📖 - एज़ेकिएल का ग्रन्थ (Ezekiel)

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अध्याय 40

1) हमारे निर्वासन के पच्चीसवें वर्ष के आरंभिक महीने के दसवें दिन, उसी दिन, नगर की पराजय के चैदहवें वर्ष, प्रभु का हाथ मुझ पर पड़ा।

2) वह दिव्य दर्शन में मुझे इस्राएल देश ले आया और उसने मुझे एक बहुत ऊँचे पर्वत पर रख दिया, जिस पर मेरे सामने नगर-जैसा आकार दिखाई दे रहा था।

3) जब वह मुझे वहाँ ले आया, तो वहाँ मैंने एक ऐसा व्यक्ति देखा, जिसका रूपरंग काँसे का था। उसके हाथ में क्षुमा, छालटी की डोरी और माप-छड़ी थी। वह फाटक पर खड़ा था।

4) वह व्यक्ति मुझ से यह बोला, ’मानवपुत्र! आँख खोल कर देखो, कान लगा कर सुनो और मैं तुम को जो कुछ दिखाता हूँ, उस पर ध्यान दो; क्योंकि तुम यहाँ इसीलिए लाये गये कि तुम्हें यह सब दिखाऊँ। तुम जो कुछ देखना, उसे इस्राएल के घराने को बता देना।"

5) मन्दिर-क्षेत्र के बाहर चारों ओर एक दीवार दिखाई दे रही थी। उस व्यक्ति के हाथ की मापने की छड़ी छह हाथ लंबी थी। प्रत्येक हाथ एक हाथ से बित्ता भर लंबा था। उसने दीवार की मोटाई नापी, जो एक हाथ थी और उसकी ऊँचाई, माप-छड़ी के बराबर।

6) इसके बाद वह पूर्वी फाटक के भीतर गया, उसकी सीढ़ियों पर चढ़ गया और उसने फाटक की देहली नापी, जो माप-छड़ी के बराबर थी।

7) बगल के कमरों की लंबाई माप-छड़ी के बराबर थी और चैड़ाई माप-छड़ी के बराबर; बगल के कमरों के बीच की दूरी पाँच हाथ थी और भीतरी फाटक के द्वारमण्डप के समीप फाटक की देहली की चैड़ाई माप-छड़ी के बराबर।

8) इसके बाद उसने प्रवेशद्वार के मण्डल को नापा, तो आठ हाथ निकला

9) और उसके भित्तिस्तम्भ दो-दो हाथ। फाटक का द्वारमण्डल सब से भीतर की ओर था।

10) पूर्वी फाटक के दोनों ओर तीन-तीन कमरे थे। तीनों एक ही माप के थे और दोंनो ओर के भित्तिस्तम्भ भी एक ही माप के थे।

11) उसने फाटक के प्रवेशमार्ग के मुख की चैडाई नापी, जो दस हाथ थी और प्रवेशमार्ग की चैडाई, जो तेरह हाथ थी।

12) बगल वाले कमरों के सामने, दोनों ओर, एक-एक हाथ ऊँचा चबूतरा था बगल वाले सभी कमरे, दोनों तरफ, छः-छः हाथ के थे।

13) उसने एक ओर के बगल वाले कमरों के पिछले भाग से दूसरी ओर के बगल वाले कमरों के पिछले भाग तक फाटक की लंबाई नापी। एक के दरवाज़े से दूसरे के दरवाज़े की दूरी पच्चीस हाथ थी।

14) उसने द्वारमण्डप की माप भी निकाली, जो बीस हाथ निकली। प्रवेशद्वार के मण्डप के चारों ओर प्रांगण था।

15) प्रवेशद्वार के फाटक के सामने वाले भाग से ले कर फाटक के भीतरी द्वारमण्डप के अंत तक की लंबाई पचास हाथ थीं।

16) प्रवेशद्वार में चारों ओर खिडकियाँ थी,ं जो बगल वाले कमरों के भित्तिस्तम्भों की ओर सँकरी हो गयी थीं इसी प्रकार द्वारमण्डप में भी भीतर चारों ओर खिडकियाँ थी और भित्तिस्तम्भों पर खजूर वृक्ष खुदे थे।

