📖 - अय्यूब (योब) का ग्रन्थ

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अध्याय 04

1) तब तेमानी एलीफ़ज ने कहाः

2) उसने तुम्हारी परीक्षा ली और तुम उदास हो गये हो। किंतु कौन बोलने से अपने को रोक सकता?

3) तुमने बहुत को शिक्षा प्रदान की और थके-मांदे हाथों को शक्ति दी है।

4) तुम गिरने वालों को समझा कर सँभालते थे; तुम शिथिल घुटनों को सबल बना देते थे।

5) अब, जब तुम पर विपत्ति आती है, तो निराश हो जाते हो; तुम को मारा गया, तो घबरा गये हो।

6) क्या तुम्हें अपनी धार्मिकता पर भरोसा नहीं और अपने निर्दोष आचरण की आशा नहीं?

7) यह बता दोः क्या निर्दोष का कभी सर्वनाश हुआ है? कहाँ धर्मियों को मिटाया गया है?

8) मैने यह देखा है- जो बुराई जोतते और दुःख बोते हैंं, वे दुःख ही लुनते हैं

9) ईश्वर के श्वास मात्र से उनका विनाश होता है, उसकी क्रोधाग्नि में वे भस्म हो जाते हैं।

10) वे सिंहों की तरह गरजते हैं, किंतु उनके दाँत तोड़ दिये जाते हैं।

11) वे शिकार के अभाव में मरते हैं और उनके शावक छितरा जाते हैं:

12) मैंने एकांत में एक वाणी सुनी, उसकी मंद ध्वनि मेरे कानों में पड़ी।

13) जिस समय मनुष्यों को गहरी नींद आती है, उस समय मैं रात्रि के दुःस्वप्नों में

14) भयभीत हो कर थर्रा उठा, मेरी एक-एक हड्डी काँपने लगी।

15) एक श्वास मेरा चेहरा छू गया और मेरे रोंगटे खड़े हो गये।

16) कोई मेरे सामने खड़ा था। मैं उसे नहीं पहचान सका। एक छाया मेरी आँखों के सामने खड़ी रही। सन्नाटे में मुझे एक वाणी सुनाई पड़ी:

17) क्या मनुष्य ईश्वर के सामने धर्मी, अपने सृष्टिकर्ता के सामने शुद्ध प्रमाणित हो सकता हैं?

18) जब ईश्वर अपने सेवको पर विश्वास नहीं करता और स्वर्गदूतों में भी दोष पाता है,

19) तो उन लोगों का क्या, जो मिट्टी के घर में रहते और जिनकी नींव धूल पर आधारित है। वे पंतगे की तरह कुचले जाते हैं।

20) वे एक ही दिन में समाप्त हो कर सदा के लिए नष्ट हो जाते हैं और कोई उन पर ध्यान नहीं देता है।

21) उनके तम्बुओं की रस्सियाँ उखड़ जाती और वे अनजान ही मर जाते हैं।



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