📖 - अय्यूब (योब) का ग्रन्थ

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अध्याय 26

1) अय्यूब ने उत्तर देते हुए कहा:

2) तुम निर्बल की कैसी सहायता करते हो! तुम अशक्त बाँह को कैसे सँभालते हो!

3) तुमने अज्ञानी को कैसा परामर्श दिया! तुमने विवेक का कितना अच्छा प्रदर्शन किया!

4) तुमने किस को सम्बोधित किया? तुम को यह ज्ञान किस से प्राप्त हुआ?

5) मृतक और समुद्र के नीचे के निवासी ईश्वर के सामने थरथर काँपते हैं।

6) अधोलोक उसके सामने खुला है, महागत्र्त उसके सामने अनावृत है।

7) वह उत्तरी आकाश में फैलाता और पृथ्वी को शून्य में लटकाता है।

8) वह बादलों में पानी जमा करता है और बादल उसके बोझ से नहीं फटते।

9) वह पूर्ण चन्द्रमा का मुँह छिपाता और उस पर अपने बादल तान देता है।

10) वह समुद्र की सतह के ऊपर एक वृत खींच कर प्रकाश और अंधकार की सीमाएँ निर्धारित करता है।

11) उसकी डाँट पर आकाश के खम्भे भयभीत हो कर हिलते हैं।

12) उसने अपनी शक्ति से समुद्र को दण्ड दिया और अपने ज्ञान से रहब को पराजित किया।

13) उसने अपनी साँस से आकाश को साफ किया और उसके हाथ ने भागते सर्प को छेदा है।

14) यह उसके कार्यों का आभास मात्र है, हम उनकी झलक मात्र देख पाते हैं। कौन उनकी थाह ले सकता है।



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