📖 - अय्यूब (योब) का ग्रन्थ

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अध्याय 24

1) सर्वशाक्तिमान् न्याय का दिन क्यों नहीं निर्धारित करता? उसके भक्त उसके दिन क्यों नहीं देखते?

2) दुर्जन खेतों के सीमा-पत्थर खिसकाते हैं और चुराये हए झुण्ड चराते हैं।

3) वे अनाथों का गधा हाँक कर ले जाते हैं और विधवा के बैल को बंधक के रूप में रखते हैं।

4) वे गरीब को मार्गों से भगाते हैं, देश के सभी दरिद्र छिपने को बाध्य हो जाते हैं,

5) जिससे वे मुँह अंधेरे निकल कर भोजन की खोज में जंगली गधों की तरह उजाड़खण्ड में भटकते-फिरते हैं। उस से उनके बच्चों का निर्वाह होता है।

6) वे रात को लुने हुए खेतों में सिल्ला बीनते और दुष्ट की दाखबारी में बचे हुए अंगूर तोड़ते हैं।

7) वे कपड़ों के अभाव में रात को नंगे पड़े रहते हैं। जाडें में भी उनके पास ओढ़ने को कुछ नहीं।

8) वे पर्वतों की वर्षा से भीगते और आश्रय के अभाव में चट्टान पर पड़े रहते हैं।

9) दुर्जन पितृहीन बच्चों को उनकी माता की गोद से छीनते हैं और दरिद्र की संतान को बंधक के रूप में रखते हैं।

10) गरीब कपड़ों के अभाव में नंगे घूमा करते हैं। वे दूसरों के पूले ढोते और स्वयं भूखे रहते हैं।

11) वे दूसरों के यहाँ तेल पेरते और अंगूर रौंदते हुए भी प्यासे रहते हैं।

12) शहरों में मरने वाले विलाप करते और घायल सहायता के लिए पुकारते हैं, किन्तु ईश्वर इस बात पर ध्यान नहीं देता।

13) दुर्जन ज्योति के विरुद्ध विद्रोह करते, उसे पीठ दिखाते और उसकी उपेक्षा करते हैं।

14) हत्यारा मुँह अँधेरे उठ कर दरिद्र का वध करता और रात को चारी करने जाता है।

15) व्यभिचारी की आँखें झुटपुटे की राह देखती हैं। वह सोचता हैं, "मुझे कोई नहीं देख पायेगा" और वह अपने चेहरे पर परदा डालता है।

16) वे अँधेरे में घरों में सेंध मारते और दिन में छिपे रहते हैं। वे प्रकाश में किनारा काटते हैं।

17) भोर उनके लिए मृत्यु ही छाया-जैसा है। घोर अंधेरा उनका सखा है।

18) वे पानी पर बहते तिनके के सदृश हैं। उनकी भूमि लोगों द्वारा अभिशप्त है और उनकी दाखबारी में कोई नहीं जाता।

19) जिस तरह सूखी भूमि पर गरमी पिघली बर्फ सोख लेती है, उसी तरह अधोलोक पापी को निगलता है।

20) उसकी माता उसे भुला देती है, उसे कीडे खा जाते हैं, उसे कोई नहीं याद करता। दुष्ट पेड़ की तरह काट दिया जाता है।

21) उसने बांझ का शोषण किया और विधवा के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया।

22) किंतु जब ईश्वर उठता है, जो शक्तिशालियों को भी ले जाता है, तो उसे जीवित रहने की आशा नहीं।

23) फिर भी ईश्वर उसे सुरक्षा में रहने देता, किंतु उसकी आँखों उसके आचरण का निरीक्षण करती रहती हैं।

24) वह थोड़े समय तक फलता-फूलता और समाप्त हो जाता है। वह कटे हुए पौधे की तरह अचानक ढेर हो जाता है। वह अनाज की बाल की तरह कट जाता है।

25) यदि ऐसा नहीं, तो कौन मुझे झूठा प्रभामिण करेगा और मेरे तर्कों का खण्डन करेगा?



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