📖 - स्तोत्र ग्रन्थ

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अध्याय 37

1) दुष्टों को देख कर मत झुँझलाओ, कुकर्मियों से ईर्ष्या मत करो;

2) क्योंकि वे घास की तरह जल्दी मुरझायेंगे और हरियाली की तरह कुम्हलायेंगे।

3) प्रभु पर भरोसा रखो और भलाई करो; तुम स्वदेश में सुरक्षित रह सकोगे।

4) यदि तुम प्रभु में अपना आनन्द पाओगे, तो वह तुम्हारा मनोरथ पूरा करेगा।

5) प्रभु को अपना जीवन अर्पित करो, उस पर भरोसा रखो और वह तुम्हारी रक्षा करेगा।

6) वह तुम्हारी धार्मिकता को उषा की तरह प्रकट करेगा और तुम्हारे न्याय को दोपहर के प्रकाश की तरह।

7) प्रभु के सामने मौन रह कर उसकी प्रतीक्षा करो। जो फलता-फूलता है, उस पर मत झुँझलाओ और न उस मनुष्य पर, जो षड्यन्त्र रचता है।

8) क्रोध मत करो, आवेश छोड़ो, मत झुँझलाओ। यह बुराई की ओर ले जाता है;

9) क्योंकि दुष्टों का विनाश होगा, किन्तु प्रभु की प्रतीक्षा करने वाले देश के अधिकारी होंगे।

10) थोड़े ही समय बाद दुष्ट नहीं रहेगा। तुम उसके स्थान का पता करोगे और वह वहाँ नहीं होगा;

11) किन्तु विनीत देश के अधिकारी होंगे और पूर्ण शान्ति में आनन्द मनायेंगे।

12) दुष्ट धर्मी के विरुद्ध षड्यन्त्र रचता और उस पर दाँत पीसता है।

13) किन्तु प्रभु उस पर हँसता है; क्योंकि वह देखता है कि उसके दिन पूरे हो रहे हैं।

14) दीन-हीन लोगों को समाप्त करने और धर्मियों को मारने के लिए दुष्टों ने तलवार खींची और धनुष चढ़ाया है।

15) किन्तु उनकी तलवार उनका अपना हृदय भेदेगी और उनके धनुष टूट जायेंगे।

16) दुष्टों की अपार सम्पत्ति की अपेक्षा धर्मी का थोड़ा सामान अच्छा है;

17) क्योंकि दुष्टों की बाहें तोड़ी जायेंगी, किन्तु प्रभु धर्मियों को संभालता है।

18) प्रभु धर्मियों के जीवन की रक्षा करता है। उनकी विरासत सदा बनी रहेगी।

19) उन्हें संकट के समय निराश नहीं होना पड़ेगा। अकाल के समय वे तृप्त किये जायेंगे।

20) दुष्टों का विनाश होगा। प्रभु के बैरी चरागाह की हरियाली की तरह मिट जायेंगे। वे धुएँ की तरह विलीन हो जायेंगे।

21) दुष्ट उधार लेता है और लौटाता नहीं। धर्मी दयालु है और देता है।

22) जिन को प्रभु आशीर्वाद देता है, वे देश के अधिकारी होंगे। जिन को वह अभिशाप देता है, उनका विनाश होगा।

23) प्रभु की कृपा से मनुष्य दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ता है। उसका आचरण प्रभु को प्रिय है।

24) वह मनुष्य ठोकर खाने पर भी नहीं गिरता, क्योंकि प्रभु उसका हाथ थामता है।

25) मैं जवान था और अब बूढ़ा हो चला हूँ, किन्तु मैंने न तो धर्मी को निस्सहाय पाया और न उसकी सन्तान को भीख माँगते देखा।

26) धर्मी सदा दयालु हो कर उधार देता है और उसकी संतान को ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त है।

27) बुराई से बचते रहो, भलाई करो और तुम्हारा निवास सदा बना रहेगा;

28) क्योंकि प्रभु को धार्मिकता प्रिय है। वह अपने भक्तों को कभी नहीं त्यागता। वह सदा उनकी रक्षा करता है, किन्तु दुष्टों का वंश नहीं बना रहेगा।

29) धर्मी देश के अधिकारी होंगे और वहाँ सदा के लिए बस जायेंगे।

30) धर्मी विवेकपूर्ण बातें करता है। उसकी जिह्वा न्याय की चरचा करती है।

31) ईश्वर की संहिता उसके हृदय में घर कर गयी है, उसके पैर कभी नहीं फिसलते।

32) दुष्ट धर्मी की घात में बैठे हैं और उसे मारना चाहते हैं।

33) प्रभु उसे उनके हाथों में नहीं छोड़ता और न्यायालय में उसे दोषी नहीं बनने देता।

34) प्रभु की प्रतीक्षा करो, उसके मार्ग पर चलो। वह तुम्हें देश का अधिकारी बनायेगा और तुम दुष्टों का विनाश देखोगे।

35) मैंने दुष्ट को अत्याचार करते और लेबानोन के देवदार की तरह बढ़ते देखा।

36) जब फिर उधर गया, तो वह नहीं रहा। मैंने उसका पता लगाया और उसे नहीं पाया।

37) सच्चरत्रि को देखो, निष्कपट पर ध्यान दो। शान्तिप्रिय मनुष्य को सन्तति होती है;

38) किन्तु विद्रोहियों का सर्वथा विनाश होता है, दुष्टों की सन्तति उखाड़ दी जाती है।

39) प्रभु धर्मियों का उद्धार करता और संकट के समय उनकी रक्षा करता है।

40) प्रभु उनकी सहायता करता और उन्हें मुक्त करता है। वह उन्हें दुष्टों से छुड़ाता और उनका उद्धार करता है; क्योंकि वे उसकी शरण आये हैं।



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