📖 - दुसरा इतिहास ग्रन्थ

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अध्याय 35

1) योषीया ने येरूसालेम में प्रभु के आदर में पास्का-पर्व मनाया। उन्होंने पहले महीने के चैदहवें दिन पास्का के मेमने का वध किया।

2) योषीया ने याजकों का सेवा-कार्य निश्चित किया और उन्हें प्रभु के मन्दिर में अपना कर्तव्य करने के लिए प्रोत्साहित किया।

3) उसने उन लेवियों से, जो समस्त इस्राएलियों को उपदेश देते थे और प्रभु की सेवा में समर्पित थे, कहा, "दाऊद के पुत्र इस्राएल के राजा सुलेमान द्वारा निर्मित भवन में पवित्र मंजूषा रखो। अब तुम्हें उसे कन्धों पर उठा कर ले जाने की आवश्यकता नहीं। अब तुम प्रभु, अपने ईश्वर और उसकी प्रजा इस्राएल की सेवा करो।

4) तुम अपने घरानों और दलों के क्रमानुसार तैयार रहो, जैसा कि राजा दाऊद और उनके पुत्र सुलेमान के निर्देशों में लिखा है।

5) तुम अपने भाइयों, जनसाधारण के कुलों और घरानों के अनुसार और उनके लिए निर्धारित लेवियों के दलों के साथ मन्दिर में उपस्थित रहो।

6) पास्का के मेमने का वध करो। अपने को पवित्र करो और आपने भाइयों की सेवा के लिए तैयार रहो, जिससे प्रभु द्वारा मूसा को दिये गये निर्देशो के अनुसार कार्य किया जाये।"

7) योषीया ने जनता के लिए, उन सब के लिए जो आये थे, पास्का-बलि के रूप में भेड़-बकरियों के बच्चों का प्रबन्ध किया और इसके अतिरिक्त तीन हज़ार बछडे़। ये सब राजा की निजी सम्पत्ति में से थे।

8) उसके पदाधिकारी स्वेच्छा से जनता, याजकों और लेवियों को दान देते थे। हिलकीया, ज़कर्या, और यहीएल ने, जो ईश्वर के मन्दिर के प्रधान थे, याजकों को पास्का-बलि के लिए दो हज़ार छः सौ भेड़-बकरियों के बच्चे और तीन सौ बछड़े दिये।

9) कोनन्या और उसके भाई शमाया तथा नतनएल और हषब्या, यईएल और योज़ाबाद ने, जो लेवियों के प्रधान थे, लेवियों को पास्का-बलि के लिए पाँच हज़ार भेड़-बकरियों के बच्चे और पाँच सौ बछडे़ दिये।

10) उपासना की व्यवस्था पूरी हो जाने पर याजक, राजा के निर्देश का पालन करते हुए, अपने-अपने स्थान पर पहुँच गये और लेवी भी अपने दलों के अनुसार।

11) उन्होंने पास्का के मेमने का वध किया। याजको ने लेवियों के हाथ से रक्त ग्रहण कर उसे वेदी पर छिड़का और लेवियों ने उनकी खालें उतारीं।

12) जैसा कि मूसा के ग्रन्थ में लिखा है, उन्होंने घरानों के मुखियाओं को उनका-अपना भाग दिया और एक भाग अलग कर दिया, जो होम-बलि के रूप में प्रभु को अर्पित किया गया जाता था। बछड़ों के साथ भी ऐसा ही किया गया।

13) उन्होंने नियम के अनुसार पास्का का मेमना भूना और अन्य पवित्र भेंटें कड़ाहों, तवों और पात्रों में पका कर उन्हें शीघ्र ही सब लोगों तक पहुँचाया।

14) इसके बाद उन्होंने अपने और याजकों के लिए प्रसाद तैयार किया; क्योंकि हारूनवंशी याजक रात को देर तक होम-बलियाँ और चर्बी चढ़ाने में लगे थे, इसलिए लेवियों ने अपने और हारूनवंशी याजकों के लिए प्रबन्ध किया।

