📖 - यिरमियाह का ग्रन्थ (Jeremiah)

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अध्याय 23

1) “धिक्कार उन चरवाहों को जो मेरे चरागाह की भेड़ों को नष्ट और तितर-बितर हो जाने देते हैं!“ यह प्रभु की वाणी है।

2) इसलिए प्रभु, इस्राएल का ईश्वर अपनी प्रजा को चराने वालों से यह कहता है, “तुम लोगों ने मेरी भेड़ों को भटकने और तितर-बितर हो जाने दिया; तुमने उनकी देखरेख नहीं की। देखो! मैं तुम लोगों को तुम्हारे अपराधों का दण्ड दूँगा।“ यह प्रभु की वाणी है।

3) “इसके बाद मैं स्वयं अपने झुण्ड की बची हुई भेड़ों को उन सभी देशों से एकत्र कर लूँगा, जहाँ मैंने उन्हें बिखेर दिया है; मैं उन्हें उनके अपने मैदान वापस ले चलूँगा और वे फलेंगी-फूलेंगी।

4) मैं उनके लिए ऐसे चरवाहों को नियुक्त करूँगा, जो उन्हें सचमुच चरायेंगे। तब उन्हें न तो भय रहेगा, न आतंक और न उन में से एक का भी सर्वनाश होगा।“ यह प्रभु की वाणी है।

5) प्रभु यह कहता है: “वे दिन आ रहे हैं, जब मैं दाऊद के लिए एक न्यायी वंशज उत्पन्न करूँगा। वह राजा बन कर बुद्धिमानी से शासन करेगा और अपने देश में न्याय और धार्मिकता स्थापित करेगा।

6) उसके राज्यकाल में यूदा का उद्धार होगा और इस्राएल सुरक्षित रहेगा और उसका यह नाम रखा जायेगा- प्रभु ही हमारी धार्मिकता है।“

7) यह प्रभु का कहना है, “वह समय आ रहा है, जब लोग फिर यह नहीं कहेंगे, ’प्रभु के अस्तित्व की शपथ! वह इस्राएलियों को मिस्र देश से निकाल लाया है।’

8) वे यह कहेंगे, ’प्रभु के अस्तित्व की शपथ! वह इस्राएल के वंशजों को उत्तरी देश से और उन सब देशों से वापस बुला कर लाया है, जहाँ उसने उन्हें बिखेर दिया था।’ वे फिर अपनी ही भूमि में बस जायेंगे।“

9) नबियों के विषय में: मेरा हृदय मेरे अन्तरतम में टूटा हुआ है; मेरी सभी हड्डियाँ काँप रही हैं। प्रभु और उसके पवित्र शब्दों के कारण मैं शराबी-जैसा बन गया हूँ, उस व्यक्ति-जैसा, जो पीकर मतवाला हो गया है।

10) देश व्यभिचारियों से भर गया है; देश अभिशाप के कारण शोक मना रहा है। जंगल के चरागाह सूख गये हैं। वे बुराई की बात ही सोचते हैं, उनकी शक्ति अन्याय पर निर्भर है।

11) “नबी और याजक, दोनों दुष्ट हैं। मैं मन्दिर में भी उनका दुराचरण देखता हूँ।“ यह प्रभु की वाणी है।

12) “इसलिए उनका मार्ग उनके लिए पिच्छल भूमि बन जायेगा। वे अन्धकार में भटकते और गिर जाते हैं। जिस वर्ष उन्हें लेखा देना पड़ेगा, मैं उन पर विपत्तियाँ ढाहूँगा।“ यह प्रभु की वाणी है।

13) “समारिया के नबियों में मैंने अप्रिय बातें देखी हैं। वे बाल के नाम पर भवियवाणियाँ करते और मेरी प्रजा इस्राएल को भटकाते थे।

14) किन्तु येरूसालेम के नबियों में मैं घृणित बातें देखता हूँ: वे व्यभिचार करते और झूठ बोलते हैं। वे कुकर्मियों को प्रोत्साहन देते हैं, जिससे कोई पश्चाताप नहीं करता। समस्त नगर मेरी दृष्टि में सोदोम-जैसा हो गया है, उसके निवासी गोमोरा के लोगों-जैसे हो गये हैं।''

15) इसलिए सर्वशक्तिमान् प्रभु इन नबियों के विषय में यह कहता हैः “मैं उन्हें कड़वा भोजन खिलाऊँगा और विष मिला हुआ पानी पिलाउँगा; क्योंकि येरूसालेम के नबियों के कारण देश भर में अधर्म फैल जाता है।“

16) सर्वशक्तिमान् प्रभु यह कहता हैः “तुम नबियों की बातों पर ध्यान मत दो वे तुम को झूठी आशा दिलाते हैं। वे तुम को प्रभु की वाणी नहीं, बल्कि अपने मन की कल्पित बातें बताते हैं।

17) प्रभु की वाणी का तिरस्कार करने वालों से वे कहते हैं, ’तुम्हारा भला होगा’ और जो अपनी दुष्टता में दृढ़ बना रहता है, उस से वे कहते हैं, ’तुम्हारी कोई हानि नहीं होगी’।

18) “किन्तु उन में कौन ईश्वर की परिषद में है? कौन यह सब देखता और प्रभु की वाणी सुनता है? कौन प्रभु की वाणी ध्यान से सुनता है?

