📖 - यिरमियाह का ग्रन्थ (Jeremiah)

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अध्याय 07

1) प्रभु की वाणी यिरमियाह को यह कहते हुए सुनाई दीः

2) “प्रभु के मन्दिर के फाटक पर खड़ा हो कर यह घोषित करो- यूदा के लोगो! तुम, जो प्रभु की आराधना करने के लिए इस फाटक से प्रवेश कर रहे हो, प्रभु की वाणी सुनो।

3) विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है: अपना सारा आचरण सुधारो और मैं तुम लोगों को यहाँ रहने दूँगा।

4) तुम कहते रहते हो- ’यह प्रभु का मन्दिर है! प्रभु का मन्दिर है! प्रभु का मन्दिर है!’ इस निरर्थक नारे पर भरोसा मत रखो।

5) यदि तुम अपना सारा आचरण सुधारोगे, एक दूसरे को धोखा नहीं दोगे,

6) परदेशी, अनाथ और विधवा पर अत्याचार नहीं करोगे, यहाँ निर्दोष का रक्त नहीं बहाओगे और अपने सर्वनाश के लिए पराये देवताओं के अनुयायी नहीं बनोगे,

7) तो मैं तुम्हें यहाँ इस देश में रहने दूँगा, जिसे मैंने सदा के लिए तुम्हारे पूर्वजों को प्रदान किया है।

8) “किन्तु तुम लोग निरर्थक नारों पर भरोसा रखते हो।

9) तुम चोरी, हत्या और व्यभिचार करते हो। तुम झूठी शपथ खाते हो। तुम बाल को होम चढ़ाते हो और ऐसे पराये देवताओं के अनुयायी बनते हो, जिन्हें तुम पहले नहीं जानते थे।

10) इसके बाद तुम यहाँ, इस मन्दिर में, जो मेरे नाम से प्रसिद्ध है, मेरे सामने उपस्थित होने और यह कहने का साहस करते हो- ’हम सुरक्षित हैं’। फिर भी तुम अधर्म करते जाते हो।

11) क्या तुम लोग इस मन्दिर को, जो मेरे नाम से प्रसिद्ध है लुटेरों का अड्डा समझते हो? यहाँ जो हो रहा है, मैं वह सब देखता रहता हूँ। यह प्रभु की वाणी है।

12) “अब शिलो नामक स्थान जाओ, जहाँ मैंने पहले अपने नाम की प्रतिष्ठा की और देखो कि मैंने अपनी प्रजा इस्राएल के कुकर्मों के कारण उसके साथ कौन-सा व्यवहार किया।

13) प्रभु कहता है- जब तुम यह सब कर रहे थे, तो मैंने तुम को बारम्बार समझाया, किन्तु तुमने नहीं सुना। मैंने तुमको बुलाया और तुमने उत्तर नहीं दिया।

14) इसलिए मैंने शिलो के साथ जो किया, वही मैं उस मन्दिर के साथ करूँगा, जो मेरे नाम से प्रसिद्ध है और जिस पर तुम भरोसा रखते हो- उस स्थान के साथ, जिसे मैंने तुम को और तुम्हारे पूर्वजों को दिया।

15) मैं तुम लोगों को वैसे ही अपने सामने से निकाल दूँगा, जैसे मैंने तुम्हारे भाइयों, एफ्रईम के लोगों को निकाला।

16) “तुम अब इस प्रजा के लिए प्रार्थना मत करो। इसके लिए न तो क्षमा-याचना करो और न अनुनय-विनय। मुझ से अनुरोध मत करो, मैं नहीं सुनूँगा।

17) क्या तुम नहीं देखते कि लोग यूदा के नगरों और येरूसालेम की गलियों में क्या कर रहे हैं?

