📖 - मक्काबियों का दूसरा ग्रन्थ

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अध्याय 04

1) सिमोन ने, जिसके विषय में पहले यह कहा जा चुका है कि उसने कोष के विषय में सूचना दी और अपने देश के साथ विश्वासघात किया था, ओनियस पर यह झूठा अभियोग लगाया कि उसने हेल्योदोरस पर आक्रमण किया था और कि वह सब बुराइयों का उत्तरदायी है।

2) उसने नगर के उपकारक, जाति के रक्षक और संहिता के उत्साही पालनकर्ता को राजद्रोही घोषित करने का साहस किया।

3) सिमोन की शत्रुता यहाँ तक बढ़ गयी कि उसके अनुयायियों द्वारा हत्याएँ होने लगीं।

4) जब ओनियस ने देखा कि सिमोन की यह शत्रुता खतरनाक है और कि केले-सीरिया और फेनीके के शासक मनेस्थेस का पुत्र अपल्लोनियस सिमोन की शत्रुता को प्रोत्साहन देता है,

5) तो वह राजा के पास गया-इसलिए नहीं कि वह अपने नागरिकों पर दोष लगाये, बल्कि इसलिए कि उसे समस्त राष्ट्र और प्रत्येक व्यक्ति के कल्याण की चिंता थी;

6) क्योंकि उसने देखा कि जब तक राजा हस्तक्षेप नहीं करेगा, तब तक न तो प्रशासन में शांति होगी और न सिमोन अपनी हरकतें बंद करेगा।

7) सिलूकस की मृत्यु के बाद अंतियोख, जो एपीफोनस कहलाता है, राजा बना। तब ओनियस के भाई यासोन ने प्रधानयाजक के पद पर अधिकार कर लिया;

8) क्योंकि वह राजा से मिलने गया और उसके तीन सौ साठ मन चाँदी और किसी अन्य सूत्र के प्राप्त अस्सी मन चाँदी देने की प्रतिज्ञा की।

9) इसके सिवा उसने इस शर्त पर और डेढ सौ मन चाँदी देने का वादा किया कि राजा उसे यह अधिकार दे कि वह एक व्यामायशाला और एक अखाडा स्थापित करे और येरूसालेम के निवासियों को अंताकिया कि नागरिकता प्रदान करे।

10) राजा ने अनुमति दे दी। प्रशासन की बगडोर अपने हाथ में लेने के बाद यासोन तुरंत अपने देश-भाइयों में यूनानी रीति-रिवाजों के प्रचलन का प्रवत्र्तन करने लगा।

11) उसने वे छूटें रद्द कर दी, जो उदारमना राजाओं ने यूपोलेमस के पिता योहन के निवेदन पर यहूदियों को दे रखी थीं (यह वही यूपोलेमस हैं, जिसे बाद में मित्रता और सन्धि का संबंध स्थापित करने रोम भेजा गया) । यासोन ने नागरिकों के संहितासम्मन अधिकार समाप्त कर संहिता-विरोधी रीति-रिवाजों का प्रवर्तन किया।

12) उसने बिना विलम्ब किये मंदिर के पर्वत के ठीक नीचे एक व्यायामशाला बनवायी, जिस में उसने कुलीन युवकों को भरती किया।

13) विधर्मी यासोन के कारण-जो प्रधानयाजक नहीं, बल्कि बड़ा कुकर्मी था-यूनानीकरण और विदेशी रीति-रिवाजों का इतना बोलबाला हो गया

14) कि याजकों को वेदी की सेवा करने की चिंता नहीं रही। वे मंदिर को तुच्छ समझते और बलिदान चढ़ाना छोड़ देते, किंतु चक्र फेंकने की घंटी बजते ही वे संहिता-विरोधी खेलों में सम्मिलित होने के लिए व्यायामशाला की ओर दौड़ पड़ते।

15) वे अपने पूर्वजों द्वारा सम्मानित पदों की उपेक्षा करते और यूनानियों द्वारा प्रदत्त सम्मान को बड़ा महत्व देते।

16) इन सब बातों के कारण उनकी दुर्गति हो गयी; क्योंकि वे जिन लोगों के रीति-रिवाजों का अनुकरण करना और हर तरह जिनके सदृश बनना चाहते थे, वे उनके शत्रु और अत्याचारी बन गये।

17) आगे की घटनाएँ इस बात को प्रमाणित करेंगी कि ईश्वरीय नियमों का उल्लंघन करना कोई साधारण बात नहीं है।

