📖 - दानिएल का ग्रन्थ (Daniel)

अध्याय ➤ 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- 08- 09- 10- 11- 12- 13- 14- मुख्य पृष्ठ

अध्याय 06

1) और मेदी राजा दारा को राज्य मिल गया, जो तब बासठ वर्ष का था।

2) दारा ने अपने सम्पूर्ण राज्य पर एक सौ बीस क्षतप्रों को नियुक्त किया

3) और उन पर तीन अध्यक्षों को, जिन में स्वयं दानिएल भी था, जिन को क्षतप्र उत्तरदायी हों, जिससे राजा को कोई क्षति न पहुँचे।

4) अपनी अद्भूत प्रतिभा के कारण दानिएल अन्य क्षतप्रों और मन्त्रियों की अपेक्षा अधिक प्रतिष्ठित होने लगा, तथा राजा उसे समस्त राज्य के ऊपर नियुक्त करने की सोचने लगा।

5) तब क्षतप्र और अध्यक्ष दानिएल के प्रशासनिक कार्यों को ठुकराने का बहाना ढूँढ़ने लगे, किन्तु उस से शिकायत का कोई आधार या कोई दोष नहीं मिला। दानिएल ईमानदार था; उस में कोई त्रुटि या दोष नहीं मिला।

6) अतः उन्होंने आपस में परामर्श कर लिया, "सिवा उसके धर्माचरण के हम दानिएल के व्यवहार में उस पर कोई आरोप नहीं कर पायेंगे।"

7) ये अध्यक्ष और क्षतप्र राजा से मिलने का अच्छा मौका ढूँढ़ कर उस से बोले, "राजा दारा चिरायु हों!

8) आपके राज्य के मन्त्री, अध्यक्ष, और क्षतप्र, दरबारी और राज्यपाल इस पर एकमत हैं कि आप एक आदेश और निषेधाज्ञा लागू करें कि अगले तीस दिनों के अन्दर यदि कोई महाराज के अतिरिक्त किसी अन्य देवता अथवा मनुष्य से प्रार्थना करे, तो महाराजा! आप उसे सिंहों के खंड्ड में डाल देंगे।

9) राजा! यह निषेधाज्ञा तुरन्त लागू कर उसके प्रलेख पर हस्ताक्षर कर दें, जिससे कि वह अटल बने। मेदियों और फारसियों की विधियों की तरह जो रद्द नहीं की जा सकती, उसे भी नहीं बदला जा सकता।"

10) अतः राजा दारा ने प्रलेख और निषेधाज्ञा पर हस्ताक्षर कर उसे जारी कर दिया।

11) जब दानिएल को पता चला कि निषेधाज्ञा पर हस्ताक्षर हो चुके हैं, तो वह अपने घर चला गया। वहाँ अपने कोठे में येरूसालेम की ओर खुलने वाली खिड़कियाँ थीं। वहाँ अपने रिवाज के अनुसार वह प्रतिदिन तीन बार घुटनों के बल अपने ईश्वर की धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ता था।

12) कुछ लोगों ने दानिएल के यहाँ पहुँचने पर उसे अपने ईश्वर से प्रार्थना और अनुनय-विनय करते पाया।

13) वे राजा से मिलने गये और उसे राजकीय निषेधाज्ञा का स्मरण दिलाते हुए बोले, "राजा! क्या आपने यह निषेधाज्ञा नहीं निकाली कि तीस दिनों तक जो कोई आप को छोड़ कर किसी भी देवता अथवा मनुष्य से प्रार्थना करेगा, वह सिंहों के खड्ड में डाल दिया जायेगा?" राजा ने उत्तर दिया, "यह मेदियों और फारसियों के अपरिवर्तनीय कानून के अनुसार सुनिश्चित है।''

14) इस पर उन्होंने राजा से कहा, "दानिएल- यूदा के निर्वासितों में से एक- आपके द्वारा घोषित निषेधाज्ञा की परवाह नहीं करता। वह दिन में तीन बार अपने ईश्वर से प्रार्थना करता है।"