17) इसके बाद वह मुझे बाहरी प्रांगण में ले आया, जहाँ कमरे थे और प्रांगण के चारों ओर विस्तृत फर्श था। फर्श के सामने तीस कमरे थे।

18) फर्श फाटकों के पास था और वह फाटकों की लंबाई के बराबर चैड़ा था। वह निचला फर्श था।

19) उसने निचले फाटक के भीतरी सिरे से ले कर भीतरी प्रांगण के बाहरी सिरे तक की दूरी नापी। वह एक सौ हाथ थी। तब वह मेरे आगे-आगे उत्तर की ओर गया।

20) और वहाँ बाहरी प्रांगण में उत्तर मुख का एक फाटक दिखाई पड़ा। उसने उसकी लंबाई-चैड़ाई नापी।

21) उसके बगल वाले तीन-तीन कमरे, उसके भित्तिस्तम्भ और द्वारमण्डप उसी माप के थे, जैसे पहले फाटक के। उसकी लंबाई पचास हाथ थी और उसकी चैड़ाई पच्चीस हाथ।

22) उसकी खिडकियाँ, उसका द्वारमण्डप और उसके खजूर वृक्ष उसी आकार के थे, जैसे पूर्वी मुख वाले फाटक के। उसके पास सात सीढियाँ चढ कर पहुँचा जा सकता था और उसका द्वारमण्डप भीतर की ओर था।

23) पूर्वी फाटक की तरह ही उत्तरी फाटक के सामने भीतरी प्रांगण में जाने का फाटक था। उसने एक फाटक से दूसरे फाटक की दूरी नापी। वह एक सौ हाथ थीं।

24) वह मुझे दखिण की ओर ले गया और वहाँ दक्षिण की ओर एक फाटक दिखाई पड़ा। उसने उसके भित्तिस्तम्भों और द्वारमण्डप को नापा। उनका आकार वैसा ही था, जैसा दूसरों का।

25) उस में और उसके द्वारमण्डप में चारों ओर उसी प्रकार की खिडकियाँ थीं, जैसी दूसरों की खिडकियाँ। उसकी लंबाई पचास हाथ थी और उसकी चैडाई पच्चीस हाथ।

26) उसके पास सात सीढियाँ चढ कर पहुँचा जा सकता था और उसका द्वारमण्डप भीतर की ओर थ। उसके भित्तिस्तम्भों पर दोंनों ओर खजूर वृक्ष खुदे थे।

27) भीतरी प्रांगण के दक्षिण एक फाटक था। उसने एक फाटक से दूसरे फाटक तक दक्षिण की ओर की दूरी नापी। वह एक सौ हाथ थीं।

28) तब वह मुझे दक्षिणी फाटक से हो कर भीतरी प्रांगण में ले आया और उसने दक्षिणी फाटक को नापा। उसकी माप दूसरे फाटकों-जैसी थी।

29) उसके बगल वाले कमरे, उसके भित्तिस्तम्भ और उसका द्वारमण्डप उसी आकार के थे, जैसे दूसरे। उस में और उसके द्वारमण्डप में चारों ओर खिडकियाँ थीं। उसकी लंबाई पचास हाथ थी और उसकी चैड़ाई पच्चीस हाथ।

30) उसके चारों ओर पच्चीस हाथ लंबे और पाँच हाथ चैडे द्वारमण्डप थे।

31) उसके द्वारमण्डप का मुख बाहरी प्रांगण की ओर था; उसके भित्तिस्तम्भों पर खजूर वृक्ष खुदे थे और उसकी सीढी में आठ सोपान थे।

32) वह मुझे पूर्वी भाग के भीतरी प्रांगण में ले गया और उसने फाटक को नापा। उसकी माप दूसरे फाटकों-जैसी थी।

