📖 - दुसरा इतिहास ग्रन्थ

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अध्याय 25

1) जब अमस्या राजा बना, तो वह पच्चीस वर्ष का था। उसने येरूसालेम में उनतीस वर्ष शासन किया। उसकी माता का नाम यहोअद्दान था। वह येरूसालेम की थी।

2) उसने वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में उचित है, किन्तु वह पूरे हृदय से ईश्वर के प्रति ईमानदार नहीं रहा।

3) जब राजसत्ता उसके हाथ में सुदृढ़ हो गयी, तो उसने उन सेवकों को प्राणदण्ड दिया, जिन्होंने उसके पिता राजा का वध किया था;

4) परन्तु उनके पुत्रों का वध नहीं किया, जैसा कि संहिता, मूसा के ग्रन्थ में लिखा है, जहाँ प्रभु ने यह आदेश दिया- ‘न तो पिता को अपने किसी पुत्र के पाप के कारण प्राणदण्ड दिया जाये और न पुत्र को अपने पिता के पाप के कारण। हर व्यक्ति को अपने पाप के लिए प्राणदण्ड दिया जायेगा।"

5) अमस्या ने यूदावंशियों को एकत्रित किया और सारे यूदा और बेनयामीन के कुलों के अनुसार सहस्रपतियों और शतपतियों को नियुक्त किया। उसने उन सब की गणना की, जो बीस वर्ष और उस से ऊपर के थे, तो युद्ध-योग्य, ढाल और भालाधारी व्यक्तियों की संख्या कुल मिला कर तीन लाख थी।

6) इसके अतिरिक्त इसने एक सौ मन चाँदी दे कर इस्राएल से एक लाख वीर योद्धाओं को किराये पर ले लिया।

7) लेकिन एक ईश्वर-भक्त ने उसके पास आकर कहा, "राजा! इस्राएल से प्राप्त सेना आपके साथ न जाये; क्योंकि प्रभु न तो इस्राएल के साथ है और न एफ्ऱईम के किसी सम्बन्धी के साथ।

8) यदि वह सेना आपके साथ जायेगी, तो आप भले ही वीरता से लड़ें, किन्तु प्रभु आप को शुत्र के सामने हार जाने के लिए विवष करेगा; क्योंकि ईश्वर में जीतने और हराने की शक्ति है।"

9) अमस्या ने ईश्वर भक्त को उत्तर दिया, "तो उस सौ मन चाँदी का क्या होगा, जिसे मैंने इस्राएली सेना प्राप्त करने के लिए दिया है?" ईश्वर-भक्त ने उत्तर दिया, "ईश्वर आप को इस से अधिक दे सकता है"।

10) तब अमस्या ने एफ्ऱईम से अपने पास आयी हुई सेना को विदा कर दिया और उन्हें स्वदेश लौट जाने दिया। इस से वह सेना यूदा पर बहुत क्रुद्ध हो गयी और भुनभुनाते हुए अपने देश लौटी।

11) जब अमस्या की शक्ति बढ़ गयी, तो वह अपने सैनिकों के साथ निकला और उसने लवणघाटी में सेईर के दस हज़ार आदमियों को मार गिराया।

12) यूदावंशियों ने उसके दस हज़ार सैनिकों को बन्दी बना लिया और उन्हें सेला के पर्वत शिखर पर ले जा कर वहाँ से नीचे गिरा कर उन्हें मार डाला।

13) जिन सैनिकों को अमस्या ने अपने साथ युद्ध करने से रोका था, उन्होंने समारिया से ले कर बेत-होरोन तक यूदा के नगरों पर आक्रमण किया, इन में तीन हज़ार आदमियों को मार डाला और बहुत-सा माल लूट लिया।

14) एदोमियों पर विजय प्राप्त कर लौटते हुए अमस्या सेईरवासियों की देवमूर्तियाँ ले आया और उन को अपने देवताओं के रूप में स्थापित किया, उनकी पूजा की और उनको धूप चढ़ायी। तब प्रभु का क्रोध अमस्या पर भड़क उठा।

15) उसने उसके पास एक नबी भेजा, जिसने उस से कहा, "तुम इस जाति के देवताओं की उपासना क्यों करते हो, जो अपने लोगों को तुम्हारे हाथ से नहीं बचा सके?"

