📖 - स्तोत्र ग्रन्थ

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अध्याय 148

1) अल्लेूलूया! स्वर्ग में प्रभु की स्तुति करो। आकाश में प्रभु की स्तुति करो।

2) प्रभु के सब दूतो! उसकी स्तुति करो। समस्त विश्वमण्डल! उसकी स्तुति करो।

3) सूर्य और चन्द्रमा! उसकी स्तुति करो। जगमगाते तारामण्डल! उसकी स्तुति करो।

4) सर्वोच्च आकाश! उसकी स्तुति करो। आकाश के ऊपर के जल! उसकी स्तुति करो।

5) वे प्रभु के नाम की स्तुति करें, क्योंकि उसके आदेश देते ही उनकी सृष्टि हुई।

6) उसने उन्हें सदा-सर्वदा के लिए स्थापित किया। उसके ठहराये नियम अपरिवर्तनीय हैं।

7) मगर-मच्छो और समस्त गहराइयो! पृथ्वी पर प्रभु की स्तुति करो।

8) आग और ओले, बर्फ और कोहरे! प्रभु की आज्ञा मानने वाली आँधियो!

9) पर्वतों और सब पहाड़ियों! फलदार वृक्षो और देवदारो!

10) बनैले और पालतू पशुओ! रेंगने वाले सर्पो और उड़ने वाले पक्षियो!

11) पृथ्वी के राजाओ और समस्त राष्ट्रो! पृथ्वी के क्षत्रपो और सभी शासको!

12) नवयुवकों और नवयुवतियों! वृद्धो और बालको! प्रभु की स्तुति करो।

13) वे सब-के-सब प्रभु की स्तुति करें, क्योंकि उसी का नाम महान् है। उसकी महिमा पृथ्वी और आकाश से परे है।

14) उसने अपनी प्रजा को बल प्रदान किया है। उसके सभी भक्त इस्राएल की सन्तान तथा उसकी शरण में रहने वाली प्रजा, सब-के-सब प्रभु की स्तुति करें। अल्लेलूया!



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