📖 - इसायाह का ग्रन्थ (Isaiah)

अध्याय ==>> 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- 08- 09- 10- 11- 12- 13- 14- 15- 16- 17- 18- 19- 20- 21- 22- 23- 24- 25- 26- 27- 28- 29- 30- 31- 32- 33- 34- 35- 36- 37- 38- 39- 40- 41- 42- 43- 44- 45- 46- 47- 48- 49- 50- 51- 52- 53- 54- 55- 56- 57- 58- 59- 60- 61- 62- 63- 64- 65- 66- मुख्य पृष्ठ

अध्याय 58

1) प्रभु-ईश्वर यह कहता है, “पूरी शक्ति से पुकारो, तुरही की तरह अपनी आवाज़ ऊँची करो- मेरी प्रजा को उसके अपराध और याकूब के वंश को उसके पाप सुनाओ।

2) वे मुझे प्रतिदिन ढूँढ़ते हैं और मेरे मार्ग जानना चाहते हैं। एक ऐसे राष्ट्र की तरह, जिसने धर्म का पालन किया हो और अपने ईश्वर की संहिता नहीं भुलायी हो, वे मुझ से सही निर्णय की आशा करते और ईश्वर का सान्निध्य चाहते हैं।

3 (वे कहते हैं) , ’हम उपवास क्यों करते हैं, जब तू देखता भी नहीं? हम तपस्या क्यों करते हैं, जब तू ध्यान भी नहीं देता। देखो, उपवास के दिनों में तुम अपना कारबार करते और अपने सब मजदूरों से कठोर परिश्रम लेते हो।

4) तुम उपवास के दिनों लड़ाई-झगड़ा करते और करारे मुक्के मारते हो। तुम आजकल जो उपवास करते हो, उस से स्वर्ग में तुम्हारी सुनवाई नहीं होगी।

5) क्या मैं इस प्रकार का उपवास, ऐसी तपस्या का दिन चाहता हूँ, जिस में मनुष्य सरकण्डे की तरह अपना सिर झुकाये और टाट तथा राख पर लेट जाये? क्या तुम इसे उपवास और ईश्वर का सुग्राह्î दिवस कहते हो?

6) मैं जो उपवास चाहता हूँ, वह इस प्रकार है- अन्याय की बेड़ियों को तोड़ना, जूए के बन्धन खोलना, पददलितों को मुक्त करना और हर प्रकार की गुलामी समाप्त करना।

7) अपनी रोटी भूखों के साथ खाना, बेघर दरिद्रों को अपने यहाँ ठहराना। जो नंगा है, उसे कपड़े पहनाना और अपने भाई से मुँह नहीं मोड़ना।

8) तब तुम्हारी ज्योति उषा की तरह फूट निकलेगी और तुम्हारा घाव शीघ्र ही भर जायेगा। तुम्हारी धार्मिकता तुम्हारे आगे-आगे चलेगी और ईश्वर की महिमा तुम्हारे पीछे-पीछे आती रहेगी।

9) यदि तुम पुकारोगे, तो ईश्वर उत्तर देगा। यदि तुम दुहाई दोगे, तो वह कहेगा-‘देखो, मैं प्रस्तुत हूँ‘। यदि तुम अपने बीच से अत्याचार दूर करोगे, किसी पर अभियोग नहीं लगाओगे और किसी की निन्दा नहीं करोगे;

10) यदि तुम भूखों को अपनी रोटी खिलाओगे और पद्दलितों को तृप्त करोगे, तो अन्घकार में तुम्हारी ज्योति का उदय होगा और तुम्हारा अन्धकार दिन का प्रकाश बन जायेगा।

11) प्रभु निरन्तर तुम्हारा पथप्रदर्शन करेगा। वह मरुभूमि में भी तुम्हें तृप्त करेगा और तुम्हें शक्ति प्रदान करता रहेगा। तुम सींचे हुए उद्यान के सदृश बनोगे, जलस्रोत के सदृश, जिसकी धारा कभी नहीं सूखती।

12) तब तुम पुराने खँडहरों का उद्धार करोगे और पूर्वजों की नींव पर अपना नगर बसाओगे। तुम चारदीवारी की दरारें पाटने वाले और टूटे-फूटे घरों के पुनर्निर्माता कहलाओगे।

13) “यदि तुम विश्राम-दिवस का नियम भंग करना छोड़ दोगे और उस पावन दिवस को कारबार नहीं करोगे; यदि तुम उसे आनन्द का दिन, प्रभु को अर्पित तथा प्रिय दिवस समझोगे; यदि उसके आदर में यात्रा पर नहीं जाओगे, अपना कारबार नहीं करोगे और निरर्थक बातें नहीं करोगे,

14) तो तुम्हें प्रभु का आनन्द प्राप्त होगा। मैं तुम लोगों को देश के पर्वत प्रदान करूँगा और तुम्हारे पिता याकूब की विरासत में तृप्त करूँगा।“ यह प्रभु का कथन है।



Copyright © www.jayesu.com