📖 - शोक गीत (Lamentations)

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अध्याय 02

1) अपने क्रोध के आवेश में प्रभु ने सियोन की पुत्री को मेघाच्छन्न कर दिया है। उसने इस्राएल के वैभव को आकाश से पृथ्वी पर गिरा दिया है। उसने अपने क्रोध के दिन अपने पावदान का भी ध्यान नहीं रखा है।

2) प्रभु ने निर्दयतापूर्वक याकूब के सब घरों नो नष्ट कर दिया है। उसने क्रोध के आवेश में आ कर यूदा की पुत्री के सब गढ़ों को ढा दिया है। उसने उसके राज्य और उसके शासकों को अपमानित किया और मिट्टी में मिला दिया है।

3) उसने अपने भारी क्रोध में इस्राएल की समस्त शक्ति नष्ट कर दी है। उसने शत्रुओं के सामने उन से अपना दाहिना हाथ खींच लिया है। यह याकूब के भीतर एक ऐसा आग बन कर भड़का है, जिसने चारों ओर सब कुछ भस्म कर दिया है।

4) उसने शत्रु की तरह अपना धनुष चढ़ा लिया है, उसने बैरी की तरह अपना दाहिना हाथ उठा लिया है। उसने सियोन की पुत्री के तम्बू में उन सबों को, जिन पर आँखों को गर्व था, नष्ट कर दिया है। उसने आग की तरह अपना क्रोध उँढ़ेल दिया है।

5) प्रभु शत्रु-जैसा हो गया है, उसने इस्राएल का विनाश कर दिया है। उसने उसके सभी महलों का विनाश कर डाला है; उसके गढ़ नष्ट कर दिये हैं। उसने यूदा की पुत्री का शोक और विलाप और भी बढ़ा दिया है।

6) उसने अपना मन्दिर उद्यान की तरह तोड़ दिया है, उसने अपने निवास को नष्ट कर दिया है। प्रभु ने सियोन में अपने पर्व और विश्राम दिवस को विस्मृत करा दिया है। उसने अपने भयानक क्रोध में राजा और याजक को त्याग दिया है।

7) प्रभु ने अपनी वेदी का तिरस्कर, अपने पवित्र स्थान को अस्वीकार कर दिया है। उसने अपने भवनों की दीवारें शत्रु के हाथ कर दी है। प्रभु के निवास में पर्व के दिन-जैसा कोलाहल हो रहा है।

8) प्रभु ने सियोन की दीवार को धूल में मिलाने का निश्चय किया। उसने डोरी से माप कर उस पर निशान लगा दिये। उसने अपने हाथ को विनाश करने से नहीं रोका। उसने परकोटे और दीवार को विलाप करने दिया और वे दुःख में पडे़ हुए हैं।

9) उसके फाटक ज़मीन में धँस गये हैं। उसने उसकी अर्गलाओं को तोड़ कर चूर कर दिया है। उसके राजा और पदाधिकारी राष्ट्रों के यहाँ हैं। विधान समाप्त हो गया है। और उसके याजकों को प्रभु की ओर से कोई दृश्य नहीं प्राप्त होता।

10) सियोन के नेता मौन हो कर धरती पर बैठे हैं- अपने सिर पर धूल डाले, टाट के कपड़े ओढे़। येरूसालेम की कुमारियाँ सिर झुकाये बैठी रहती हैं।

11) मेरी आँखें आँसू बहाते-बहाते बुझ गयी हैं। अपनी प्रजा की पुत्री के घाव के कारण मेरी अँतडियाँ ऐंठ रही हैं। मेरा हृदय पिघलता है, जब बालक और दुधमुँहे बच्चे नगर की गलियों में मूच्र्छित हो जाते हैं।

12) वे अपनी माताओं से पूछते हैं, “रोटी कहाँ है?“ वे घायलों की तरह नगर की गलियों में बेहोश हो जाते हैं और अपनी माता की गोद में प्राण त्याग देते हैं।

13) येरूसालेम की पुत्री! मैं तुम्हारी तुलना किस से करूँ? तुम किसके सदृश हो? सियोन की पुत्री! तुम्हें कौन बचा सकता और सान्त्वना दे सकता है, क्योंकि तुम्हारी विपत्ति समुद्र की तरह अपार हैं? तुम्हें कौन स्वस्थ करेगा?

14) तुमहारे नबियों ने तुम्हें असत्य और भड़कीले दृश्य दिखाये। उन्होंने तुम्हारा भाग्य बदलने के लिए तुम्हारा पाप प्रकट नहीं किया। उन्होंने तुम्हें व्यर्थ और भ्रामक भवियवाणियाँ सुनायीं।

15) रास्ते से गुज़रने वाले सभी लोग तुम पर तालियाँ बजाते हैं। वे येरूसालेम की पुत्री का उपहास करते और सिर हिलाते है - “क्या यह वही नगरी है, जौ सौन्दर्य की परिपूर्णता और समस्त पृथ्वी का आनन्द कही जाती थी?“

16) तुम्हारे सभी शत्रु तुम्हारे विरुद्ध अपशब्द कहते हैं। वे फुफकारते और दाँत पीस कर यह कहते हैं, “हमने उसका सर्वनाश कर दिया हैं। हम इसी दिन की कामना करते थे और वह आ गया है, हम उसे देख रहे हैं।“

17) प्रभु ने जो निश्चय किया, पूरा किया। उसने अपना वह वचन पूरा किया, जिसकी घोषणा उसने प्राचीन काल से की थी। उसने निर्दयता से सर्वनाश किया। उसने तुम्हारे शत्रुओं को तुम्हें हानि पुहूँचा कर तुम्हारा उपहास करने दिया। और तुम्हारे विरोधियों की शक्ति बढ़ायी।

18) तुम सारे हृदय से प्रभु, सियोन के रक्षक, की दुहाई दो। तुम्हारे आँसू दिन-रात नदी की तरह बहते रहें। तुम नहीं रुको, निरन्तर रोते रहो।

19) उठो, रात में चिल्लाओ। पहले पहर में अपना हृदय पानी की तरह बहा दो। अपने बच्चों के प्राण बचाने के लिए प्रभु के सामने हाथ उठा कर प्रार्थना करो। वे गलियों के नुक्कड़ों पर भूख के कारण बेहोश पड़े हैं।

20) “प्रभु, ध्यान से देख कि तूने ऐसा व्यवहार किसके साथ है। क्या स्त्रियाँ अपनी ही सन्तानों, अपने ही पाले हुए बच्चों को अपना आहार बनायें? क्या प्रभु के ही पवित्र स्थान में याजकों और नबियों का वध किया जाये?

21) “बच्चे और बूढे़ मर कर सड़को की धूल में पड़े हैं। मेरी कुमारियाँ और नवयुवक तलवार के घाट उतारे गये हैं। तूने अपने कोप के दिन उनका वध कर दिया है, उन्हें निर्दयता से मार दिया है।

22) तूने जैसी किसी उत्सव के दिन की तरह मुझे आंतकित करने वालों को चारों ओर से आमन्त्रित किया। प्रभु के कोप के दिन कोई भी बच कर भाग नहीं सका और जीवित नहीं रहा। मैंने जिन को दुलराया और पाला, मेरे शत्रुओं ने उनका विनाश कर दिया।“



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