📖 - उपदेशक ग्रन्थ

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अध्याय 06

1) मैंने पृथ्वी पर एक और बुराई देखी है, जिसके भार से मनुष्य दब जाता है।

2) ईश्वर किसी मनुष्य को इतनी धन-सम्पत्ति और सम्मान देता है कि उसके हृदय के सब मनोरथ पूरे हो जाते हैं, किन्तु ईश्वर उसे उसका उपभोग करने नहीं देता और पराया व्यक्ति उसका उपभोग करता है। यह भी व्यर्थ और दुःख देने वाली बुराई है।

3) यदि किसी मनुष्य के सौ सन्तानें हों और वह बहुत वर्ष जीवित रहे किन्तु वह अपने वैभव का उपभोग नहीं कर सके और उचित रीति से दफनाया नहीं जाये, तो वह बच्चा उस से अच्छा है, जो मृत पैदा हुआ है।

4) ऐसा बच्चा व्यर्थ ही आता और अनाम ही अन्धकार में चला जाता है।

5) उसने कभी सूर्य को नहीं देखा, वह कुछ नहीं जानता और इसलिए उसे उस मनुष्य की अपेक्षा अधिक शान्ति मिलती है।

6) यदि वह मनुष्य दो हजार वर्ष जीवित रहता, तो उसे सुख-शान्ति नहीं मिलती। क्या सभी एक ही स्थान नहीं जाते?

7) मनुष्य भोजन के लिए सारा परिश्रम करता, किन्तु उसकी भूख कभी शान्त नहीं होती।

8) बुद्धिमान् किस बात में मूर्ख से श्रेष्ठ है? दरिद्र को व्यवहारकुशल होने से क्या लाभ होता है?

9) लालच से किसी वस्तु की खोज में भटकने से उसका उपभोग करना अच्छा है, जो आँखों के सामने है। यह भी व्यर्थ और हवा पकड़ने के बराबर है।

10) जो हो चुका है, उसका नाम रखा जा चुका है और मनुष्य क्या है, इसका भी पता चल गया है। कोई मनुष्य उससे नहीं लड़ सकता, जो उस से बलवान् है।

11) जितने अधिक शब्द, उतना अधिक बकवाद। उससे किस को लाभ होता है?

12) कोई नहीं जानता कि मनुष्य के लिए उसके व्यर्थ और अल्पकालीन जीवन में अच्छा क्या है; वह छाया की तरह बीत जाता है। कोई भी उसे यह नहीं बता सकता कि उसके बाद पृथ्वी पर क्या होगा।



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