15) राजा को यह सुन कर बहुत दुःख हुआ। उसने दानिएल को बचाने को निश्चत किया और सूर्यास्त तक कोई रास्ता खोज निकालने का प्रयत्न किया।

16) किन्तु उन लोगों ने यह कहते हुए राजा से अनुरोध किया, "राजा! स्मरण रखिए कि मेदियों और फारसियों के कानून के अनुसार राजा द्वारा घोषित कोई भी निषेधाज्ञा अथवा आदेश अपरिवर्तनीय है"।।

17) इस पर राजा ने दानिएल को ले आने और सिंहों के खड्ड में डालने का आदेश दिया। उसने दानिएल से कहा, "तुम्हारा ईश्वर, जिसकी तुम निरन्तर सेवा करते हो, तुम्हारी रक्षा करे"।

18) एक पत्थर खड्ड के द्वार पर रखा गया और राजा ने उस पर अपनी अंगूठी और अपने सामन्तों की अंगूठी की मुहर लगायी, जिससे कोई भी दानिएल के पक्ष में हस्तक्षेप न कर सके।

19) इसके बाद राजा अपने महल चला गया; उसने उस रात को अनशन किया और अपनी उपपत्नियों को नहीं बुलाया। उसे नींद नहीं आयी और वह सबेरे,

20) पौ फटते ही उठा, और सिंहों के खड्ड की ओर जल्दी-जल्दी चल पड़ा।

21) खड्ड के निकट आ कर उसने दुःख भरी आवाज़ में दानिएल को पुकार कर कहा, "दानिएल! जीवन्त ईश्वर के सेवक! तुम जिस ईश्वर की निरन्तर सेवा करते हो, क्या वह तुम को सिंहों से बचा सका?"

22) दानिएल ने राजा को उत्तर दिया, "राजा! आप सदा जीते रहें!

23) मेरे ईश्वर ने अपना दूत भेज कर सिंहों के मुँह बन्द कर दिये। उन्होंने मेरी कोई हानि नहीं की, क्योंकि मैं ईश्वर की दृष्टि में निर्दोष था।

24) राजा! मैंने आपके विरुद्ध भी कोई अपराध नहीं किया।" राजा आनन्दित हो उठा और उसने दानिएल को खड्ड से बाहर निकालने का आदेश दिया। इस पर दानिएल को खड्ड से बाहर निकाला गया; उसके शरीर पर कोई घाव नहीं था क्योंकि उसने अपने ईश्वर पर भरोसा रखा था।

25) जिन लोगों ने दानिएल पर अभियोग लगाया था, राजा ने उन्हें बुला भेजा और उन को अपने पुत्रों तथा पत्नियों के साथ सिंहों के खड्ड में डाल देने का आदेश दिया। वे खड्ड के फर्श तक भी नहीं पहुँचे थे कि सिंहों न उन पर टूट कर उनकी सब हाड्डियाँ तोड़ डाली

26) इसके बाद राजा ने पृथ्वी भर के लोगों, राष्ट्रों और भाषा-भाशियों को लिखा,

27) "आप लोगों को शांति मिले! मेरी राजाज्ञा यह है कि मेरे राज्य क्षेत्र समस्त क्षेत्र के लोग दानिएल के ईश्वर पर श्रद्धा रखें और उससे डरेंः क्योंकि वह सदा बना रहने वाला जीवन्त ईश्वर है, उसका राज्य कभी नष्ट नहीं किया जायेगा और उसके प्रभुत्व का कभी अंत नहीं होगा।

28) वह रक्षा करता और बचाता है, वह स्वर्ग और पृथ्वी पर चिह्न और चमत्कार दिखाता है, उसने दानिएल को सिंहों के पंजों से छुडाया है।"

29) इस प्रकार दानिएल दारा और सीरूस के शासनकाल में फलता-फूलता रहा।



Copyright © www.jayesu.com