16) वह उस से यह कह ही रहा था कि राजा उसकी बात काटते हुए बोला, "क्या हमने तुम को राज्यमंत्री बनाया है? चुप रहो, नहीं तो तुम मार खाओगे।" तब नबी ने रुक कर कहा, "अब मैं जान गया कि ईश्वर ने आपके विनाश का निश्चिय किया है, क्योंकि आपने यह किया और मेरी सलाह पर ध्यान नहीं दिया"।

17) यूदा के राजा अमस्या ने परामर्श लेने के बाद यहोआहाज़ के पुत्र और येहू के पौत्र इस्राएल के राजा योआश के यहाँ दूत भेज कर उस से कहलवाया, "आइए, हम एक दूसरे का मुकाबला करें"।

18) इस पर इस्राएल के राजा योआश ने यूदा के राजा अमस्या को उत्तर भेजा, "लेबानोन के ऊँटकटारे ने लेबानोन के देवदार को यह सन्देश भेजा, ‘तुम अपनी बेटी का विवाह मेरे बेटे से करो’; किन्तु लेबानोन के एक जंगली पशु ने ऊँटकटारे को पैरों से रौंद डाला।

19) तुम सोचते थे कि मैंने एदोमियों को पराजित किया। इस कारण तुम घमण्डी हो गये हो। तुम अपनी विजय पर गौरव करो, किन्तु अपने घर में ही बैठे रहो। तुम अपने लिए विपत्ति क्यों मोल ले रहे हो? इस से तो तुम्हारा और तुम्हारे साथ यूदा का भी पतन हो जायेग

20) अमस्या ने एक न सुनी। यह ईश्वर का विधान था। वह उन्हें योआश के हाथ देना चाहता था, क्योंकि उन्होंने एदोम के देवताओं की उपासना की थी।

21) इस्राएल का राजा योआश आक्रमण कर बैठा। उसका और यूदा के राजा अमस्या का यूदा के बेत-शेमेष के पास आमना-सामना हुआ।

22) यूदा इस्राएल द्वारा इस तरह पराजित किया गया कि यूदा के लोग अपने-अपने तम्बू में भाग गये।

23) इस्राएल का राजा योआश बेत-शेमेष के पास अहज़्या के पौत्र, योआश के पुत्र, यूदा के राजा अमस्या को बन्दी बना कर येरूसालेम ले गया। उसने एफ्ऱईम के फाटक से ले कर कोण-फाटक तक येरूसालेम की चार सौ हाथ लम्बी चार-दीवारी गिरा दी।

24) वह प्रभु के मन्दिर का सब सोना, चाँदी और सब सामान, जो ओबेद-एदोम के यहाँ रखा था तथा राजभवन का कोष और बन्धक के रूप में व्यक्तियों को भी ले गया। इसके बाद वह समारिया लौट गया।

25) इस्राएल के राजा यहोआहाज़ के पुत्र योआश की मृत्यु के बाद योआश का पुत्र, यूदा का राजा अमस्या पन्द्रह वर्ष और जीवित रहा।

26) अमस्या का आरम्भ ले कर अन्त तक का शेष इतिहास यूदा और इस्राएल के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।

27) अमस्या जिस समय से प्रभु से विमुख होने लगा, तब से उसके विरुद्ध येरूसालेम में षड्यन्त्र रचा गया। जब वह लाकीश भाग गया, तब लोगों ने लाकीश तक उसका पीछा किया और वहाँ उसका वध किया।

28) वह घोड़ों पर रख कर लाया गया और अपने पुरखों के पास दाऊदनगर में दफ़नाया गया।



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