📖 - इसायाह का ग्रन्थ (Isaiah)

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अध्याय 10

1) धिक्कार उन लोगों को, जो अन्यायपूर्ण क़ानून पारित करते और अत्याचार को विधि सम्मत बनाते हैं!

2) वे दरिद्रों के अधिकार छीनते और पददलित जनता को न्याय से वंचित करते हैं। वे विधवाओं को अपना शिकार बनाते और अनाथों को लूटते हैं।

3) तुम दण्ड के दिन क्या करोगे? जब विपत्ति दूर से आ पड़ेगी? तुम सहायता के लिए किसके पास दौड़ोगे? तुम अपनी सम्पत्ति कहाँ रखोगे?

4) तुम बन्दी बन कर गरदन झुकाओगे या युद्ध में खेत रहोगे। फिर भी उसका क्रोध शान्त नहीं होता, उसका हाथ उठा रहता है।

5) धिक्कार अस्सूर को! वह मेरे क्रोध की छड़ी है, मेरे कोप का डण्ड़ा है।

6) मैं उसे एक विधर्मी देश के विरुद्ध भेजता हूँ। जिस राष्ट्र पर मेरा क्रोध भड़क उठा था, मैं उसे लूटने और उजाड़ने, उसे कूड़े की तरह रौंदने के लिए अस्सूर को भेजता हूँ।

7) किन्तु वह ऐसा नहीं समझता और मनमानी करता है। वह सर्वनाश करना चाहता और असंख्य राष्ट्रों को मिटा देना चाहता है।

8) वह कहता है, “क्या मेरे सब सेनापति राजा नहीं?

9) क्या कलनो के साथ वही नहीं हुआ, जो करकमीश को हुआ था? क्या हमात के साथ वही नहीं, जो अर्पाद के साथ और समारिया के साथ वही नहीं हुआ, जो दमिश्क के साथ?

10) मैंने ऐसे राज्यों को अपने अधिकार में किया, जहाँ येरूसालेम और समारिया की अपेक्षा अधिक देवमूर्तियाँ थीं।

11) तो मैंने समारिया और उसकी देवमूर्तियों के साथ जो किया, क्या मैं वही येरूसालेम और उसकी मूर्तियों के साथ नहीं करूँगा?"

12) जब प्रभु ने सियोन के पर्वत पर और येरूसालेम में अपना समस्त कार्य पूरा किया होगा, तो वह यह कहेगा, “मैं अस्सूर के राजा को उसके अहंकारपूर्ण हृदय और घमण्ड से चढ़ी हुई आँखों के कारण दण्ड दूँगा;

13) क्योंकि उसने कहा, ’मैंने अपनी शक्ति, अपनी बुद्धि और अपनी चतुरता से ऐसा किया है। मैंने राष्ट्रों के सीमान्त मिटाये, उनकी सम्पत्ति लूटी और राजाओं को बलपूर्वक उनके सिंहासनों से गिरा दिया।

14) जिस तरह लोग परित्यक्त नीड़ से अण्डे निकालते हैं, उसी तरह मैंने राष्ट्रों की सम्पत्ति हथिया ली हैं। मैंने सारी पृथ्वी को अपने अधिकार में किया। किसी ने पंख तक नहीं फड़फड़ाया या चोंच खोलकर चीं-चीं तक नहीं की’।“

15) क्या कुल्हाड़ी अपने चलाने वाले के सामने डींग मारती है? क्या आरा अपने को अराकश से बड़ा मानता है? क्या डण्डा अपने चलाने वाले को चला सकता है या लाठी उसे उठा सकती है, जो लकड़ी नहीं है?

16) इसलिए विश्वमण्डल का प्रभु-ईश्वर अस्सूर के हृष्ट-पुष्ट लोगों में रोग भेजेगा और ज्वर, प्रज्वलित अग्नि की तरह, उनका शरीर गलायेगा।

17) इस्राएल का प्रकाश आग और परमपावन प्रभु ज्वाला बनेगा। वह एक ही दिन में उसका कँटीला झाड़-झंखाड़ जला कर भस्म कर देगा।

18) जिस तरह रोगी का शरीर छीजता है, उसी तरह उसके वनों और उपजाऊ भूमि की शोभा पूर्ण रूप से नष्ट हो जायेगी।

19) उसके वनों के इतने कम पेड़ शेष रहेंगे कि बालक भी उनकी संख्या लिख सकेगा।

20) उन दिन इस्राएल और याकूब के बचे हुए लोग उस पर निर्भर नहीं रहेंगे, जो उन को मारता है, बल्कि वे सारे हृदय से प्रभु, इस्राएल के परमपावन ईश्वर की शरण आयेंगे।

21) बचे हुए लोग, याकूब के बचे हुए लोग शक्तिमान् ईश्वर के पास लौटेंगे।

22) इस्राएल! तुम्हारी प्रजा भले ही समुद्रतट के रेतकणों की तरह असंख्य हो, किन्तु मुट्टी भर लोग ही लौटेंगे। विनाश का निर्णय हो गया है, किन्तु वह न्यायसंगत है।

23) विनाश का जो निर्णय हुआ है, उसे सर्वशक्तिमान् प्रभु-ईश्वर समस्त देश में पूरा करेगा।

24) इसलिए सर्वशक्तिमान् प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः “सियोन में निवास करने वाली मेरी प्रजा! अस्सूर से मत डरो, जो तुम को लाठी से मारता है और मिस्र की तरह तुम पर डण्डा उठाता है।

25) बहुत थोड़े समय के बाद तुम पर मेरा क्रोध समाप्त हो जायेगा और तब मेरा क्रोध अस्सूर का विनाश करेगा।“

26) सर्वशक्तिमान् प्रभु उसे कोड़े लगायेगा, जिस तरह उसने ओरेब की चट्टान के पास मिदयान मारा था और वह समुद्र पर अपना डण्डा उठायेगा, जैसा कि उसने मिस्र में किया था।

27) उस दिन अस्सूर का बोझ तुम्हारे कन्धे से उतरेगा और तुम्हारी गरदन जूए से मुक्त होगी।

28) वह अय्यात पहुँचता है, मिग्रोन पर करता और मिकमाश में रसद रखवाता है।

29) वह घाटी पार कर गेबा में रात बिताता है। रामा नगर थरथर काँपता और साऊल का गिबआ भाग जाता है।

30) बत-गल्लीम! दुहाई दो। लयशा! सुनो।

31) अनातोत पर शोक! मदमेना प्राण बचा कर भागता है। गेबीमवासी भाग रहे हैं।

32) आज ही वह नोब पहुँच कर सियोन की पुत्री के पर्वत को, येरूसालेम की पहाड़ी को, घूँसा दिखा कर धमकी देगा।

33) देखो! सर्वशक्तिमान् प्रभु-ईश्वर प्रचण्ड प्रहार से डालियाँ छाँटता और विशाल वृक्ष काटता है। जो सब से ऊँचे हैं, वे गिरा दिये जाते हैं।

34) धना जंगल कुल्हाड़ी से कट रहा है और लेबानोन के विशाल वृक्ष धराशायी हो रहे हैं।



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