📖 - सुलेमान का सर्वश्रेष्ठ गीत (Song of Songs)

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अध्याय 03

1) मैं सारी रात अपने पलंग पर अपने प्राणप्रिय को ढूँढ़ती हूँ। मैं उसे ढूँढ़ती हूँ, किन्तु नहीं पाती।

2) मैं उठ कर गलियों तथा चैकों से होते नगर का चक्कर लगाती हूँ। मैं अपने प्राणप्रिय को ढूँढ़ती हूँ मैं उसे ढूँढ़ती हूँ, किन्तु नहीं पाती।

3) नगर का फेरा लगाते हुए पहरेदार मुझे मिलते हैं: "क्या आप लोगों ने मेरे प्राणप्रिय को देखा?"

4) मैं उनसे आगे बढ़ती ही हूँ कि मैं अपने प्राणप्रिय को पा लेती हूँ। मैं उसे रोक लेती हूँ और तब तक नहीं जाने दूँगी, जब तक उसे अपनी माँ के घर नहीं ले जाऊँगी, उसके कमरे में, जिसने मुझे जन्म दिया।

5) येरूसालेम की पुत्रियों! मैं मैदान में चिकारों और हरिणियों के नाम पर तुम से विनती करता हूँ: मेरी प्रियतमा को मत जगाओ, जब तक वह चाहे, तब तक उसे सोने दो।

6) मरुभूमि की ओर से वह कौन आ रहा है, जो धुएँ के खम्भे के सदृश है, जो देश-देश के चूर्णों से बने गन्धरस और लोबान से महक रहा है?

7) देखो, यह सुलेमान की पालकी है, उसके साथ इस्राएल के सात वीर पुरुष चल रहे हैं।

8) सब-के-सब तलवार धारण किये हुए हैं, सब-के-सब युद्धकुशल हैं। प्रत्येक की बगल में रात के संकटो का सामना करने के लिए अपनी-अपनी तलवार है।

9) राजा सुलेमान ने यह पालकी अपने लिए बनवायी, उसने इसे लेबानोन की लकड़ी से बनवाया।

10) उसने इसके खम्भे बनवाये। उसने इसका आधार चाँदी का और इसका आसन सोने का बनवाया। येरूसालेम की पुलियों ने इसका अन्तर्भाग बैंगनी वस्त्र से सुसज्जित किया।

11) सियोन की पुत्रियो! घर से बाहर आओ और मुकुट धारण किये राजा सुलेमान को देखो, वह मुकुट, जिसे उसके विवाह के दिन, उसके हृदय के उल्लास के दिन उसकी माता उसे पहनाती है।



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