19) प्रभु का क्रोध आँधी की तरह भड़क उठता है, वह बवण्डर की तरह उनके सिर पर मँडराता है।

20) जब तक प्रभु ने अपनी सुनिश्चित योजना को कार्य रूप में परिणत नहीं किया होगा, तब तक उसका प्रकोप शान्त नहीं होगा। तुम बाद में उसे पूरी तरह समझोगे।

21) “मैं उन नबियों को नहीं भेजता, फिर भी वे इधर-उधर अपना सन्देश सुनाते हैं। मैं उनसे बात नहीं करता, फिर भी वे भवियवाणी करते हैं।

22) यदि वे मेरी परिषद् में सम्मिलित होते, तो वे मेरी प्रजा को मेरा सन्देश सुनाते और उसे अपने दुराचरण और अपने कुकर्मों से विमुख करते।

23) “मैं एक ही स्थान का ईश्वर नहीं, बल्कि विश्व का ईश्वर हूँ।“ यह प्रभु की वाणी है।

24) “क्या कोई व्यक्ति अपने को इस प्रकार छिपा सकता कि मैं उसे देख नहीं सकता?“ यह प्रभु की वाणी है “क्या मैं स्वर्ग में और पृथ्वी में व्याप्त नहीं?“ यह प्रभु की वाणी है।

25) “जो नबी मेरे नाम पर झूठी भवियवाणियाँ करते हैं, मैंने उन्हें यह कहते हुए सुना है, ’मैंने एक स्वप्न देखा है, मैंने एक स्वप्न देखा’।

26) यह कब तक होता रहेगा? अपनी मनगढ़न्त बातों का प्रचार करने वाले इन झूठे नबियों का क्या उद्देश्य है?

27) वे समझते हैं कि जो स्वप्न वे एक दूसरे की बताते हैं, उनके द्वारा मेरी प्रजा मेरा नाम भूल जायेगी, जैसा कि उनके पूर्वजों ने बाल की पूजा करते-करते मेरा नाम भुला दिया।

28) जो नबी स्वप्न देखता है, वह उसे प्रकट करे, किन्तु जिसे मेरी वाणी प्राप्त हो, वह उसे ईमानदारी से सुनाये। भूसे और गेहूँ में कौन समता है?“ यह प्रभु की वाणी है।

29) “मेरी वाणी अग्नि-जैसी है, वह उस हथौड़े की तरह है, जो चट्टान को टुकड़े-टुकड़े कर देता है।“ यह प्रभु की वाणी है।

30) प्रभु कहता है, “देखो, मैं उन नबियों को दण्ड दूँगा, जो एक दूसरे से शब्द चुरा कर उन्हें मेरे नाम पर घोषित करते हैं“।

31) प्रभु कहता है, “मैं उन नबियों को दण्ड दूँगा, जो निरर्थक बातें सुनाते हैं और उन्हें ईश्वर की वाणी समझते हैं"।

32) प्रभु कहता है, “मैं उन नबियों को दण्ड दूँगा, जो तथाकथित स्वप्न देखते हैं और उन्हें लोगों को बताते हैं। वे अपनी झूठी बातें और शब्दजाल द्वारा मेरी प्रजा को भटकाते हैं। मैंने उन्हें नहीं भेजा और उन्हें नियुक्त नहीं किया। वे इस प्रजा के लिए किसी काम के नहीं।'' यह प्रभु की वाणी है।

33) “यदि इन लोगों में कोई- चाहे वह नबी हो या याजक- तुम से पूछे कि ’प्रभु का भार क्या है?, तो उन से कहो, ’प्रभु कहता हैः तुम्हीं मेरे लिए भार हो और मैं तुम को निकाल कर फेंक दूँगा’।

34) यदि कोई नबी, याजक या जनता में कोई ’प्रभु के भार’ की चरचा करता है, तो मैं उसे और उसके परिवार को दण्ड दूँगा।

35) तुम एक दूसरे से पूछो, ’प्रभु का उत्तर क्या है? प्रभु का संदेश क्या है?’

36) किन्तु प्रभु के ’भार’ के विषय में मेरा आदेश यह है कि तुम इस शब्द का उच्चारण नहीं करोगे। प्रत्येक व्यक्ति का वचन उसी का ’भार’ होगा, क्येांकि तुम जीवन्त ईश्वर, सर्वशक्तिमान् प्रभु, हमारे ईश्वर की वाणी विकृत करते हो।

37) तुम नबी से यह कहोगे, ’प्रभु का उत्तर क्या है? प्रभु का सन्देश क्या है?’

38) यदि तुम ’प्रभु के भार’ की चरचा करोगे, तो प्रभु कहता हैः क्योंकि तुम ’प्रभु के भार’ की चरचा करते हो, जब कि मैंने तुम को ’प्रभु का भार’ कहना मना किया है,

39) इसलिए मैं तुम को उठा कर अपने से दूर फेंक दूँगा और इस नगर को भी, जिसे मैंने तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को दिया।

40) मैं तुम पर चिरस्थायी अपयश और चिरस्थायी कलंक का भार लाद दूँगा, जिसे कभी भुलाया नहीं जायेगा।“



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