📖 - एस्तेर का ग्रन्थ

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अध्याय 01

1 (ए) महाराजा अर्तज़र्कसीस के शासनकाल के दूसरे वर्ष, नीसान मास के पहले दिन, मोरदकय ने एक स्वप्न देखा। मोरदकय याईर का पुत्र था, याईर शिमई का और शिमई कीश का। वह बेनयामीन कुल का था।

1 (बी) वह सूसा नगर में रहने वाला यहूदी था; वह प्रतिष्ठित नागरिक था और राजा के दरबार में सेवक था।

1 (सी) वह उन बन्दियों में एक था, जिन्हें बाबुल का राजा नबूकदनेज़र यूदा के राजा यकोन्या के साथ येरूसालेम से ले आया था।

1 (डी) उसका स्वप्न यह थाः कोलाहल और हंगामा सुनाई पड़ा, बादलों का गर्जन, भूकम्प और पृथ्वी पर बड़ा उपद्रव।

1 (इ) फिर दो बड़े परदार सर्प दिखाई दिये, जो एक दूसरे से लड़ने को तैयार थे। वे ज़ोर-ज़ोर से फुफकारते थे।

1 (एफ) उनकी फुफकार सुनते ही सभी राष्ट्र धर्मी राष्ट्र के लोगों से युद्ध करने को तैयार हो गये।

1 (जी) वह अन्धकारमय और विषादपूर्ण दिन था। पृथ्वी पर विपत्ति और घबराहट, दुःख और भारी आतंक!

1 (एच) धर्मी राष्ट्र के सभी लोग आने वाली विपत्तियों के कारण भयभीत हो कर अपने विनाश की आशंका से ईश्वर की दुहाई देने लगे।

1 (आइ) उनकी पुकार पर एक छोटे स्रोत से एक बड़ी नदी, एक उमड़ती हुई जलधारा फूट पड़ी।

1 (के) सूर्योदय के साथ प्रकाश हुआ। दीनहीन लोग प्रतिष्ठित किये गये और वे शक्तिशाली लोगों को निगल गये।

1 (एल) जगने पर मोरदकय उस स्वप्न और ईश्वर की योजनाओं पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित कर रात तक उसका अर्थ तरह-तरह से समझने का प्रयत्न करता रहा।

1 (एम) उस समय मोरदकय बिगतान और तेरेश के साथ, जो राजा के कंचुकी और महलरक्षक थे, प्रांगण में विश्राम कर रहा था।

1 (एन) उसने उनकी बातचीत सुनी और उनके षड्यन्त्रों की छानबीन करने पर उसे यह पता चला कि वे राजा अर्तज़र्कसीस का वध करना चाहते हैं। उसने राजा को उनके विषय में यह सूचना दी।

1 (ओ) राजा ने उन दो कंचुकियों से पूछताछ करायी और उनके दोष स्वीकार करने पर उनका वध कराया।

1 (पी) उसने इस घटना का उल्लेख वर्णन-ग्रन्थ में कराया। स्वयं मोरदकय ने भी इसे अपने लिये लिखा।

1 (क्यू) इसके बाद राजा ने मोरदकय को राजकीय सेवा में नियुक्त किया और पुरस्कार के रूप में उसे उपहार दिये।

1 (आर) हम्मदाता का पुत्र अगागी हामान, जो राजा का प्रिय पात्र था, मोरदकय और उसकी जाति के लोगों को उन दो राजकीय कंचुकियों के कारण हानि पहुँचाने का विचार करने लगा। अर्तज़र्कसीस के समय की घटना है, जिसने भारतवर्ष की सीमा से इथोपिया की सीमा तक के एक सौ सत्ताईस प्रदेशों पर राज्य किया था।

2) जब वह सूसा के क़िले में अपने सिंहासन पर विराजमान था,

3) तो उसने अपने शासन के तीसरे वर्ष अपने सब उच्च पदाधिकारियों और दरबारियों, फ़ारस और मेदिया के क्षत्रपों, कुलीनों और प्रदेशों के राज्यपालों को अपने यहाँ एक महाभोज दिया।

4) वह बहुत दिनों तक, अर्थात् एक सौ अस्सी दिन तक, उन्हें अपने यशस्वी राज्य की सम्पत्ति और अपनी महिमा की भव्यता और प्रताप दिखाता रहा।

5) भोज के दिन पूरे हो जाने पर राजा ने राजा ने सूसा के सब निवासियों-क्या छोटे, क्या बड़े-को निमन्त्रित किया और आदेश दिया कि राजकीय भवन से लगे बगीचे में सात दिन के भोज की तैयारी की जाये।

