📖 - इसायाह का ग्रन्थ (Isaiah)

अध्याय ==>> 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- 08- 09- 10- 11- 12- 13- 14- 15- 16- 17- 18- 19- 20- 21- 22- 23- 24- 25- 26- 27- 28- 29- 30- 31- 32- 33- 34- 35- 36- 37- 38- 39- 40- 41- 42- 43- 44- 45- 46- 47- 48- 49- 50- 51- 52- 53- 54- 55- 56- 57- 58- 59- 60- 61- 62- 63- 64- 65- 66- मुख्य पृष्ठ

अध्याय 62

1) मैं सियोन के विषय में तब तक चुप नहीं रहूँगा, मैं येरूसालेम के विषय में तब तक विश्राम नहीं करूँगा, जब तक उसकी धार्मिकता उषा की तरह नहीं चमकेगी, जब तक उसका उद्धार धधकती मशाल की तरह प्रकट नहीं होगा।

2) तब राष्ट्र तेरी धार्मिकता देखेंगे और समस्त राजा तेरी महिमा। तेरा एक नया नाम रखा जायेगा, जो प्रभु के मुख से उच्चरित होगा।

3) तू प्रभु के हाथ में एक गौरवपूर्ण मुकुट बनेगी, अपने ईश्वर के हाथ में एक राजकीय किरीट।

4) तू न तो फिर ’परित्यक्ता’ कहलायेगी और न तेरा देश ’उजाड़’; बल्कि तू ’परमप्रिय’ कहलायेगी और तेरे देश का नाम होगाः ’सुहागिन’; क्योंकि प्रभु तुझ पर प्रसन्न होगा और तेरे देश को एक स्वामी मिलेगा।

5) जिस तरह नवयुवक कन्या से ब्याह करता है, उसी तरह तेरा निर्माता तेरा पाणिग्रहण करेगा। जिस तरह वर अपनी वधू पर रीझता है, उसी तरह तेरा ईश्वर तुझ पर प्रसन्न होगा।

6) येरूसालेम! मैंने तेरी चारदीवारी पर पहरेदारों को बैठा दिया। वे न दिन में चुप रहेंगे और न रात में। “प्रभु को सब का स्मरण दिलाना तुम्हारा कर्तव्य है। तुम लोगों को कभी विश्राम नहीं मिलेगा।

7) तुम प्रभु को भी विश्राम न करने दो, जब तक वह येरूसालेम का पुनर्निर्माण न करे और संसार में उसका यश न फैलाये।“

8) प्रभु ने अपना दाहिना हाथ और शक्तिशाली भुजा उठा कर यह शपथ खायीः “मैं फिर कभी तेरा अन्न तेरे शत्रुओं को खाने नहीं दूँगा। परदेशी तेरी अंगूरी, तेरे परिश्रम का फल, फिर कभी नहीं पियेंगे।

9) बल्कि जिन लोगों ने गेहूँ काटा, वे उसे खायेंगे और प्रभु की स्तुति करेंगे। जिन्होंने अंगूर की फ़सल एकत्र की, वे मेरे मन्दिर के प्रांगण में उसे पियेंगे।“

10) नगर के फाटक के बाहर निकलो, प्रजा का मार्ग तैयार करो। राजमार्ग का पुननिर्माण करो, पक्की सड़क बनाओ और झण्डा फहरा कर राष्ट्रों को सूचना दो।

11) यह है समस्त पृथ्वी के लिए ईश्वर का सन्देश। “सियोन की पुत्री से यह कहोः ’देख! तेरे मुक्तिदाता आ रहे हैं वह अपना पुरस्कार अपने साथ ला रहे हैं और उनका विजयोपहार भी उनके साथ है’।“

12) वे ’पवित्र प्रजा’ और ’प्रभु के मुक्ति-प्राप्त लोग कहलायेंगे और तेरा नाम ’परमप्रिय’ तथा ’अपरित्यक्त नगरी’ रखा जायेगा।



Copyright © www.jayesu.com