📖 - राजाओं का दुसरा ग्रन्थ

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अध्याय 06

1) एक बार नबी के शिष्यों ने एलीशा से कहा, "यह घर, जिस में हम आपके साथ रहते हैं, हमारे लिए छोटा पड़ता है।

2) हम यर्दन तट पर जायें और वहाँ से हम में से प्रत्येक एक-एक बल्ली लाये और हम यहाँ रहने के लिए एक घर बनायें।" उसने कहा, "जाओ।

3) उन में से एक ने कहा, "कृपया आप भी अपने इन दासों के साथ चलिए"। उसने उत्तर दिया, "हाँ, मैं भी साथ चलूँगा"

4) और वह उनके साथ गया। जब वे यर्दन के पास पहुँच कर लकड़ी काटने लगे,

5) तो लकड़ी काटते समय किसी की कुल्हाड़ी की फाल निकल कर पानी में जा गिरी। उसने चिल्ला कर कहा, "स्वामी! यह उधार माँगी कुल्हाड़ी थी"।

6) ईश्वर-भक्त ने पूछा, "वह कहाँ गिरी है?" उसने वह स्थान बताया। एलीशा ने एक लकड़ी का टुकड़ा काट कर वहाँ फेंका और इस प्रकार उस फाल को पानी के ऊपर तैरा दिया।

7) तब उसने कहा, "उसे निकाल लो"। उसने अपना हाथ बढ़ा कर उसे निकाल लिया।

8) अराम का राजा इस्राएलियों से युद्ध कर रहा था। उसने अपने सेवकों के साथ परामर्श करने के बाद कहा, "अमुक स्थान पर अपना पड़ाव डालो"।

9) उधर ईश्वर-भक्त ने इस्राएल के राजा से यह कहला भेजा कि वह इस स्थान से हो कर न जाये, क्योंकि यहाँ अरामी लोग पड़ाव डालने वाले हैं।

10) इस्राएल के राजा ने उस स्थान पर, जिसके विषय में ईश्वर-भक्त ने बताया था, अपने चर भेजे। इस प्रकार वह राजा को कई बार सावधान करता था, जिससे राजा उन स्थानों से सावधान रहता था।

11) अराम के राजा ने इस बात से घबरा कर अपने सेवकों को इकट्ठा करवाया और उन से पूछा, "क्या तुम लोग मुझे बता सकते हो कि हम में कौन इस्राएल के राजा का समर्थक है?"

12) उसके सेवकों में से एक ने कहा, "महाराज! मेरे स्वामी! हम में से कोई नहीं। परन्तु इस्राएल का नबी एलीशा इस्राएल के राजा को आपकी वे बातें तक बता देता है, जो आप अपने शयनागार में कहते हैं।"

13) इस पर उसने आज्ञा दी, "जाओ और देखो कि वह कहाँ है, जिससे मैं उसे पकड़ने किसी को भेजूँ"। उसे बताया गया कि वह दोतान में है।

14) इसलिए उसने घोड़ों और रथों-सहित एक बड़ा सैनिक-दल वहाँ भेजा। वे वहाँ रात के समय पहुँचे और उन्होंने नगर को घेर लिया।

15) ईश्वर-भक्त का सेवक सबेरे उठ कर बाहर निकला, तो देखता क्या है कि घोड़ों और रथों-सहित एक सैनिक दल नगर को घेरे पड़ा है। सेवक ने कहा, "स्वामी! हम क्या करें?

16) लेकिन उसने कहा, "डरो मत। जो हमारे साथ हैं, वे उन से अधिक हैं, जो उनके साथ हैं।"

17) इसके बाद एलीशा ने प्रार्थना की, प्रभु! इस युवक को दृष्टि दे, जिससे वह देख सके"। अब प्रभु ने उस युवक की आँखें खोल दीं और उसने देखा कि एलीशा के चारों ओर का पहाड़ घोड़ों और अग्निमय रथों से भरा है।

18) अरामी उस पर आक्रमण कर ही रहे थे कि एलीशा ने प्रभु से प्रार्थना की, "इन लोगों को अन्धा बना दे" और एलीशा ने जैसी प्रार्थना की थी, प्रभु ने उन्हें अन्धा बना दिया।

