📖 - उपदेशक ग्रन्थ

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अध्याय 09

1) इन सब बातों पर विचार करने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि धर्मी एवं ज्ञानी और उनका सारा कार्यकलाप प्रभु के हाथ में है। कोई मनुष्य यह नहीं जानता कि उसके भाग्य में प्रेम बदा है या बैर।

2) धर्मी और अधर्मी, भला और बुरा, शुद्ध और अशुद्ध, बलिदान चढ़ाने वाला सब की गति एक-जैसी है। भले मनुष्य की गति पापी की जैसी है; शपथ खाने वाले की गति उस व्यक्ति की जैसी है, जो शपथ खाने से डरता है।

3) पृथ्वी पर के सारे कार्यकलाप में यही बुराई है: सब की गति एक-जैसी है। मनुष्यों का हृदय दुष्टता से भरा है। जब तक वे जीवित रहते हैं, उनके हृदय में पागलपन है और उसके बाद वे मृतकों के पास जाते हैं।

4) जब तक जीवन, तब तक आशा है; मुरदा सिंह से जिन्दा कुत्ता अच्छा है।

5) जो जीवित हैं, वे जानते हैं कि उन्हें मरना होगा, किन्तु मृतक कुछ नहीं जानते। उन्हें और कोई प्रतिफल नहीं मिलेगा। उनका नाम तक भुला दिया गया है।

6) उनका प्यार, उनका बैर और उनकी ईर्ष्या-यह सब मिट गया है। पृथ्वी पर के सारे कार्यकलाप में उनका अब कोई भाग नहीं रहा।

7) जाओ, आनन्द के साथ अपनी रोटी खाओ और प्रसन्न हो कर अपनी अंगूरी पियों, क्योंकि ईश्वर उसके लिए अपनी स्वीकृति दे चुका है।

8) तुम हमेशा उज्जवल कपड़े पहनों और अपने सिर पर तेल लगाओे।

9) ईश्वर ने तुम्हे पृथ्वी पर जो व्यर्थ जीवन दिया है, उस में अपनी प्रिय पत्नी के साथ जीवन का आनन्द भोगते रहो-यह जीवन में और पृथ्वी पर तुम्हारे परिश्रम में तुम्हारा भाग्य है।

10) तुम्हारे हाथ जो भी काम करें, उसे पूरी लगन के साथ करो; क्योंकि अधोलोक में, जहाँ तुम जाने वाले हो, वहाँ न तो काम है, न विचार, न ज्ञान और न प्रज्ञा।

11) मैंने पृथ्वी पर और एक बात देखी है। न तो दौड़ में सब से दु्रतगामी जीतता और न युद्ध में सब से शक्तिशाली विजयी होता है। न तो सब से बुद्धिमान् को भोजन मिलता, न सब से समझदार को धन-सम्पत्ति और न सब से ज्ञानी को कृपादृष्टि। सब कुछ समय और संयोग पर निर्भर है।

12) इसके अतिरिक्त कोई नहीं जानता कि उसकी घड़ी कब आयेगी। जिस तरह मछलियाँ क्रूर जाल में और पक्षी फन्दे मे फँसते है, उसी तरह मनुष्य विपत्ति के शिकार बनते हैं, जो अचानक उन पर आ पड़ती है।

13) मैंने पृथ्वी पर प्रज्ञा का एक उदाहरण भी देखा, जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया।

14) एक छोटा-सा नगर था; उसमें बहुत कम लोग रहते थे। एक शक्तिशाली राजा ने आकर उसके चारों ओर बड़ी मोर्चाबन्दी कर दी।

15) वहाँ के एक दरिद्र और बुद्धिमान् व्यक्ति ने अपनी प्रज्ञा से नगर की रक्षा की, किन्तु बाद में किसी ने भी उस दरिद्र को याद नहीं किया।

16) इसलिए मैंने कहा, "प्रज्ञा शक्ति से श्रेष्ठ है", किन्तु दरिद्र की प्रज्ञा का तिरस्कार किया जाता और उसकी बातों पर कोई भी ध्यान नहीं देता।

17) मूर्खों के बीच राजा की चिल्लाहट की अपेक्षा बुद्धिमान् की शान्तिपूर्ण बातों पर अधिक ध्यान दिया जाता है।

18) युद्ध-यन्त्रों की अपेक्षा प्रज्ञा श्रेष्ठ है, किन्तु एक ही गलती बहुत अच्छा काम बिगाड़ दे सकती है।



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