📖 - दुसरा इतिहास ग्रन्थ

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अध्याय 18

1) यहोशाफ़ाट को बड़ी धन-सम्पत्ति और सम्मान प्राप्त हुआ। उसने अहाब के परिवार के साथ अपने परिवार का वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किया।

2) वह कुछ वर्ष के बाद समारिया में अहाब के यहाँ गया। अहाब ने उसके और उसके साथियों के लिए बड़ी संख्या में भेड़ों और बछड़ों का वध करवाया और उसे गिलआद के रामोत के विरुध्द आक्रमण करने को बहकाया।

3) इस्राएल के राजा अहाब ने यूदा के राजा यहोशाफ़ाट से पूछा, "क्या आप मेरे साथ गिललाद के रामोत पर आक्रमण करने को तैयार हैं?" उसने उत्तर दिया, "आपकी तरह मैं और आपकी प्रजा की तरह मेरी प्रजा आपके साथ लड़ाई में भाग लेने को तैयार है"।

4) यहोशाफ़ाट ने इस्राएल के राजा से कहा, "पहले प्रभु की आज्ञा ले लीजिए"।

5) इस पर इस्राएल के राजा ने नबियों को, जिनकी संख्या चार सौ थी, एकत्रित किया और उन से पूछा, "क्या हम गिलआद के रामोत के विरुद्ध युद्ध करने जायें?" उन्होंने उत्तर दिया, "जाइए, ईश्वर उसे राजा के हाथ दे देगा।"

6) यहोशाफ़ाट ने कहा, "क्या यहाँ प्रभु का और कोई नबी नहीं है, जिस से हम पूछ सकें?"

7) इस्राएल के राजा ने यहोशाफ़ाट को उत्तर दिया, "एक और भी है, जिसके द्वारा हम प्रभु से पूछ सकते हैं; लेकिन मैं उस से घृणा करता हूँ, क्योंकि वह मेरे सम्बन्ध में कभी कोई अच्छी बात नहीं कहता है। वह यिमला केा पुत्र मीकयाह है।" इस पर यहोशाफ़ाट ने कहा, "राजा को ऐसा नहीं कहना चाहिए"।

8) तब इस्राएल के राजा ने यिमला के पुत्र मीकायाह को शीघ्र बुलाने की किसी पदाधिकारी को आज्ञा दी।

9) जब इस्राएल का राजा और यूदा का राजा अपने-अपने राजकीय वस्त्र पहने अपने-अपने आसनों पर समारिया के फाटक के पास खलिहान में बैठे थे और सब नबी उनके सामने भविष्यवाणी कर रहे थे,

10) तब कनानन के पुत्र सिदकीया ने, जिसने अपने लिए लोहे के सींग बनवाये थे, कहा, "प्रभु का कहना है कि ऐसे सींगों से ही आप अरामियों को तब तक मारते रहेंगे, जब तक वे नष्ट न हो जायेंगे"।

11) इस प्रकार अन्य सब नबियों ने भविष्यवाणी करते हुए कहा, "गिलआद के रामोत पर आक्रमण करने के लिए जाइए। आप विजयी होंगे। प्रभु उसे राजा के हाथ दे देगा।"

12) उस दूत ने, जो मीकायाह को बुलाने गया था, उस से कहा, "देखिए, सभी नबी एक स्वर से राजा की विजय की भविष्यवाणी कर रहे हैं। आपकी भविष्यवाणी भी उनकी तरह शुभ हो।"

13) परन्तु मीकायाह ने कहा, "प्रभु की शपथ! मैं तो केवल वही कहूँगा, जो मेरा ईश्वर मुझ से कहेगा"।

14) जैसे ही वह राजा के पास आया, राजा ने उस से पूछा, "मीकायाह! हम गिलआद के रामोत के विरुध्द लड़ने जायें या नहीं?" उसने उत्तर दिया, "जाइए! आप विजयी होंगे। प्रभु उसे आपके हाथ दे देगा।"

15) राजा ने उस से कहा, "और कितनी बार मुझे आप से कहना पड़ेगा कि प्रभु के नाम पर आप सत्य के सिवा और कुछ न कहें?"

