📖 - अय्यूब (योब) का ग्रन्थ

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अध्याय 18

1) शूही बिलदद ने उत्तर देते हुए कहाः

2) तुम कब तक-बोलते रहोगे? तुम सोच लो और उसके बाद हम बातें करेंगे।

3) तुम हमें नासमझ पशु-जैसे क्यों मानते हो? तुम हमें मूर्ख क्यों समझते हो?

4) तुम अपने क्रोध के आवेश में अपने की विक्षत करते हो। क्या तुम चाहते हो कि तुम्हारे कारण पृथ्वी उजड़ जाये और चट्टान अपने स्थान से हट जायें?

5) दुष्ट का दीपक बुझाया जायेगा, उसके घर में अंधकार होगा।

6) उसके तम्बू में प्रकाश नहीं होगा, उसके घर की बत्तियाँ बुझ जायेंगी।

7) उसके दृढ़ कदम शिथिल पड़ जायेंगे, उसके अपने षड्यंत्र उसे गिराते हैं।

8) उसके पैर जाल में फँस जाते हैं; वह चोरगढे में गिर जाता है।

9) एक फंदा उसकी एड़ी जकड़ लेता है, वह जाल में फंस जाता है।

10) उसे फँसाने के लिए पाश छिपाया गया है, उसके मार्ग में जल बिछाया गया है।

11) विभीशिकाएँ उसे चारों ओर से डराती और उसका पीछा करती रहती है।

12) भूख से उसका बल घट जायेगा, विपत्ति उसकी बगल में खड़ी रहती है।

13) बीमारी उसका चमड़ा खा जायेगी, महामरी उसके अंग गला देगी।

14) वे उसे सुरक्षित तम्बू से ले जा कर आतंक के सम्राट के सामने पेश करेंगे।

15) उसका तम्बू जलाया जायेगा और उसकी जमीन पर गंधक बिखेर दिया जायेगा।

16) उसकी जड़े नीचे से सूख जायेंगी और उसकी डालियाँ ऊपर से मुरझायेंगी

17) उसकी स्मृति पृथ्वी पर से मिट चुकी है। देश में कोई उसका नाम नहीं लेता।

18) लोग उसे प्रकाश से अंधकार में ढकेलते हैं और पृथ्वी से उसका बहिष्कार करते हैं।

19) उसकी जाति में उसकी कोई सन्तति नहीं, उसके घर में कोई निवास नहीं करता।

20) पश्चिम के लोग उसके भाग्य पर विस्मित हैं, पूर्व के लोगों के रोंगटे खडे़ हो जाते हैं।

21) विधर्मी के निवास की यह दशा होती है, उस स्थान की, जहाँ ईश्वर पर आस्था नहीं।



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