📖 - एज़ेकिएल का ग्रन्थ (Ezekiel)

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अध्याय 47

1) वह मुझे मंदिर के द्वार पर वापस ले आया। वहाँ मैंने देखा कि मन्दिर की देहली के नीचे से पूर्व की ओर जल निकल कर बह रहा है, क्योंकि मन्दिर का मुख पूर्व की ओर था। जल वेदी के दक्षिण में मन्दिर के दक्षिण पाश्र्व के नीचे से बह रहा था।

2) वह मुझे उत्तरी फाटक से बाहर-बाहर घुमा कर पूर्व के बाह्य फाटक तक ले गया। वहाँ मैंने देखा कि जल दक्षिण पाश्र्व से टपक रहा है।

3) उसने हाथ में माप की डोरी ले कर पूर्व की ओर जाते हुए एक हजार हाथ की दूरी नापी। तब उसने मुझे जलधारा को पार करने को कहा- पानी टखनों तक था।

4) उसने फिर एक हज़ार हाथ नाप कर मुझ से जलधारा को पार करने को कहा- पानी घुटनों तक था। उसने फिर एक हज़ार हाथ नाप कर मुझ से जलधारा को पार करने के कहा- पानी कमर तक था।

5) उसने फिर एक हज़ार हाथ की दूरी नापी- अब मैं उस जलधारा को पार नहीं कर सकता था, पानी इतना बढ़ गया था कि तैर कर ही पार करना संभव था। वह जलधारा ऐसी थी कि उसे कोई पार नहीं कर सकता था।

6) उसने मुझ से कहा, "मानवपुत्र! क्या तुमने इसे देखा?" तब वह मुझे ले गया और बाद में उसने मुझे फिर जलधारा के किनारे पर पहुँचा दिया।

7) वहाँ से लौटने पर मुझे जलधारा के दोनों तटों पर बहुत-से पेड़ दिखाई पड़े।

8) उसने मुझ से कहा, "यह जल पूर्व की ओर बह कर अराबा घाटी तक पहुँचता और समुद्र में गिरता है। यह उस समुद्र के खारे पानी को मीठा बना देता है।

9) यह नदी जहाँ कहीं गुज़रती है, वहाँ पृथ्वी पर विचरने वाले प्राणियों को जीवन प्रदान करती है। वहाँ बहुत-सी मछलिया पाय जायेंगी, क्योंकि वह धारा समुद्र का पानी मीठा कर देती है। और जहाँ कहीं भी पहुचती है, जीवन प्रदान करती है।

10) समुद्र के किनारे मछुआरे खड़े रहेंगे। एक गेदी से कर एन-एगलईम तक का स्थान जाल फैलाने का होगा। उसकी मछलियाँ भी महासमुद्र की मछलियों की तरह प्रचुर होंगी

11) किन्तु उसकी दलदलें और समुद्र ताल मीठे नहीं हो सकेंगे; वे नमक के लिए छोड़ दिये जायेंगै।

12) नदी के दोनों तटों पर हर प्रकार के फलदार पेड़े उगेंगे- उनके पत्ते नहीं मुरझायेंगें और उन पर कभी फलों की कमी नहीं होगी। वे हर महीने नये फल उत्पन्न करेंगे; क्योंकि उनका जल मंदिर से आता है। उनके फल भोजन और उनके पत्ते दवा के काम आयेंगे।

13) प्रभु-ईश्वर यह कहता है, "इस्राएल के बारह कुलों के बीच दायभाग के रूप में इस देश का विभाजन तुम इन्हीं सीमाओं के आधार पर करोगे। यूसुफ़ को दो भाग मिलेंगे।

14) और तुम इसका विभाजन एक समान करोगे। मैंने तुम्हारे पूर्वजों को को इसे देने की शपथ खायी थी और यह देश तुम्हें दायभाग के रूप में प्राप्त होगा।

15) "देश की सीमा यह होगी: उत्तर में महासमुद्र से हेतलोन होते हुए हमात के प्रवेश-मार्ग और उसे से आगे सदाद,

16) बेरोता, सिब्रईम (जो दमिश्क और हमात के बीच की सीमा पर है) और हासेर-हत्तीकोन तक, जो हवरान की सीमा पर है।

17) इस प्रकार यह सीमा समुद्र से हसर-एनान तक जायेगी, जो दश्मिक की उत्तरी सीमा पर है और उत्तर की ओर भी हमात की सीमा पर है। यह उत्तरी सीमा होगी।

18) "पूर्व में हवरान और दमिश्क के बीच, गिलआद और इस्राएल देश के बीच, पूर्वी समुद्र और तामार तक यर्दन नदी सीमा होगी। यही पूर्वी सीमा होगी।

19) "दक्षिणी में यह तामार से मरीबा-कादेश के जलाशयों तक और वहाँ मिस्र के नाले के किनारे-किनारे महासमुद्र तक जायेगी। यही दक्षिणी सीमा होगी।

20) "पश्चिम में हमात के प्रवेश-मार्ग के सामने के स्थान तक महासमुद्र इसकी सीमा होगी। यह पश्चिमी सीमा होगी।

21) "तुम लोग इस देश को आपस में इस्राएल के कुलों के अनुसार बाँटोगे।

22) तुम लोग इसे अपने दायभाग के रूप में अपने लिए और उन प्रवासियों के लिए, जो तुम्हारे यहाँ रह रहे हैं और जिनकी सन्तति का तुम्हारे यहाँ जन्म हुआ है, विभाजित कर दोगे। वे तुम्हारे लिए इस्राएल के मूल निवासियों की सन्तान-जैसे होंगे। तुम्हारे साथ उन्हें भी इस्राएल के कुलों के बीच दायभाग प्राप्त होगा।

23) जिस किसी कुल में प्रवासी निवास करेगा, तुम उसे उसी कुल में दायभाग दोगे। यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है।



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