16) तब उसने कहा, "मैंने सब इस्राएलियों को बिना चरवाहें की भेड़ों की तरह पर्वतों पर इधर-उधर बिखरते देखा; और प्रभु ने कहा, ‘इनका कोई स्वामी नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने घर शान्ति पूर्वक चला जाये’।"

17) तब इस्राएल के राजा ने यहोशाफ़ाट से कहा, "मैंने तुम से कहा था न कि यह मेरे सम्बन्ध में कभी कोई अच्छी बात नहीं कहता, केवल अशुभ बातें कहता है"।

18) मीकायाह ने कहा, "अब प्रभु की यह वाणी सुनिए: मैंने प्रभु को उसके सिंहासन पर विराजमान देखा। स्वर्ग के समस्त गण उसके दाहिने और बायें खड़े थे।

19) तब प्रभु ने कहा, ‘इस्राएल के राजा अहाब को कौन बहकायेगा, जिससे वह गिलआद के रामोत तक आये और वहाँ मार डाला जाये?’

20) किसी ने कुछ कहा, किसी ने कुछ। तब प्रभु के सामने एक आत्मा आया और बोला कि मैं ही उसे बहकाऊँगा। प्रभु ने उस से पूछा, ‘कैसे?’

21) उसने उत्तर दिया, ‘मैं जा कर उसके सब नबियों के मुँह में झूठ बोलने वाला आत्मा बनूँगा’। प्रभु ने कहा, ‘तुम उसे बहका पाओगे, तुम्हें सफलता प्राप्त होगी। जा कर ऐसा करो।’

22) प्रभु ने आपके इन नबियों के मुहँ में झूठ बोलने वाला आत्मा बिठा दिया है; क्योंकि प्रभु ने आपके विषय में अशुभ परिणाम निश्चित कर दिया है।"

23) इस पर कनाना के पुत्र सिदकीया ने पास आ कर मीकायाह को यह कहते हुए थप्पड़ मारा, "क्या? क्या प्रभु के आत्मा ने तुम से बोलने के लिए मुझे छोड़ दिया है?"

24) मीकायाह ने उत्तर दिया, "तुम्हें उस दिन पता चलेगा, जिस दिन तुम स्वयं भीतरी कमरे में छिपने के लिए भाग जाओगे"।

25) इस पर इस्राएल के राजा ने आदेश दिया, "मीकायाह को पकड़ कर नगर के प्रशासक आमोन और राजकुमार योआश के पास ले जाओ

26) और कहो कि राजा का आदेश है कि इसे बन्दीगृह में डाल दिया जाये और जब तक मैं सकुशल न लौट आऊँ, तब तक उसे जीने भर के लिए रोटी-पानी दिया जाये"।

27) लेकिन मीकायाह ने कहा, "यदि आप सकुशल लौट आयें, तो समझ लीजिएगा कि मेरे द्वारा प्रभु नहीं बोला है" और उसने यह भी कहा, "आप सब लोग मेरी यह बात सुन लीजिए!"

28) इसके बाद इस्राएल का राजा और यूदा का राजा यहोशाफ़ाट गिलआद के रामोत गये।

29) वहाँ इस्राएल के राजा ने यहोशाफ़ाट से कहा, "मैं अपना वेष बदल कर युद्ध में चल रहा हूँ, लेकिन आप अपने वस्त्र धारण किये रहिए"। इसलिए इस्राएल का राजा अपना वेष बदल कर युद्ध में चला गया।

30) अराम के राजा ने अपनी रथ-सेना के अध्यक्षों से कहा, "इस्राएल के राजा के सिवा किसी दूसरे छोटे या बडे़ योद्धा पर आक्रमण मत करो"।

31) जब रथ-सेना के अध्यक्षों ने यहोशाफ़ाट को देखा, तो उन्होंने कहा, "इस्राएल का राजा यही है" और वे उसे घेर कर उस पर टूट पड़े। यहोशाफ़ाट चिल्लाने लगा और प्रभु ने उसकी सहायता की। ईश्वर ने लोगों को दूसरी ओर भेजा;

32) क्योंकि जब रथ-सेना के अध्यक्षों को पता चला कि वह इस्राएल का राजा नहीं है, तो उन्होंने उसका पीछा करना छोड़ दिया।

33) एक सैनिक ने अपना धनुष उठा कर यों ही तीर चलाया और वह इस्राएल के राजा के कवच और कमरबन्द के बीच लग गया। तब उसने अपने सारथी को आदेश दिया, "रथ मोड़ कर मुझे यद्धक्षेत्र के बाहर ले चलो। मैं घायल हो गया हूँ।"

34) जब उस दिन घमासान युद्ध होता रहा, तो राजा को शाम तक अरामियों के सामने रथ में खड़ा रहना पड़ा। शाम होते-होते उसकी मृत्यु हो गयी।



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