📖 - उपदेशक ग्रन्थ

अध्याय ➤ 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- 08- 09- 10- 11- 12- मुख्य पृष्ठ

अध्याय 03

1) पृथ्वी पर हर बात का अपना वक्त और हर काम का अपना समय होता है:

2) प्रसव करने का समय और मरने का समय; रोपने का समय और पौधा उखाड़ने का समय;

3) मारने का समय और स्वस्थ करने का समय; गिराने का समय और उठाने का समय;

4) रोने का समय और हँसने का समय; विलाप करने का समय और नाचने का समय;

5) पत्थर बिखेरने का समय और पत्थर एकत्र करने का समय; आलिंगन करने का समय और आलिंगन नहीं करने का समय;

6) खोजने का समय और खोने का समय; अपने पास रखने का समय और फेंक देने का समय;

7 फाड़ने का समय और सीने का समय; चुप रहने का समय और बोलने का समय;

8) प्यार करने का समय और बैर करने का समय; युद्ध का समय और शान्ति का समय।

9) मनुष्य को अपने सारे परिश्रम से क्या लाभ ?

10) ईश्वर ने मनुष्यों को जो कार्य सौंपा है, मैंने उस पर विचार किया।

11) उसने सब कुछ उपयुक्त समय के अनुसार सुन्दर बनाया है। उसने मनुष्य को भूत और भविष्य का विवेक दिया है; किन्तु ईश्वर ने प्रारम्भ से अन्त तक जो कुछ किया, उसे मनुष्य कभी नहीं समझ सका।

12) मैं जानता हूँ कि मनुष्य के लिए सब से अच्छा यह है कि वह जीवन भर सुखी रहे और आनन्द मनाये।

13) यदि वह खा-पी सके और परिश्रम करते हुए सुख-शान्ति में जीवन बिताये, तो यह ईश्वर का वरदान है।

14) मैं जानता हूँ कि ईश्वर जो करता है, वह सदा बना रहेगा: उस में न कुछ जोड़ा और न कुछ उस से घटाया जा सकता है। ईश्वर यह इसलिए करता है कि मनुष्य उस पर श्रद्धा रखे।

15) जो है, वह पहले हो चुका है; जो होगा, वह भी पहले हो चुका है। जो बीत चुका है, ईश्वर उसे बराबर दोहराता है।

16) मैंने पृथ्वी पर यह भी देखा है: न्यायालय में अन्याय होता है और न्यायासन पर दोषी बैठता है।

17) मैंने अपने मन में यह कहा, "ईश्वर धर्मी और दुष्ट, दोनों का न्याय करेगा; क्योंकि हर बात और प्रत्येक कार्य का अपना समय होता है"।

18) मैंने मनुष्यों के विषय में अपने मन में यह सोचा है कि ईश्वर उनकी परीक्षा लेता है, जिससे वे समझें कि वे पशुओे-जैसे हैं;

19) मनुष्य की गति पशुओं की गति-जैसी है; दोनों की अन्तगति एक-जैसी है: जिस तरह पशु मरता है, उसी तरह मनुष्य भी मरता है। दोनों में एक ही प्रकार के प्राण हैं और मनुष्य पशु से बढ़कर नहीं है। सच व्यर्थ है।

20) सभी एक ही स्थान जाते हैं: सब मिट्टी से बनें हैं और मिट्टी में मिल जायेंगे।

21) कौन जानता है, कि मनुष्य के प्राण ऊपर उठते और पशु के प्राण पृथ्वी में उतरते हैं?

22) इसलिए मैंने समझा कि मनुष्य के लिए सब से अच्छा यह है कि वह अपने परिश्रम के फल से लाभ उठायें; क्योंकि यही उसका भाग्य है। कोई भी मनुष्य को यह नहीं दिखा सकता कि उसके बाद क्या होने वाला है।



Copyright © www.jayesu.com