15) दाऊद, आसाफ़, हेमान और राजा के दृष्टा यदूतून द्वारा निर्दिष्ट व्यवस्था के अनुसार आसाफ़वंशी गायक अपने- अपने स्थानों पर उपस्थित थे और द्वारपाल अपने-अपने निश्चित द्वारों पर। उन को अपना सेवा-कार्य स्थगित नहीं करना पड़ा; क्योंकि उनके भाई-बन्धु लेवियों ने उनके लिए प्रसाद का प्रबन्ध किया था।

16) उस दिन प्रभु के सारे सेवा-कार्य का इस प्रकार प्रबन्ध किया गया कि राजा योषीया के निर्देश के अनुसार पास्का मनाया गया और प्रभु की वेदी पर होम-बलियाँ चढ़ायी गयीं।

17) उस समय एकत्रित इस्राएली पास्का और सात दिन तक बेख़मीर रोटियों का पर्व मनाते रहे।

18) इस्राएल में नबी समूएल के समय से पास्का-पर्व इस प्रकार नहीं मनाया गया था। जिस प्रकार योशीया ने याजकों और लेवियों, यूदा और इस्राएल से आये हुए सभी लोगों तथा येरूसालेम के निवासियों के साथ पास्का मनाया था, उस प्रकार इस्राएल के राजाओं में किसी ने कभी नहीं मनाया था।

19) इस प्रकार योषीया के शासनकाल के अठारहवें वर्ष पास्का मनाया गया।

20) उन कार्यो के बाद, जब योषीया ने मन्दिर को व्यवस्थित किया था, मिस्र का राजा नको फ़रात नदी के पास स्थित करकमीष पर आक्रमण करने गया और योषीया उ़सका सामना करने निकला।

21) नको ने दूतों द्वारा उस से यह कहला भेजाः "यूदा के राजा! मुझ से आप को क्या? आज मैं आपके विरुद्ध लड़ने नहीं आया हूँ, बल्कि उस घराने के विरुद्ध लड़ने आया हूँ, जिसके साथ मेरी शत्रुता है और ईश्वर ने मुझे शीघ्रता करने को कहा है। इसलिए उस ईश्वर के कार्य में बाधा मत डालिए, जो मुझे सहायता दे रहा है। नहीं तो वह आपका सर्वनाश कर देगा।"

22) लेकिन योषीया ने अपना मन नहीं बदला और उस से युद्ध करना चाहा। उसने नको की बातों पर, जो ईश्वर- प्रेरित थीं, ध्यान नहीं दिया और वह उस से युद्ध करने मंगिद्दो के मैदान की ओर चल पड़ा।

23) धनुर्धरों ने राजा योषीया पर बाण चलाये। तब राजा ने अपने सेवकों से कहा, "मुझे ले चलो, मैं बहुत घायल हो गया हूँ"।

24) उसके सेवकों ने उसे युद्ध-रथ से उतारा और दूसरे रथ में बिठा कर येरूसालेम ले गये। वहाँ उसकी मृत्यु हो गयी और वह अपने पूर्वजों के समाधिस्थान में दफ़नाया गया। सारे यूदा और येरूसालेम ने योषीया की मृत्यु पर शोक मनाया।

25) यिरमियाह ने योषीया के लिए शोक-गीत की रचना की। सब गायक और गायिकाएँ आज तक अपने शोक-गीतों में योषीया की चरचा करते हैं। इस्राएल में यह एक परम्परा बन गयी। वे गीत ‘शोकगीत’ नामक ग्रन्थ में सम्मिलित किये गये हैं।

26) योषीया का शेष इतिहास और प्रभु की संहिता के अनुसार

27) उसके सत्कार्य प्रारम्भ से अन्त तक इस्राएल और यूदा के राजाओं के इतिहास-ग्रन्थ में लिखा है।



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