19) इस पर एलीशा ने उन से कहा, "यह वह रास्ता नहीं है, यह वह नगर नहीं है। तुम लोग मेरे पीछे आओ और मैं तुम्हें उस व्यक्ति के पास ले चलता हूँ, जिसे तुम ढूँढ रहे हो।" इस प्रकार वह उन्हें समारिया ले चला।

20) समारिया में प्रवेश कर एलीशा ने कहा, "प्रभु, इनकी आँखें खोल दे, जिससे ये देख सकें"। प्रभु ने उनकी आँखें खोलीं, तो उन्होंने देखा कि वे समारिया में हैं।

21) जब इस्राएल के राजा ने उन्हें देखा, तो उसने एलीशा से पूछा, "मेरे पिता! क्या मैं इन्हें मार डालूँ?"

22) लेकिन उसने कहा, "नहीं। इन्हें नहीं मारिए। क्या आप उन्हें मारते हैं, जिन्हें आपने अपनी तलवार और धनुष से बन्दी बनाया है? इन्हें खाने-पीने की रोटी-पानी दीजिए, जिससे ये खा-पी कर अपने स्वामी के पास चले जायें।"

23) इस पर राजा ने एक भोज दिया और उनके खा-पी लेने के बाद उन्हें विदा किया और वे अपने स्वामी के पास लौट गये। इस घटना के बाद अरामियों ने इस्राएल पर छापा मारना छोड़ दिया।

24) इसके बाद अराम के राजा बेन-हदद ने अपनी सारी सेना एकत्रित कर समारिया पर आक्रमण किया और उसे घेर लिया।

25) शत्रुओं के द्वारा घिर जाने के कारण समारिया में इतना भीषण अकाल पड़ा कि एक गधे का सिर चाँदी के अस्सी शेकेल में और कबूतर की बीट का आधा सेर चाँदी के पाँच शेकेल में बिकने लगा।

26) इस्राएल का राजा दीवार के ऊपर चला रहा था कि एक स्त्री ने उस से चिल्ला कर कहा, "श्रीमान्, महाराज, मेरी सहायता कीजिए!"

27) उसने उत्तर दिया, "यदि प्रभु तुम्हारी सहायता नहीं करता, तो फिर मैं कहाँ से तुम्हारी सहायता करूँगा- क्या खलिहान से, क्या अंगूर के कोल्हू से?"

28) फिर राजा ने उस से पूछा, "तुम क्या चाहती हो?" उसने उत्तर दिया, "एक स्त्री ने मुझ से कहा कि तुम अपना पुत्र दो, जिससे हम आज उसे खायें और कल मेरे पुत्र को खायेंगी।

29) इसलिए हम दोनों ने मेरे पुत्र को पकाया और खाया। दूसरे दिन मैंने उस से कहा कि अब तुम अपना पुत्र दो, उसे हम खायें, तो उसने अपने पुत्र को छिपा लिया"।

30) स्त्री की इन बातों को सुन कर राजा ने अपने वस्त्र फाड़ लिये। वह उस समय दीवार पर चला जा रहा था और लोगों ने देखा कि वह अपने शरीर पर टाट लपेटे है।

31) उसने कहा, "यदि आज मैं शाफ़ाट के पुत्र एलीशा का सिर उसके धड़ से अलग न कर दूँ, तो ईश्वर मुझे कठोर-से-कठोर दण्ड दिलाये"।

32) उस समय एलीशा अपने घर में था और उसके आसपास नेता बैठे हुए थे। राजा ने अपने आने के पहले एक आदमी भेजा। उस दूत के वहाँ पहुँचने के पहले ही एलीशा ने नेताओं से कहा, "देखो, मेरा सिर काटने के लिए वह हत्यारा किसी को भेज रहा है। सावधान रहो, उस दूत के आने पर दरवाज़ा बन्द कर दो और उस को किवाड़ों से बाहर ढ्केल दो; क्योंकि मुझे उसके पीछे उसके स्वामी की आहट सुनाई दे रही हो।"

33) वह उन से यह कह ही रहा था कि राजा उसके पास आ गया और कहने लगा, "यह विपत्ति प्रभु की ओर से आयी है। अब मैं प्रभु से किस बात की आशा करूँ?"



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