6) वहाँ चाँदी की छड़ों में और संगमरमर के खम्भों में बैंगनी रंग की छालटी की डोरियों पर सफ़ेद सूती परदे टँगे थे और नीले रंग की झालरें लटक रही थीं तथा लाल, सफे़द, पीले और काले संगमरमर के फ़र्श पर सोने और चाँदी के पलंग रखे गये थे।

7) अतिथि सोने के विभिन्न प्रकार के पात्रों से पान करते थे। राजकीय वैभव के अनुरूप भरपूर अत्युत्तम मदिरा परोसी जा रही थी।

8) कोई पीने के लिए बाध्य नहीं किया जाता था; क्योंकि राजा ने अपने महल के सब पदाधिकारियों को आज्ञा दे रखी थी कि उन्हें प्रत्येक अतिथि का मन रखना चाहिए।

9) रानी वशती ने राजा अर्तज़र्कसीस के महल में स्त्रियों को भी एक भोज दिया।

10) सातवें दिन राजा अर्तज़र्कसीस मदिरा पी कर आनन्दमग्न था। उसने अपने यहाँ सेवा करने वाले सात कंचुकियों को, अर्थात् महूमान, बिज़्ज़ता, हरबोना, बिगता, अबगता, जे़तर और करकस को आज्ञा दी

11) कि वे रानी वशती को राजकीय मुकुट पहने राजा के सामने ले आयें। वह सभी लोगों और क्षत्रपों को उसका सौन्दर्य दिखाना चाहता था; क्योंकि वह बहुत ही सुन्दर थी।

12) परन्तु रानी वशती ने कंचुकियों द्वारा प्राप्त राजा के आदेश पर आना अस्वीकार कर दिया। इस पर राजा अप्रसन्न हुआ और उसका क्रोध भड़क उठा।

13) राजा क़ानून और न्याय के विशेषज्ञों से परामर्श ले कर शासन करता था, इसलिए उसने उन विद्वानों को बुलाया, जो परम्पराओं से परिचित थे

14) और जो उस से सब से निकट थे, अर्थात् कर्शना, शेतार, अदमाता, तरशीश, मेरेस, मरसना और ममूकान को। वे फ़ारसियों और मेदियों के सात प्रशासक और राजा के दरबारी थे। राज्य में उनका प्रथम स्थान था। उसने उन से पूछा,

15) "रानी वशती ने अस्सूर के राजा की आज्ञा का तिरस्कार किया, जिसे राजा ने कंचुकियों द्वारा भेजा था, तो क़ानून को ध्यान में रखते हुए वशती के साथ क्या करना चाहिए?"

16) तब ममूकान ने राजा और प्रशासकों के सामने कहा, "रानी वशती ने केवल राजा के ही विरुद्ध अपराध नहीं किया, बल्कि सब क्षत्रपों और सब लोगों के विरुद्ध भी, जो राजा अर्तज़र्कसीस के सब प्रदेशों में रहते हैं।

17) रानी की यह बात सब स्त्रियों को मालूम हो जायेगी और इस से वे अपने पतियों को यह कहते हुए तुच्छ समझने लगेंगी कि राजा अर्तज़र्कसीस ने रानी वशती को अपने ेसामने आने की आज्ञा दी थी, लेकिन वह नहीं आयी।

18) आज ही फ़ारस और मेदिया की महिलाएँ रानी के व्यवहार के सम्बन्ध में सुनेंगी और वे राजा के सब क्षत्रपों से इसी प्रकार कहेंगी। इस तरह तिरस्कार और विवाद उत्पन्न होगा।

19) यदि राजा उचित समझें, तो राजाज्ञा दी जाये और वह फ़ारसियों और मेदियों के विधि-ग्रन्थों में लिखी जाये, जिससे वह रद्द न हो सके, अर्थात् वशती फिर कभी राजा अर्तज़र्कसीस के सामने न आ सकें और उनका राजकीय पद एक अन्य महिला ग्रहण करे, जो उन से अधिक योग्य हो।

20) यदि राजा का यह निर्णय उनके सारे राज्य में, जो बहुत विस्तृत है, सुनाया जायेगा तो सब पत्नियाँ अपने-अपने पतियों का सम्मान करेंगी- चाहे वे बड़े हों या छोटे।"

21) राजा और प्रशासकों को यह परामर्श अच्छा लगा और राजा ने ममूकान के परामर्श के अनुसार कार्य किया।

22) उसने अपने राज्य के सब प्रदेशों में राजकीय आज्ञा की घोषणा करायी- प्रत्येक प्रदेश की भाषा और लिपि में। वह यह थी कि प्रत्येक पुरुष अपने घर का स्वामी होगा और उसके यहाँ रहने वाली सभी स्त्रियाँ उसके अधीन रहेंगी।



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