📖 - स्तोत्र ग्रन्थ

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अध्याय 108

2 (1-2) ईश्वर! मेरा हृदय प्रस्तुत है। मैं सारे हृदय से गाते-बजाते हुए भजन सुनाऊँगा।

3) सारंगी और वीणा! जागो। मैं प्रभात को जगाऊँगा।

4) प्रभु! मैं राष्ट्रों के बीच तुझे धन्य कहूँगा। मैं देश-विदेश में तेरा स्तुतिगान करूँगा;

5) क्योंकि आकाश के सदृश ऊँची है तेरी सत्यप्रतिज्ञता, तारामण्डल के सदृश ऊँचा है तेरा सत्य।

6) ईश्वर! आकाश के ऊपर अपने को प्रदर्शित कर। समस्त पृथ्वी पर तेरी महिमा प्रकट हो।

7) तू अपने दाहिने हाथ से हमें बचा, हम को उत्तर दे, जिससे तेरे कृपापात्रों का उद्धार हो।

8) ईश्वर ने अपने मन्दिर में यह कहा: "मैं सहर्ष सिखेम का विभाजन करूँगा और सुक्कोथ की घाटी नाप कर बाँट दूँगा।

9) गिलआद प्रदेश मेरा है; मनस्से प्रदेश मेरा है; एफ्रईम मेरे सिर का टोप है; यूदा मेरा राजदण्ड है;

10) मोआब मेरी चिलमची है; मैं एदोम पर अपनी चप्पल रखता हूँ; मैं फिलिस्तिया को युद्ध के लिए ललकारता हूँ।"

11) कौन मुझे किलाबन्द नगर में पहुँचायेगा? कौन मुझे एदोम तक ले जायेगा?

12) वही ईश्वर, जिसने हमें त्यागा है; वही ईश्वर, जो अब हमारी सेनाओं का साथ नहीं देता।

13) शत्रु के विरुद्ध हमारी सहायता कर; क्योंकि मनुष्य की सहायता व्यर्थ है।

14) ईश्वर के साथ हम शूरवीरों की तरह लड़ेंगे; वही हमारे शत्रुओं को रौंदेगा।



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