📖 - दुसरा इतिहास ग्रन्थ

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अध्याय 03

1) सुलेमान ने येरूसालेम की मोरीया पहाड़ी पर प्रभु का घर बनाना प्रारम्भ किया, जहाँ प्रभु ने उसके पिता दाऊद को दर्शन दिये थे-उस स्थान पर, जिसे दाऊद ने निश्चित कर दिया था, अर्थात् यबूसी ओरनान के खलिहान पर।

2) उसने अपने शासन के चैथे वर्ष के दूसरे महीने काम शुरू किया।

3) सुलेमान ने प्रभु के मन्दिर की नींव इस प्रकार निश्चित की-पुरानी माप के अनुसार लम्बाई साठ हाथ की थी और चैड़ाई बीस हाथ की।

4) मन्दिर के मध्य भाग के सामने बीस हाथ लम्बा द्वारमण्डप था, जो मन्दिर की चैड़ाई के बराबर था। उसकी ऊँचाई एक सौ बीस हाथ थी। उसने द्वारमण्डप का भीतरी भाग शुद्ध सोने से मढ़वाया।

5) उसने मध्य भाग को सनोवर की लकड़ी से ढकवा दिया और उस पर शुद्ध सोना मढ़वाया। फिर उसने उस पर खजूर ओर मालाएँ खुदवायीं।

6) मन्दिर बहुमूल्य मणियों से सजाया गया। सोना परवाईम का सोना था।

7) इस प्रकार उसने मन्दिर, उसकी कड़ियों, देहलियों, दीवारों और उसके दरव़ाजों को सोने से मढ़वाया और दीवारों पर केरूब खुदवाये।

8) उसने परमपवित्र-स्थान बनवाया। मन्दिर की चैड़ाई के समान ही उसकी लम्बाई बीस हाथ थी और उसकी चैड़ाई बीस हाथ। उसने उस पर छः सौ मन शुद्ध सोना मढ़वाया।

9) सोने की कीलों का वजऩ पचास शेकेल था। उसने ऊपर वाले कमरों को भी सोने से मढ़वाया।

10) उसने परमपवित्र-स्थान के कक्ष में दो केरूब रखवाये। ये ढलवें धातु के बने और सोने से मढे़ थे।

11) उन केरूबों के फैले हुए पंख बीस हाथ लम्बे थे। पहले केरूब का एक पंख पाँच हाथ लम्बा था और वह मन्दिर की दीवार का स्पर्श करता था। उसका दूसरा पंख भी पाँच हाथ का था और वह दूसरे केरूब के पंख का स्पर्श करता था।

12) दूसरे केरूब का पंख भी पाँच हाथ लम्बा था और वह मन्दिर की दीवार का स्पर्श करता था। उसका दूसरा पंख भी पाँच हाथ लम्बा था और पहले केरूब के पंख का स्पर्श करता था।

13) उन केरूबों के पंखों की चैड़ाई कुल मिला कर बीस हाथ थी। वे भीतर की ओर मुँह किये अपने पाँवों पर खड़े थे।

14) उसने बैंगनी, लाल और किरमिजी कपड़ों और छालटी से एक परदा बनवाया और उस पर केरूब कढ़वाये।

15) उसने घर के सामने पैंतीस हाथ ऊँचे दो खम्बे बनवाये और प्रत्येक के ऊपर पाँच हाथ का एक स्तम्भषीर्ष बनवाया।

16) उसने मालाएँ बनवायीं और उन्हें खम्भों के ऊपर रखा, फिर एक सौ अनार बनवा कर उन्हें उन मालाओं पर लगवाया।

17) उसने उन खम्भों को मन्दिर के सामने खड़ा किया- एक को दाहिनी ओर और एक को बायीं ओर। उसने दाहिनी ओर वाले का नाम ‘याकीन’ रखा और बायीं ओर वाले का नाम ‘बोअज़’।



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