📖 - यिरमियाह का ग्रन्थ (Jeremiah)

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अध्याय 42

1) सभी सेनानायक, कोरअह का पुत्र योहानान और होशाया का पुत्र अज़र्या तथा छोटे से ले कर बडे़ तक, सभी लोग नबी यिरमियाह के यहाँ आये

2) और उस से यह बोले, “हमारा निवेदन स्वीकार कीजिए। इन बचे हुए लोगों के लिए प्रभु, अपने ईश्वर से हमारी ओर से प्रार्थना कीजिएः क्योंकि जैसा आप स्वयं अपनी आँखों से देख रहे हैं, हम बहुत लोगों में बहुत कम लोग ही बच गये हैं।

3) प्रभु, आपका ईश्वर हमें वह मार्ग बाताये, जिस पर चलना चाहिए और यह कि हमें क्या करना चाहिए।“

4) नबी यिरमियाह ने उन से कहा, “मैंने तुम्हारी बात सुनी। तुम्हारी इच्छा से मैं प्रभु, तुम्हारे ईश्वर से प्रार्थना करूँगा और प्रभु जो उत्तर देगा, वह तुम्हें बता दूँगा। मैं तुम से कुछ नहीं छिपाऊँगा।“

5) इस पर वे यिरमियाह से बोले, “प्रभु आपका ईश्वर आप को जिन आदेशों के साथ हमारे पास भेजता है, यदि हम उनका पालन नहीं करें, तो प्रभु हमारे विरुद्ध सच्चा और सही साक्षी हो!

6) अच्छी हो या बुरी, हम प्रभु अपने ईश्वर की आज्ञा का, जिसके पास हम आप को भेज रहे हैं, पालन करेंगे, जिससे कि प्रभु, अपने ईश्वर की आज्ञा मानने के कारण हमारा कल्याण हो।“

7) दस दिनों के बाद यिरमियाह को प्रभु की वाणी सुनाई पड़ी।

8) तब उसने कारेअह के पुत्र योहानान, उसके साथ के सब सेनानायकों और छोटे से ले कर बड़े तक, सभी लोगों को बुला भेजा।

9) और उन से यह कहा, “प्रभु इस्राएल का ईश्वर, जिसके पास तुम लोगों ने मुझे अपना निवेदन प्रस्तुत करने भेजा था, यह कहता हैः

10) यदि तुम इसी देश में रह जाते हो, मैं तुम्हें नहीं ढाहूँगा, बल्कि तुम्हारा निर्माण करूँगा; मैं तुम्हें नहीं उखाडूँगा, बल्कि तुम्हें रोपूँगा; क्योंकि मैंने तुम्हारा जो अहित किया है, उसका मुझे पछतावा है।

11) बाबुल के राजा से मत डरो, जिस से तुम भयभीत हो रहे हो। उस से मत डरो, क्योंकि उस से तुम्हारी रक्षा करने और उसके हाथों से तुम्हें छुडाने के लिए मैं तुम्हारे साथ हूँ- यह प्रभु की वाणी है।

12) मैं तुम को दया का पात्र बनाऊँगा जिससे वह तुम पर कृपा करे और तुम्हें अपने देश में रहने दे।

13) किन्तु यदि तुम प्रभु, अपने ईश्वर की आज्ञा नहीं मान कर यह कहते हो, ’हम इस देश में नहीं रहेंगे।

14) हम मिस्र देश जायेंगे, जहाँ हमें न तो युद्ध दिखाई देगा, न नरसिंघे की आवाज सुनाई देगी और न रोटी के अभाव में भूखों मरना पड़ेगा। हम वहीं निवास करेंगे।’

15) तो यूदा के अवशेष! प्रभु की यह वाणी सुनो। विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है: यदि तुम मिस्र जाने के लिए अपना मुँह उसकी ओर करते और वहाँ रहने जाते हो,

16) तो वह तलवार जिस से तुम डरते हो, वहाँ मिस्र देश में भी तुम्हारा पीछा करेगी और वह अकाल, जिसकी तुम्हें आशंका है, तुम्हें मिस्र में भी नहीं छोडेगा और वहाँ तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी।

17) वे सभी लोग, जो मिस्र जा कर रहने के लिए उसकी ओर प्रस्थान करेंगे, वे वहाँ तलवार, अकाल और महामारी से मरेंगे। मैं उन पर जो विपत्ति ढाहूँगा, उस से न तो उन में कोई बचेगा और न जीवित रह पायेगा।

18) “विश्वमण्डल का प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता है: जैसे येरूसालेम के निवासियों पर मेरा क्रोध और प्रकोप बरसा था, यदि तुम मिस्र जाओगे, तो वैसा ही तुम पर मेरा प्रकोप बरसेगा। तुम घृणा और संत्रास, अभिशाप और उपहास के पात्र बन जाओगे। इस स्थान को तुम फिर कभी नहीं देख सकोगे।

19) यूदा के अवशेष! प्रभु ने तुम से यह कहा है, “मिस्र मत जाओ’। वह जान लो कि मैंने आज तुम्हें चेतावनी दी है।

20) तुमने स्वयं अपनी हानि की है; क्योंकि तुमने प्रभु, अपने ईश्वर के पास मुझे यह कर भेजा, ’प्रभु, हमारे ईश्वर से हमारी ओर से प्रार्थना कीजिए और प्रभु, हमारा ईश्वर जो कहे, वह हमें बतला दीजिए; हम उसका पालन करेंगे’

21) और आज मैंने तुम्हें वह बतला दिया है, किन्तु तुमने प्रभु, अपने ईश्वर का उस आज्ञा की एक बात भी नहीं मानी है, जिसे तुम से कहने के लिए उसने मुझे भेजा है।

22) इसलिए यह निश्चय जानो कि तुम जहाँ जा कर रहना चाहते हो, वहाँ तुम तलवार, अकाल और महामारी से मरोगे।“



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