📖 - प्रवक्ता-ग्रन्थ (Ecclesiasticus)

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अध्याय 12

1) अपने परोपकार का पात्र अच्छी तरह चुनो और तुम को अपने परोपकार का धन्यवाद दिया जायेगा।

2) यदि तुम भक्त मनुष्य का उपकार करोगे, तो तुम को उस से या सर्वोच्च प्रभु से पुरस्कार मिलेगा।

3) जो बुराई करता रहता और भिक्षादान करना नहीं चाहता, उसका कल्याण नहीं होगा; क्येांकि सर्वोच्च ईश्वर को उस से घृणा होती है और वह पश्चात्तापियों पर दया करता है।

4) दयालु मनुष्य को दान दो और पापी की सहायता कभी नहीं करो।

5) भले मनुष्य को दे दो और पापी को अपने यहाँ मत ठहराओे।

6) दीन का उपकार करो और विधर्मी को कुछ नहीं दो। उसे हथियार मत दो; कहीं ऐसा न हो कि उनके बल पर वह तुम पर हावी हो जाये;

7) क्योंकि तुम उसका जो उपकार करोगे, उस से दुगुनी बुराई तुम को भोगनी पड़ेगी। सर्वोच्च प्रभु को पापियों से घृणा है और वह दुष्टों को उचित दण्ड देता है।

8) सुख के दिनों में मित्र की पहचान नहीं होती और दुःख के दिनों में शत्रु छिपा नहीं रहता।

9) सुख के दिनों में मनुष्य के शत्रु भी उसके मित्र बनते हैं और दुःख के दिनों में उसके मित्र अलग हो जाते हैं।

10) अपने शत्रु पर कभी विश्वास मत करो; उसकी दुष्टता धातु पर जंग की तरह प्रकट होती है।

11) यदि वह नम्र बन कर तुम्हारे सामने झुक जाये, तो सतर्क हो कर उस से सावधान रहो और उस मनुष्य के समान बनो, जिसने दर्पण साफ किया, किन्तु जो जानता है, कि उस पर फिर जंग जम जायेगा।

12) उसे अपने पास खड़ा न होने दो। कहीं ऐसा न हो कि वह तुम को गिरा दे और तुम्हारा स्थान ले ले। उसे अपने दाहिने न बैठने दो। कहीं ऐसा न हो कि वह तुम्हारे आसन पर बैठ जाये और तुम अन्त में समझो कि मैंने ठीक ही कहा और तुम को मेरी चेतावनी याद कर दुःख हो।

13) यदि साँप सँपेरे को काटे, तो उस से कौन सहानुभूति रखेगा, या उन लोगो से, जो हिंसक जानवरों के निकट जाते हैं? यही दशा उसी की है, जो पापी की संगति करता और उसके पापों में फँस जाता है।

14) पापी थोड़े समय तक तुम्हारा साथ देगा, किन्तु यदि तुम्हारी स्थिति डाँवाडोल होगी, तो वह नहीं टिकेगा।

15) शत्रु के होंठो से मधु टपकता है, किन्तु उसके हृदय में तुम को गड्ढे में गिराने का भाव है।

16) भले ही उसकी आँखों से आँसू निकलते हों, अवसर मिलने पर वह रक्त बहाने में भी नहीं हिचकेगा।

17) यदि तुम पर विपत्ति आ पड़ी, तो उसे अपने पास पाओगे;

18) वह सहायता देने के बहाने तुम को लंगी मारेगा।

19) वह सिर हिलायेगा, ताली बजायेगा और सीटी बजाते हुए अपना असली रूप प्रकट करेगा।



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