33) उसके बगल वाले कमरे, उसके भित्तिस्तम्भ और उसका द्वारमण्डप उसी आकार के थे, जैसे दूसरे। उस में और उसके द्वारमण्डप में चारों ओर खिडकियाँ थीं। उसकी लंबाई पचास हाथ थी और उसकी चैडाई पच्चीस हाथ।

34) उसके द्वारमण्डप का मुख बाहरी प्रांगण की ओर था। उसके भित्तिस्तम्भों पर खजूर वृक्ष खुदे थे उसकी सीढ़ी में आठ सोपान थे।

35) तब वह मुझे उत्तरी फाटक के पास ले आया और उसने उसे नापा। उसकी माप दूसरे फाटकों-जैसी थी।

36) उसके बगल वाले कमरे, उसके भित्तिस्तम्भ और उसका द्वारमण्डप उसी आकार के थे, जैसे दूसरे। उस में चारों ओर खिडकियाँ थीं। उसकी लंबाई पचास हाथ थी और उसकी चैडाई पच्चीस हाथ।

37) उसके द्वारमण्डप का मुख बाहरी प्रांगण की ओर था उसके भित्तिस्तम्भों पर खजूर वृक्ष खुदे थे और उसकी सीढ़ी में आठ सोपान थे।

38) फाटक के द्वारमण्डप में खुलने वाला एक कमरा था, जहाँ होम-बलि धोयी जाती थीं।

39 फाटक के द्वारमण्डप में दोनों ओर दो-दो मेज़ें थीं, जिन पर होम-बलि, प्रायश्चित-बलि और क्षतिपूर्ति-बलि पशुओं का वध किया जाता था

40) और उत्तरी फाटक के प्रवेश-मार्ग के द्वारमण्डप के बाहर दो मेज़ें थीं और फाटक के द्वारमण्डप के दूसरी ओर देा मेंज़े थीं।

41 फाटक के दोनों ओर भीतर चार मेज़े थी और बाहर चार मेज़ें’- कुल आठ मेज़े, जिन पर बलि-पशुओं का वध किया जाता था।

42) होम-बलि के लिए तराशे हुए पत्थर की, डेढ हाथ लम्बी, डेढ हाथ चैडी और डेढ हाथ ऊँची चार मेज़ें भी थी, जिन पर वे औजार रखे जाते थे, जिन से होम-बलि और अन्य बलियों के पशुओं का वध किया जाता था।

43) उनके भीतरी भाग में चारों ओर एक बित्ता लंबे अंकुश बंधे थे। बलि का मांस मेज़ों पर रखा जाता था।

44) वह मुझे बाहर की ओर से भीतरी प्रांगण ले गया। भीतरी प्रांगण में दो कमरे थे- एक, जिसका मुख दक्षिण की ओर था, उत्तरी फाटक की बगल में और दूसरा, जिसका मुख उत्तर की ओर था, दक्षिणी फाटक की बलग में।

45) वह मुझ से बोला, "यह कमरा, जिसका मुख दक्षिण की ओर है, उन याजकों के लिए है, जो मंदिर की सेवा करते हैं,

46) और वह कमरा, जिसका मुख उत्तर की ओर हैं, उन याजको के लिए है जो वेदी की सेवा करते हैं; ये सादोकवंशी हैं। लेवीवंशियों में केवल वह प्रभु के समीप आ कर उसकी सेवा कर सकते हैं।"

47) उसने प्रांगण को नापा। वह सौ हाथ लंबा और सौ हाथ चैड़ा वर्गाकार था। वेदी मन्दिर के सामने अवस्थित थी।

48) वह मुझे मंदिर के द्वारमण्डप में ले गया और उसने द्वारमण्डप के भित्तिस्तम्भों को नापा, जो दानों ओर पाँच-पाँच हाथ के थे। फाटक की चैड़ाई चैदह हाथ थी और फाटक के दोनों ओर की दीवारें तीन-तीन हाथ की थीं।

49) द्वारमण्डप की लंबाई बीस हाथ थी और चैडाई बारह हाथ, और दास सीढ़ियाँ चढ कर वहाँ तक पहुँचा जा सकता था। भित्तिस्तभों के पास दोनों ओर खम्भे थे।



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