18) बच्चे लकड़ियाँ बटोरते, पिता आग सुलगाते और स्त्रियाँ आटा गूँधती हैं, जिससे ये आकाश की देवी के लिए पूरियाँ पकायें। ये अन्य देवताओं को अर्घ चढ़ाते हैं और इस तरह मेरा क्रोध भड़काते हैं।

19) “किन्तु क्या ये मेरा या अपना ही अपमान नहीं करते है? क्या ये अपने को कलंकित नहीं करते? यह प्रभु की वाणी है।

20) इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता है- इस स्थान पर, मनुष्यों और पशुओं पर, मैदान के वृक्षों और पृथ्वी के फलों पर मेरा प्रज्वलित क्रोध न बुझने वाली आग की तरह भड़क उठेगा।

21) “सर्वशक्तिमान् प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है- अपनी होम-बलियाँ और अन्य बलियाँ चढ़ाते रहो और उनका माँस स्वयं खाओ।

22) जब मैं तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से निकाल लाया और उन से बोला, तो मैंने उन्हें होम-बलियों और अन्य बलियों के विषय में कोई आदेश नहीं दिया।

23) मैंने उन्हें केवल यह आदेश दियाः यदि तुम मेरी बात पर ध्यान दोगे, तो मैं तुम्हारा ईश्वर होऊँगा और तुम मेरी प्रजा होगे। यदि तुम मेरे बताये हुए मार्गों पर चलोगे, तो तुम्हारा कल्याण होगा।

24) किन्तु उन्होंने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया और मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं किया। वे अकड़ कर बुराई करते रहे और मेरे पास आने की अपेक्षा मुझ से दूर चले गये।

25) जिस दिन उनके पूर्वज मिस्र देश से निकले, उस दिन से आज तक मैं अपने सब सेवकों, अर्थात् नबियों को उनके पास भेजता रहा।

26) किन्तु उन्होंने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया और मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं किया। वे अकड़ कर बुराई करते रहे और अपने पूर्वजों से अधिक दुष्ट निकले।

27) “तुम उन्हें यह सब बता दोगे, किन्तु वे तुम्हारी नहीं सुनेंगे। तुम उन्हें पुकारोगे, किन्तु वे उत्तर नहीं देंगे।

28) तुम उन से यह कहोः यह वह प्रजा है जो अपने प्रभु-ईश्वर की बात नहीं सुनती और शिक्षा ग्रहण करने से इन्कार करती है। सच्चाई नहीं रही; वह उनके मुख से चली गयी है।

29) अपने सिर के केश मुड़ा कर फेंक दो, पहाड़ी शिखरों पर विलाप करो; क्योंकि प्रभु का क्रोध इस पीढ़ी पर भड़क उठा है, उसने इसे अस्वीकार कर त्याग दिया है।

30) यूदा की प्रजा ने वही किया, जो मेरी दृष्टि में बुरा है। उसने उस मन्दिर में, जो मेरे नाम से प्रसिद्ध है, घृणित देवमूर्तियों रख कर उसे अपवित्र किया है।

31) वे आग में अपने पुत्र-पुत्रियों की आहुति देने के लिए बेन-हिन्नोम की घाटी में तोफ़ेत का पूजास्थान बनाते हैं। मैंने न तो इसका आदेश दिया और न मेरे मन में ऐसी बात आयी थी।

32) इसलिए प्रभु यह कहता हैः वे दिन आ रहे हैं, जब लोग ’तोफेत’ या ’बेन-हिन्नोम की घाटी’ कह कर नहीं पुकारेंगे, बल्कि उन्हें वध की घाटी कहेंगे और तोफ़ेत एक बड़ा कब्रिस्तान बनेगा।

33) आकाश के पक्षी और पृथ्वी के पशु वहाँ इस प्रजा की लाशें खायेंगे और कोई उन्हें नही भगायेगा।

34) मैं यूदा के नगरों और येरूसालेम की गलियों में प्रसन्नता एवं आनन्द की ध्वनि और वर-वधू के गीत समाप्त कर दूँगा; क्योंकि समस्त देश उजाड़ हो जायेगा।



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