पराजित कर अवश्य विजयी होंगे।" उसने उनका परामर्श स्वीकार कर लिया और वैसा ही किया।

26) अगले वर्ष फिर बेनहदद ने अरामियों को तैयार कर इस्राएलियों से लड़ने अफ़ेक की ओर प्रस्थान किया।

27) इस्राएली सेना भी एकत्र कर ली गयी, उसके रसद का प्रबन्ध किया गया और वह उनका सामना करने निकली। इस्राएली बकरियों के दो छोटे रवड़ों की तरह उनके सामने पड़े हुए थे, जब कि अरामी लोग सारे देश में भरे पड़े थे।

28) तब उस ईश्वर-भक्त ने निकट आ कर इस्राएल के राजा से कहा, " प्रभु का यह कहना हैः अरामियों का विचार है कि प्रभु पहाड़ों का ईश्वर है, मैदानों का ईश्वर नहीं। इसलिए मैं उनकी इस बड़ी सेना को तुम्हारे हाथ कर दूँगा, जिससे तुम जान जाओ कि मैं ही प्रभु हूँ।"

29) वे सात दिन तक आमने-सामने जमे रहे। सातवें दिन युद्ध आरम्भ हुआ और इस्राएलियों ने अरामियों के एक लाख पैदल सैनिकों को एक ही दिन में मार गिराया।

30) जो शेष रहे, वे अफ़ेक नगर भाग निकले, जहाँ नगर की चारदीवारी सत्ताईस हज़ार आदमियों पर गिर पड़ी। बेन-हदद भी भागते-भागते नगर पहुँचा और एक भीतरी कमरे में जा छिपा।

31) तब उसके सेवकों ने उस से कहा, "हमने सुना है कि इस्राएल के राजा दयालु होते हैं; इसलिए हम अपनी कमर में टाट बाँध लेंगे, सिर पर रस्सियाँ रखेंगे और इस्राएल के राजा के पास जायेंगे। हो सकता है कि वह आप को प्राणदान दे दे।"

32) इसलिए उन्होंने अपनी कमर में टाट बाँधा, अपने सिर पर रस्सियाँ रखीं और इस्राएल के राजा के पास जा कर कहा, "आपका दास बेन-हदद आप से प्राणों की भिक्षा माँगता है"। उसने पूछा, "क्या वह अब तक जीवित है? वह मेरा भाई है"।

33) इसे उन्होंने शुभ शकुन माना और तुरन्त उत्तर दिया, "हाँ, बेन-हदद आपके भाई ही है"। उसने उन्हें आज्ञा दी "जा कर उसे बुला लाओ"। जब बेन-हदद उसके पास आया, तो उसने उसे अपने रथ में बिठा लिया।

34) इस पर बेन-हदद ने उस से कहा, "मेरे पिता ने आपके पिता से जो नगर छीन लिये थे, मैं उन्हें लौटा दूँगा और दमिश्क में आप व्यापार केन्द्र स्थापित करेंगे, जैसा कि मेरे पिता ने समारिया में किया था"। अहाब ने उत्तर दिया, "मैं तुम्हें इन्हीं शर्तों पर मुक्त करता हूँ"। इसके बाद उसने उसके साथ सन्धि की और उसे कर दिया।

35) ईश्वर की आज्ञा पा कर किसी नबी के शिष्य ने अपने साथी से कहा, "मुझ पर प्रहार करो!" उसने उस पर प्रहार करने से इनकार किया;

36) तो उसने उस से कहा, "तुमने प्रभु की आज्ञा नहीं मानी, इसलिए तुम्हारे यहाँ से जाने के बाद कोई सिंह तुम्हें मार डालेगा" और उसके चले जाने के बाद उस पर एक सिंह टूट पड़ा और उसे मार डाला।

37) तब उसने एक दूसरे व्यक्ति के पास जा कर कहा, "मुझ पर प्रहार करो!" उसने उस पर प्रहार कर उसे घायल कर दिया।

38) इसके बाद वह नबी जा कर राजा की प्रतीक्षा करते हुए मार्ग पर खड़ा रहा। उसने अपनी आँखों पर पट्टी बाँध कर छद्य वेश धारण किया।

39) जब राजा उधर से निकला तो उसने उसे पुकार कर कहा, "आपका दास युद्ध में भाग लेने निकला। तब एक सैनिक ने यह कहते हुए एक बन्दी को मेरे सुपुर्द किया- ‘इस आदमी पर पहरा दो। यदि यह भाग निकलेगा, तो तुम्हें भी अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ेगा, अथवा उसके बदले में तुम्हें एक मन चाँदी देनी पड़ेगी।’

40) जब आपका दास इधर-उधर व्यस्त था, तब वह भाग निकला।’ इस्राएल के राजा ने उसे उत्तर दिया, "तुमने स्वयं अपनी दण्डाज्ञा सुनायी"।

41) इस पर उसने तुरन्त अपनी आँखों की पट्टी खोल ली और इस्राएल के राजा ने देखा कि वह नबियों में से ही एक है।

42) तब उसने राजा से कहा, "प्रभु का यह कहना हैः तुमने एक आदमी को मुक्त किया, जिसका संहार किया जाना चाहिए था; इसलिए उसके प्राणों के बदले तुम को अपने प्राण देने होंगे और उसकी प्रजा के बदले अपनी प्रजा को"।

43) इस्राएल का राजा अप्रसन्न और क्रुद्ध हो कर समारिया में अपने महल चला गया।



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