📖 - यिरमियाह का ग्रन्थ (Jeremiah)

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अध्याय 12

1) प्रभु! तू न्यायप्रिय है। मैं तुझ से शिकायत नहीं कर सकता। फिर भी तुझ से कुछ प्रश्न करना चाहता हूँ। दुष्टों को अपने कार्यों में क्यों सफलता मिलती है? नास्तिक क्यों आराम का जीवन बिताते हैं?

2) तू उन्हें रोपता है, तभी वे जड़ पकड़ते हैं। वे बढ़ते और फल देते हैं। वे मुँह से तेरा नाम लेते हैं, किन्तू तू उनके हृदय में निवास नहीं करता।

3) प्रभु! तू मुझे जानता है। तू मुझे देखता और मेरे हृदय की थाह लेता है। दुष्टों को भेड़ों की तरह वध के लिए ले जा, विनाश के दिन के लिए उन्हें अलग कर।

4) कब तक देश शोक मनाता रहेगा? कब तक सभी खेतों की घास सूखी पड़ी रहेगी? निवासियों की दुष्टता के कारण पशु-पक्षियों की भी मृत्यु होती जा रही है। लोग कहते हैं, “प्रभु नहीं देखता कि हम पर क्या बीत रही है“।

5) “यदि तुम पैदल चलने वालों के साथ दौड़ते-दौड़ते थक गये हो, तो घोड़ों की बराबरी कैसे कर सकोगे? यदि तुम शान्तिपूर्ण देश में सुरक्षा का अनुभव नहीं करते, तो यर्दन के जंगल में क्या करोगे?

6) तुम्हारे भाई-बन्धु, तुम्हारे घराने के लोग तुम्हारे साथ विश्वासघात करते और पीठ पीछे तुम्हारी निन्दा करते हैं। वे तुम से कितनी ही मीठी बातें क्यों न करें, तुम उनका विश्वास नहीं करो।

7) ’मैंने अपने घर का त्याग कर दिया, मैंने अपनी विरासत अस्वीकार कर दी। जो मुझे सब से प्रिय थी, मैंने उसे शत्रुओं के हवाले कर दिया।

8) मेरी विरासत मेरे साथ जंगल के सिंह-जैसा व्यवहार करती है। वह मुझे देख कर दहाड़ती है। मुझे उस से घृणा हो गयी है।

9) मेरी विरासत बहुरंगी पक्षी-जैसी हो गयी है। शिकारी पक्षी उस पर चारों ओर से आक्रमण करते हैं। जाओ, सभी जंगली पशुओं को एकत्र करो। वे आ कर उसे फाड़ खायें।

10) बहुत-से चरवाहों ने मेरी दाखबारी का विनाश किया और मेरा खेत पैरों से रौंदा। उन्होंने मेरा रमणीय खेत उजाड़ा है।

11) उन्होंने उसे उजाड़खण्ड बना दिया। वह मेरे सामने वीरान और उजाड़ पड़ा है। समस्त देश का विनाश हो गया है और किसी को इसकी चिन्ता नहीं।

12) “विनाश करने वाले उजाड़खण्ड की सब ऊँचाईयों पर से आ रहे हैं। देश के एक छोर से दूसरे छोर तक कोई सुरिक्षत नहीं है। प्रभु की तलवार सबों का विनाश कर रही है।

13) लोग गेहूँ बोते और उन्हें काँटों की फ़लस मिलती है। वे पश्रिम करते-करते थक जाते हैं, किन्तु उनके पल्ले कुछ नहीं पड़ता। तुम प्र्रभु के क्रोध के कारण अपनी फ़सल पर लज्जा अनुभव करो।“

14) प्रभु यह कहता है: “मेरे सभी दुष्ट पड़ोसी उस विरासत पर आक्रमण करते हैं, जिसे मैंने अपनी प्रजा को प्रदान किया, इसलिए मैं उन्हें उनके दश से उखाडूँगा। मैं उनके बीच से यूदा के वंश को भी उखाडूँगा। किन्तु उन्हें उखाड़ने के बाद मैं फिर उन पर दया करूँगा और सब को उनकी अपनी विरासत और उनके अपने देश में वापस ले जाऊँगा।

15) जब वे मेरी प्रजा की तरह आचरण करना सीखेंगे और ’जीवन्त ईश्वर की सौगन्ध’ कहते हुए मेरे नाम की शपथ खायेंगे, जिस तरह उन्होंने मेरी प्रजा की बाल का नाम ले कर शपथ खाने की शिक्षा दी थी, तब वे मेरी प्रजा के बीच सुरक्षित रहेंगे। किन्तु जो राष्ट्र मेरी बात पर ध्यान नहीं देता, मैं उसे समूल उखाड़ कर उसका विनाश करूँगा।'' यह प्रभु की वाणी है।



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