📖 - मीकाह का ग्रन्थ (Michah)

अध्याय ➤ 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- मुख्य पृष्ठ

अध्याय 06

1) प्रभु का यह कहना सुनो- "उठो! पहाड़ों के सामने अपनी सफाई दो। पहाडियों को अपनी बात सुनाओ।"

2) पर्वतों! पृृथ्वी को सँभालने वाले चिरस्थायी खंबो! प्रभु का मुकदमा सुनो। वह इस्राएल पर अभियोग लगा रहा है:

3) "मेरी प्रजा! मैंने तुम्हारा क्या अपराध किया? मैंने तुम को क्या कष्ट दिया? मुझे उत्तर दो।

4) मैं तुम को मिस्र से निकाल लाया, मैंने तुम को दासता के घर से छुडाया। मैंने पथप्रदर्शक के रूप में मूसा, हारून और मिरयम को तुम्हारे पास भेजा।

5) मेरे लोगो, याद करो कि मोआब के राजा बालाक ने कैसा कुचक्र रचा था और बओर के पुत्र, बलिआम ने उसे कैसा उत्तर दिया था; याद रहे कि शिट्टीम से गिलगाल तक क्या-क्या हुआ था, जिससे तुम प्रभु के उद्धार के कार्यों को समझ सको।"

6) "मैं क्या ले कर प्रभु के सामने आऊँगा और सर्वोच्य ईश्वर को दण्डवत करूँगा? क्या मैं होम ले कर उसके सामने आऊँगा? अथवा एक वर्ष के बछड़ों को?

7) क्या ईश्वर हज़ारों मेढ़ों से प्रसन्न होगा? अथवा तेल की कोटि-कोटि धाराओं से? क्या मैं अपने अपराध के प्राश्श्चित्तस्वरूप आपने पहलौठे को अपने पाप के बदले में अपने शरीर के फल को अर्पित करूँगा?"

8) "मनुष्य! तुम को बताया गया है कि उचित क्या है और प्रभु तुम से क्या चाहता है। यह इतना ही है- न्यायपूर्ण व्यवहार, कोमल भक्ति और ईश्वर के सामने विनयपूर्ण आचरण।"

9) प्रभु-ईश्वर की वाणी। यह नगर का सम्बेाधन कर रहा है- प्रभु के नाम का आदर करना हितकर है। यूदा के वंश और नगर की परिषद् के सदस्यों! सुनो।

10) क्या मैं नाप-जोख में छल-कपट सहन करूँगा, अथवा खोटे बटखरे से घृणा न करूँ?

11) क्या मैं उस व्यक्ति को बिना दण्ड के ही छोड़ दूँ, जो खोटे तराजू का प्रयोग करता है और अपनी थैली में खोटे बाट रखता है?

12) तेरे धनवान् लोगों में हिंसावृत्ति भरी है, तेरे निवासी झूठ-पर-झूठ बोलते हैं और उनकी बातचीत कपटपूर्ण होती है।

13) इसीलिए तेरे पापों के कारण ही मैंने तुझ पर आघात करना और तेरा विध्वंस करना प्रारंभ किया है।

14) तू खायेगा, पर भूख मिटेगी नहीं, पेट हमेशा खाली रहेगा; बचाने पर भी तू कुछ न संचित कर सकेगा; और जो कुछ बेचेगा भी, उसे दसूरे आकर तलवार के बल पर छीन लेंगे।

15) तू बोयेगा, किन्तु काट नहीं पायेगा; भले ही तू जैतून का तेल निकालेगा, पर उसे अपने ही बदन पर कभी न लगा पायेगा; तू अंगूर का रस निचोडेगा, किन्तु अंगूरी नहीं पी पायेगा।

16) तूने तो ओम्री के विधानों का पालन किया अहाब के घराने की सब रीतियों का अनुसरण किया और अपने रहन-सहन में उनका अनुकरण भी किया। अतः मैं तुझ को उजाड दूँगा और तेरे निवासियों को उपहास का पात्र बना दूँगा; तुझे दूसरी जातियों की निंदा सहनी पडेगी।



Copyright © www.jayesu.com