18) तीरुस में हर पाँचवें वर्ष राजा की उपस्थिति में खेल-कूद होता था।

19) नीच यासोन ने येरूसालेम के प्रतिनिधियों के रूप में कुछ ऐसे लोगों को भेजा, जिन्हें अंताकिया की नागरिकता प्राप्त हो गयी और उन्हें हेराक्लेस की बलि चढ़ाने के लिए तीन सौ चाँदी के सिक्के दिये। किंतु वहाँ पहुँच कर प्रतिनिधियों को लगा कि यह रूपया बलिदान के लिए देना अनुचित था और उन्होंने उसे एक अन्य कार्य में खर्च किया।

20) भेजने वाले ने इसे इसलिए भेजा था कि इसे हेराक्लेस के बलिदान के लिए खर्च किया। लेकिन लाने वालों को यह बात उचित नहीं लगी, इसलिए इसे नावों के निर्माण के लिए अर्पित किया गया।

21) मनेस्थेस के पुत्र अपल्लोनियस को फिलोमेतोर के राज्यभिषेक के अवसर पर मिस्र भेजा गया। अप्पलोनियस से अंतियोख को मालूम हुआ कि फिलोमेतोर उसकी राजनीति का विरोधी है और इसलिए वह अपने राज्य की सुरक्षा का प्रबंध करने लगा। इस सिलसिले में वह याफ़ा गया और वहाँ से येरूसालेम।

22) यासोन और नगर के लोगों ने बड़ी धूमधाम से उसका स्वागत किया। जैसे ही उसने नगर में प्रवेश किया, नगर के लोगों ने मशालें जलायीं और उसका जयकार किया। इसके बाद वह अपनी सेना के साथ फेनीके लौट आया।

23) तीन वर्ष बाद यासेन ने मनेलास को, जो उपर्युक्त सिमोन का भाई था, राजा को रूपया देने और प्रशासन की कुछ आवश्यक समस्याओं के संबंध में राजा का निर्णय ले आने भेजा।

24) मनेलास ने राजा से मिलने पर उसे यह विश्वास दिलाया कि वह एक प्रभावशाली व्यक्ति है। राजा ने उसे प्रधानयाजक के पद पर नियुक्त किया; क्योंकि उसने यासोन से तीन सौ मन चाँदी अधिक देने की प्रतिज्ञा ली।

25) वह अपनी नियुक्त का राज्यादेश ले कर येरूसालेम पहुँचा, यद्यपि वह उस पद के नितांत अयोग्य था; क्योंकि उसकी प्रकृति क्रूर तानाशाही की जैसी थी और वह क्रोध के आवेश में जंगली जानवर-जैसा व्यवहार करता था।

26) इस प्रकार यासोन, जिसने अपने भाई को पदच्युत किया था अब स्वयं दूसरे के द्वारा पदच्युत कर दिया गया और उसे अम्मोनियों के देश भागना पडा।

27) मनेलास ने पदभार ग्रहण किया, लेकिन उसने राजा को जो रूपया देने का वचन दिया था, वह नहीं दिया-

28) तब भी नहीं दिया, जब गढ के प्रधान सोस्त्रातस ने, जो राजकर वसूलने का अधिकारी था, उसे ऐसा करने को कहा। इस कारण राजा ने दोनों को स्पष्टीकरण के लिए बुला भेजा।

29) मनेलास ने स्थानापन्न प्रधानयाजक के रूप में अपने भाई लिसीमाखस को नियुक्त किया और सोस्त्रातस ने कुप्रुस के सैनिकों के अध्यक्ष क्रातेस को अपने स्थान पर।

30) इस बीच तारसस और मल्लोस में राजद्र्रोह हो रहा था, क्योंकि ये नगर राजा की उपपत्नी अंतियोखिस को दिये गये थे।

31) राजा शीघ्र ही स्थिति सुलझाने वहाँ गया। उसने अन्द्रोनिकस को, जो एक प्रतिष्ठित व्यक्ति था, अपनी जगह पर नियुक्त किया।

32) मनेलास ने सोचा कि वह अच्छा अवसर है। उसने मंदिर के कुछ सोने के पात्र चुरा कर उन्हें अन्द्रोनिकस को भेंट में दे दिये। उसने कुछ अन्य पात्र तीरुस और आसपास के नगरों में बेचे।

