📖 - टोबीत का ग्रन्थ

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अध्याय 01

1) टोबीत, का जीवन-चरित: टोबीत टोबीएल का पुत्र था। टोबीएल अनानीएल का, अनानीएल अदुएल का और अदुएल गबाएल का पुत्र था, जो असाएल के कुटुम्ब और नफ़्ताली के वंश का था।

2) वह अस्सूरी राजा शलमन-एसेर के राज्यकाल में बन्दी बना कर तिसबे से निर्वासित किया गया। तिसबे ऊपरी गलीलिया के कादेश-नफ़्ताली के दक्षिण में, आशेर के ऊपरी भाग में तथा फ़ोगोर के पश्चिम में अवस्थित है।

3) मैं, टोबीत, जीवन भर सन्मार्ग पर चलता रहा और धर्माचरण करता रहा। मैंने अपने उन भाई-बन्धुओं को बहुत-से भिक्षादान दिये, जो मेरे साथ अस्सूरियों के देश के नीनवे नगर में निर्वासित किये गये थे।

4) जब मैं छोटा था और स्वेदश इस्राएल में रहता था, तो मेरे पूर्वज, नफ़्ताली का पूरा वंश दाऊद के घराने और येरूसालेम से अलग हो गया था, यद्यपि येरूसालेम नगर इस्राएल के सब वंशों में से चुना गया था और वहाँ मन्दिर, ईश्वर के निवास का निर्माण और प्रतिष्ठान किया गया था, जिससे इस्राएल के वंश वहाँ युग-युगों तक यज्ञ चढ़ायें।

5) मेरे सब भाई-बंधु और मेरे पिता नफ़्ताली के सब वंशज गलीलिया के सब पहाड़ों पर उस बछड़े को यज्ञ चढ़ाते थे, जिसे इ्रसाएल के राजा यरोबआम ने दान में बनवाया था।

6) परन्तु मैं अकेला बार-बार पर्वों के अवसर पर येरूसालेम जाया करता था, जैसा कि इस्राएल के लिए सदा बना रहने वाला आदेश है। मैं प्रथम फल, पहलौठे बच्चे, पशुओं का दशमांश और भेड़ों का पहला कटा हुआ ऊन ले जाया करता

7) और वेदी पर पर ये चीज़ें हारूनवंशी याजकों को दिया करता। मैं गेंहूँ, अंगूरी, तेल, अनार और अन्य फलों का दशमांश येरूसालेम में सेवा करने वाले लेवियों को दिया करता, दूसरा दशमांश बेच कर प्रति वर्ष येरूसालेम में ख़र्च करता।

8) तीसरा दशमांश मैं अनाथों, विधवाओं और इस्राएलियों के यहाँ रहने वाले नवदीक्षित परदेशियों को दिया करता। मैं उसे ला कर प्रत्येक तीन वर्ष बाद उन्हें देता था और हम मूसा की संहिता के आदेश के अनुसार उसे खाते थे। मेरी दादी दबोरा ने मुझे ऐसा करने का आदेश दिया था; क्योंकि मेरे पिता मुझे अनाथ छोड़ गये थे।

9) जब मैं बड़ा हुआ, तो मेरा विवाह अपने कुटुम्ब की अन्ना नाम की कन्या से हुआ। उस से मुझे टोबीयाह नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ।

10) जब मैं बन्दी बना कर अस्सूरों के देश लाया गया, तो मैं नीनवे आया। मेरे सभी भाई-बन्धु और मेरे सब कुटुम्बी विजातियों का भोजन खाते थे;

11) परन्तु मैं ऐसा नहीं करता था,

12) क्योंकि मैं अपनी सारी आत्मा से अपने ईश्वर को याद करता था।

13) इसलिए सर्वोच्च ईश्वर ने मुझे शलमन-एसेर का कृपापात्र बनाया और मैं उसके लिए सब सामान ख़रीदता था।

14) मैं मेदिया देश में यात्रा करते हुए उसकी मृत्यु के समय तक उसके लिए सामान ख़रीदता था। एक बार मैंने मेदिया के रागै में गब्रिया के भाई बगाएल के यहाँ थैलियों में दस मन चाँदी रखी।

15) शलमन-एसेर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र सनहेरीब उसकी जगह राजा बना। उस समय राजमार्ग अरक्षित थे; इसलिए मैं फिर मेदिया नहीं जा सका।

16) शलमन-एसेर के शासनकाल में मैंने अपनी जाति के भाई-बन्धुओं का बड़ा उपकार किया।

17) मैं भूखों को भोजन दिया करता और नंगों को वस्त्र। जब मेरी जाति का कोई व्यक्ति मर जाता और मैं देखता कि वह नीनवे की चारदीवारी के बाहर फें़क दिया गया है, तो मैं उसे दफ़नाता।

18) जब राजा सनहेरीब को यहूदिया से भागना पड़ा, क्योंकि स्वर्ग के ईश्वर ने उसे उसकी ईशनिन्दा के कारण दण्डित किया था, तो वह क्रुद्ध हो कर बहुत-से इस्राएलियों को मरवा डालता था और मैं उनके शव छिपा कर दफ़ना देता। जब राजा उनके शव ढुँढ़वाता, तो वे उसे नहीं मिलते।

19) नीनवे-निवासियों में से किसी ने जा कर राजा को बताया कि मैं उन को दफ़्नाता हूँ, इसलिए मैं छिप गया। जब मुझे मालूम हुआ कि मुझे मारने के लिए ढूँढा जा रहा है, तो मैं डर के मारे भाग खड़ा हुआ।

20) अपनी पत्नी अन्ना और अपने पुत्र टोबीयाह के सिवा अब मेरे पास कुछ न रहा।

21) चालीस दिन भी नहीं बीते थे कि राजा के दो पुत्रों ने उसका वध किया और वे अराराट पर्वतश्रेणी में भाग गये। उसके स्थान पर उसका पुत्र एसरहद्दोन राजा बना। उसने मेरे भाई अनाएल के पुत्र अहीकार को अपने समस्त कोष का प्रबन्धक बनाया, जिससे वह सारे क्षेत्र का प्रशासक बना।

22) अहीकार ने मेरी सिफ़ारिश की और मुझे फिर से नीनवे आने की अनुमति मिल गयी। अहीकार अस्सूरी राजा सनहेरीब का भोज-प्रबन्धक, दीवान और ख़जंाची रह चुका था और एसरहद्दोन ने उसे फिर नियुक्त किया था। वह मेरा सम्बन्धी था।



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