📖 - राजाओं का दुसरा ग्रन्थ

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अध्याय 18

1) एला के पुत्र इस्राएल के राजा होशेआ के तीसरे वर्ष आहाज़ का पुत्र हिज़कीया यूदा का राजा बना।

2) जब वह शासन करने लगा, तो उसकी अवस्था पच्चीस वर्ष थी। उसने येरूसालेम में उनतीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माता का नाम अबी था। वह ज़कर्या की पुत्री थी।

3) अपने पुरखे दाऊद की तरह उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में उचित है।

4) उसने पहाड़ी पूजास्थान हटा दिये, पूजास्तम्भों को तोड़ा, अशेरा-देवी के खूँटे काट डाले और मूसा द्वारा बनवाया हुआ काँसे का साँप टुकडे़-टुकड़े कर डाला, क्योंकि इस्राएली उस समय तक उसके सामने धूप देते आ रहे थे। लोग उसे नहुष्तान कहते थे।

5) हिज़कीया को प्रभु, इस्राएल के ईश्वर पर भरोसा था। यूदा के सारे राजाओं, में कोई दूसरा उसके जैसा नहीं हुआ- न कभी पहले और न कभी बाद में।

6) वह प्रभु से संयुक्त रहा और कभी उससे विमुख नहीं हो गया। वह मूसा को दी हुई प्रभु की आज्ञाओं का पालन करता था।

7) प्रभु उसके साथ रहा। वह अपने सब कामों में सफल हुआ। उसने अस्सूर के राजा के विरुद्ध विद्रोह किया और इसके बाद उसके अधीन नहीं रहा।

8) उसने गाज़ा और उसके आसपास के प्रदेश तक फ़िलिस्तियों के सब क़िले और क़िलाबन्द नगर अपने अधिकार में कर लिये।

9) हिज़कीया के शासन के चैथे वर्ष, अर्थात् एला के पुत्र इस्राएल के राजा होशेआ के सातवें वर्ष, अस्सूर के राजा षलमन-एसेर ने समारिया पर आक्रमण कर उसे घेर लिया।

10) उसने तीन वर्ष बाद उस पर अधिकार कर लिया। उसने हिज़कीया के छठे वर्ष, अर्थात् इस्राएल के राजा होशेआ के नौवें वर्ष, समारिया पर अधिकार कर लिया।

11) अस्सूर का राजा इस्राएलियों को बन्दी बना कर अस्सूर ले गया और उन्हें हलह में, गोज़ान की नदी हाबोर के तट पर और मेदियों के नगरों में बसा दिया।

12) यह इसलिए हुआ कि उन्होंने प्रभु, अपने ईश्वर की वाणी पर ध्यान नहीं दिया और उसका विधान भंग किया था। उन्होंने प्रभु के सेवक मूसा की सब आज्ञाओं पर न तो ध्यान दिया और न उनका पालन ही किया।

13) राजा हिज़कीया के चैदहवें वर्ष अस्सूर के राजा सनहेरीब ने यूदा के सब क़िलाबन्द नगरों पर आक्रमण कर उन पर अधिकार कर लिया।

14) यूदा के राजा हिज़कीया ने अस्सूर के राजा के पास लाकीश में कहला भेजा, "मैंने अपराध किया है, लेकिन मुझे छोड़ दीजिए। आप जो कुछ मुझ से माँगेंगे, मैं दे दूंगा।" इस पर अस्सूरी राजा ने यूदा के राजा हिज़कीया से तीन सौ मन चाँदी और तीस मन सोना माँगा।

15) हिज़कीया को प्रभु के मन्दिर की और राजमहल के कोषागार की सारी चाँदी दे देनी पड़ी।

16) उस समय यूदा के राजा हिज़कीया ने प्रभु के मन्दिर के द्वारों और उनकी चैखटों से वह सोना निकलवाया, जिसे उसने उन पर मढ़वाया था और उसे अस्सूर के राजा को दे दिया।

17) अस्सूर के राजा ने अपने प्रधान सेनापति, प्रमुख कंचुकी और प्रधान रसद प्रबन्धक को एक बडे़ सैनिक दल के साथ लाकीश से राजा हिज़कीया के यहाँ येरूसालेम भेजा। येरूसालेम पहुँच कर वे ऊपरी जलकुण्ड की नहर के निकट, धोबियों के खेत की सड़क पर रूके और

18) उन्होंने राजा को बुलवाया। तब हिलकीया का पुत्र महल का प्रबन्धक एल्याकीम, सचिव षेबना और आसाफ़ का पुत्र अभिलेखी योआह उनके पास आये।

19) प्रधान रसद-प्रबन्धक ने उन से कहा, "तुम लोग हिज़कीया से कहोगे कि अस्स्ूार के राजाधिराज कहते हैं: ‘तुम किस बात पर भरोसा रखते हो?

20) तुमने कहा-षब्द मात्र से मुझे युद्ध के लिए परामर्श और बल मिलेगा। तुमने मेरे विरुद्ध विद्रोह करने के लिए किस पर भरोसा रखा?