33) ओनियस ने इसकी निश्चित जानकरी प्राप्त कर उसे बहुत फटकारा। वह उस समय दफ़ने में था, जो अन्ताकिया के पास एक शरण-नगर है।

34) इस कारण मनेलास ने अन्द्रोनिकस को एकांत में बुला कर उस में अनुरोध किया कि वह ओनियस की हत्या कर दे। इसके बाद उसे विश्वास था कि वह कपट से अपना उद्देश्य पूरा कर सकेगा। उसने ओनियस को हार्दिक प्रणाम किया और शपथ खा कर उसे अपने सद्भाव का विश्वास दिलाया।

35) इस रक्तपात से न केवल यहूदी, परन्तु बहुत-से अन्य गैर-यहूदी लोग भी उस मनुष्य की निर्मम हत्या पर क्रुद्ध और क्षुब्ध हो गये।

36) जैसे ही राजा किलीदिया प्रदेश से लौटा, नगर के यहूदियों और यूनानियों ने, जो इस अपराध की निंदा करते थे, मिल कर राजा से यह शिकायत की कि ओनियस का अकारण वध किया गया है।

37) अन्तियोख को बड़ा दुःख हुआ और उसके हृदय पिघल गया। वह मृतक की प्रज्ञा और संयम का स्मरण करते हुए रो पड़ा।

38) उसने आवेश में आ कर तुरन्त अन्द्रानिकस के बंैगनी वस्त्र उतारे, उसका कुरता फाड़ डाला और उसे पूरे नगर में घुमा कर उस स्थान तक पहुँचाया, जहाँ उसने ओनियस की हत्या करायी थी और वहाँ उस विधर्मी हत्यारे को मरवा दिया। इस प्रकार प्रभु ने उसे उचित दण्ड दिया।

39) लिसीमाखन ने मनेलास की अनुमति से नगर के मंदिर से बहुत-से सोने के पात्र चुराये। जब यह बात लोगों को मालूम हुई, तो वे लिसीमाखस का विरोध करने एकत्र हो गये।

40) लिसीमाखस ने लगभग तीन हजार आदमियों को शस्त्र प्रदान किये और उन्हें उत्तेजित और क्रुद्ध भीड़ पर आक्रमण करने का आदेश दिया। उसने औरानस नामक व्यक्ति को उनका नायक बनाया। औरानस जितना बूढा था, उसना मूर्ख भी था।

41) जब लोगों को पता चला कि लिसीमाखस उन पर आक्रमण करने वाला है, तो वे पत्थर, लकड़ी और राख उठाकर लिसीमाखस के आदमियों पर धड़ाधड फेंकने लगे।

42) इस तरह उन्होंने उन में बहुतों को घायल किया, कुछ लोगों को मार डाला, बाकी सब को भगा दिया और कोष के पास मंदिर के लुटेरे का वध किया।

43) इन घटनाओं के बाद मनेलास पर मुकदमा चलाया गया।

44) जैसै ही राजा तीरुस लौटा, उसके सामने परिषद् के भेजे तीन सदस्यों ने उस पर दोषारोपण किया।

45) जब मनेलास ने देखा कि मामला उसके प्रतिकूल होता जा रहा है, तो उसने दोरिमेनस के पुत्र पतोलेमेउस से कहा कि यदि वह राजा को उसके पक्ष में कर देगा, तो वह एक भारी रकम देगा।

46) पतोलेमेउस राजा को हवा खाने का मौका देने के बहाने प्रांगण ले गया और उसका मन बदलने में सफल हो गया।

47) इसका परिणाम यह हुआ कि राजा ने मनेलास को, जो दंगे का मूल कारण था, दोषमुक्त ठहराया और उन अभागे लोगों को प्राणदण्ड दिया, जिन्हें स्कूती भी दोषमुक्त ठहराते, यदि वे उनका न्याय करते।

48) जो लोग नगर, राष्ट्र और पवित्र पात्रों की रक्षा के लिए उठ खडे़ हुए, उन्हें अविलम्ब अन्यायपूर्वक प्राणदण्ड दिया गया।

49) तीरुस ने निवासी इस अपराध के कारण इतने क्रुद्ध थे कि उन्होंने मृतकों को समारोह के साथ दफनाने का खर्च दिया।

50) इस प्रकार शासकों के लालच के कारण मनेलास अपना पद सँभालता रहा। उसकी दुष्टता बढ़ती गयी और वह सहनागरिकों का कट्टर विरोधी बन गया।



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