21) देखो, तुम्हें उस टूटे सरकण्डे का, उस मिस्र का भरोसा है। जो उस पर टिकेगा वह उसी के हाथ में चुभ जायेगा। मिस्र का राजा फ़िराउन अपने ऊपर भरोसा करने वाले सब लोगों के साथ ऐसा ही करता आ रहा है।

22) और यदि तुम मुझ से कहो कि हमें प्रभु, अपने ईश्वर का भरोसा है, तो विचार करो कि हिज़कीया ने उसके पहाड़ी पूजास्थानों और वेदियों को गिरा दिया है तथा युदा और येरूसालेमवासियों को आज्ञा दी है कि उन्हें केवल येरूसालेम की वेदी के सामने आराधना करनी चाहिए।

23) इसलिए आओ, अब मेरे स्वामी अस्सूर के राजा को चुनौती दो और मैं तुम्हें दो हज़ार घोड़े दे रहा हूँ, बषर्ते तुम उनके लिए सवार पा सको।

24) तुम मिस्र के रथ और रथियों का भरोसा करते हो। क्या तुम मेरे स्वामी के छोटे-से-छोटे कर्मचारी का सामना कर सकोगे?

25) इसके अतिरिक्त, क्या में प्रभु की आज्ञा के बिना यह स्थान उजाड़ने आया हूँ? प्रभु ने स्वयं ही मुझसे कहा था कि इस देश के उजाड़ने मे लिए इस पर आक्रमण करो’ !

26) हिलकीया के पुत्र एल्याकीम, षेबना और योआह ने प्रधान रसद-‘प्रबन्धक से कहा, "कृपया अपने दासों से अरामी भाषा में बोलिए। उसे हम भी समझते हैं। इन लोगों के सामने जो दीवार पर बैठे हैं, हम से यहूदी भाषा में बातचीत मत कीजिए।"

27) प्रधान रसद-प्रबन्धक ने उन्हें उत्तर दिया, "क्या मेरे स्वामी ने मुझे तुम्हारे स्वामी और तुमसे ही बातचीत करने के लिए भेजा है? नहीं, मुझे तो उन आदमियों से भी बातचीत करने लिए भेजा गया है, जो दीवार पर बैठे हैं। और जिन्हें तुम्हारी तरह ही अपना मल-मूत्र खाना-पीना पड़ेगा।"

28) इसके बाद प्रधान रसद-प्रबन्धक ने आगे बढ़ कर उच्च स्वर से यहूदी भाषा में कहा, "अस्सूर के राजाधिराज की बात सुनो!

29) राजा का कथन है कि तुम हिज़कीया के धोखे में न फँसना, क्योंकि वह तुम्हें मेरे हाथ से नहीं बचा सकेगा।

30) हिज़कीया यह कहते हुए तुम्हें प्रभु का झूठा भरोसा न दिला पाये कि प्रभु हमारी रक्षा अवश्य करेगा और यह नगर अस्सूर के राजा के हाथों नहीं पडे़गा।

31) हिज़कीया की बात पर ध्यान न देना। अस्सूर का राजा तुम्हारे सामने यह प्रस्ताव रखता है कि मेरे साथ सन्धि कर कर लो, मेरे पक्ष में आ जाओ। तब तुम में प्रत्येक अपनी दाखलता और अपने अंजीर-वृक्ष का फल खा सकेगा और अपने कुएँ से पानी पी सकेगा।

32) मै बाद में आऊँगा और तुम्हें ऐसे देश ले जाऊँगा, जो तुम्हारे ही देश की तरह है; एक ऐसे देश, जो अन्न और अंगूरी से भरा है; एक ऐसे देश, जो खाद्यान्नों और दाखबारियों से भरा है; एक ऐसा देश, जो तेल और मधु से भरा है। तब तुम भूखों नहीं मरो

33) क्या राष्ट्रों के देवता अस्सूर के राजा से अपना देश बचा सके?

34) हमात और अर्पाद के देवता कहँा हैं? सफ़रवईम, हेना और इव्वा के देवता कहाँ हैं? क्या वे मेरे हाथ से समारिया की रक्षा कर पाये?

35) जब उन देशों के सभी देवताओं में से कोई भी मेरे हाथ से अपने देश की रक्षा नहीं कर पाया, तो क्या प्रभु मेरे हाथ से येरूसालेम की रक्षा कर पायेगा?"

36) लोग चुप रहे और उन्होंने उसे कोई उत्तर नहीं दिया , क्योंकि राजा की आज्ञा थी कि तुम उसे उत्तर नहीं दोगे।

37) इसके बाद हिलकीया का पुत्र महल का प्रबन्धक एल्याकीम, सचिव षेबना और आसाफ़ का पुत्र अभिलेखी योआह फाड़े हुए वस्त्र पहने हिज़कीया के पास गये और उसे प्रधान रसद-प्रबन्धक की बातें सुनायीं।



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